Sunday - 7 January 2024 - 9:13 AM

नीतीश जी, दिल्ली की रैलियां और वो अभियान तो याद हैं ना

शबाहत हुसैन विजेता

नई दिल्ली. बिहार में चुनाव प्रचार का आज आख़री दिन है. सात नवम्बर को विधानसभा के आखरी चरण का मतदान होगा और 10 नवम्बर को मतगणना के बाद परिणाम घोषित हो जाएगा.

बिहार में किसकी होगी जीत और किसकी होगी हार यह तो 10 नवम्बर को ही पता चल पाएगा लेकिन तमाम मुद्दों और दावों के बीच से गुज़रता यह चुनाव अब नीतीश बनाम तेजस्वी बन गया है.

बिहार चुनाव में तमाम मुद्दे उठे. जंगलराज की बात हुई. आरोप-प्रत्यारोप हुए. नीतीश के 15 साल बनाम लालू के 15 साल पर बात हुई. इस चुनाव को सुशासन बनाम जंगलराज की तरफ मोड़ने की कोशिश हुई.

बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जहां इस चुनाव में अपने सुशासन का हवाला दिया और लालू यादव के शासन को जंगलराज बताया. बेरोजगारी का मुद्दा उठा तो नीतीश ने उसकी भी लालू शासन से तुलना करते हुए बताया कि लालू यादव ने 15 साल में 95 हज़ार नौकरियां दीं जबकि उनकी सरकार ने 15 साल में छह लाख नौकरियां दीं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार चुनाव को राष्ट्रीय मुद्दों से जोड़ने की कोशिश की. बीजेपी राम मन्दिर का मुद्दा बिहार चुनाव में उठाती नज़र आयी. बिहार चुनाव के दौर में ही पाकिस्तान के मंत्री ने पुलवामा मामले में पाकिस्तान के शरीक होने की बात उठाई.

इस चुनाव में तेजस्वी यादव ने महागठबंधन के नेता के तौर पर बिहार चुनाव को बिहार के मुद्दों तक ही सीमित रखा. तेजस्वी ने लगातार यह कोशिश की कि इस चुनाव में वही केन्द्र में रहें और लालू प्रसाद यादव का ज़िक्र नहीं आने पाए. इसी वजह से तेजस्वी ने राजद के पोस्टर से लालू यादव को दूर रखा.

राजद के पोस्टर पर लालू क्यों नहीं हैं यह सवाल बीजेपी लगातार उठाती रही लेकिन तेजस्वी किसी के झांसे में नहीं आये. तेजस्वी इस बात को समझ रहे थे कि अगर राजद के पोस्टर पर लालू की इंट्री हुई तो बिहार चुनाव का मुद्दा चारा घोटाला और लालू की सजा बन जाएगा और इससे सिर्फ राजद का ही नुक्सान होगा.

बिहार चुनाव में हर बार आरोप-प्रत्यारोप पर ही चुनाव होते रहे हैं लेकिन इस बार चुनाव में तमाम मुद्दे छाये रहे. बेरोजगारी का मुद्दा बड़ी शिद्दत से उठा. मुख्यमंत्री को खुद यह बताना पड़ा कि उन्होंने 15 साल में 95 हज़ार लोगों को नौकरियां दीं.

बिहार चुनाव की सबसे ख़ास बात यह रही कि साम्प्रदायिकता मुद्दा नहीं बन पाई लेकिन हर साल आने वाली बाढ़ इस बार चुनाव का मुद्दा बना. इस बार बेरोजगारी की बात खूब हुई और महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने जब सरकार बनने पर 10 लाख नौकरियों की बात की तो नीतीश कुमार ने सवाल उठाया कि 10 लाख लोगों को वेतन कहाँ से दोगे.

तेजस्वी ने जब यह बताना शुरू किया कि किस विभाग में कितनी जगह खाली हैं और वह किस तरह से दस लाख नौकरियां देंगे तो एनडीए ने खुद को बैकफुट पर आता महसूस किया. प्रधानमन्त्री ने तत्काल बिहार में 19 लाख नौकरियों का एलान कर दिया.

बिहार में बेरोजगारी की बात करें तो कोरोना महामारी की वजह से हर जगह काम खत्म हो गया तो कामगारों ने घर लौटना शुरू कर दिया. 26 लाख मजदूर अकेले बिहार में ही वापस लौटे हैं. वापस लौटने के बाद यह सभी बेरोजगार हैं.

लॉकडाउन में बिहार वापस लौटे 26 लाख लोगों में ज़्यादातर लोग 30 साल उम्र के हैं. तेजस्वी यादव ने इस चुनाव में न सिर्फ दस लाख रोज़गार देने की बात कही बल्कि एक वेबसाईट लांच कर उस पर बेरोजगारों का रजिस्ट्रेशन करवा लिया. राजद ने दावा किया है कि सरकार बनने के बाद रजिस्ट्रेशन कराने वालों को प्राथमिकता के आधार पर नौकरी दी जायेगी.

बिहार चुनाव में कृषि सुधार बिल भी एक बड़े मुद्दे के रूप में सामने आया है. केन्द्र सरकार द्वारा पारित इस बिल का तेजस्वी यादव और तेजप्रताप ने एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया. कांग्रेस और शिरोमणि आकाली दल भी इस बिल के विरोध में हैं. शिरोमणि आकाली दल इसी मुद्दे पर एनडीए से अलग हुई है.

बिहार चुनाव में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग भी मुद्दा बनी. महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने अपनी हर जनसभा में विशेष राज्य के दर्जे का मुद्दा जोर शोर से उठाया. बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग को नीतीश भी उठाते रहे हैं. इसके लिए उन्होंने दिल्ली और पटना में रैलियां कीं, हस्ताक्षर अभियान चलाये लेकिन बीजेपी के साथ सरकार बनाने के बाद उन्होंने इस मुद्दे को भुला दिया.

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एनडीए ने बिहार चुनाव में डबल इंजन की सरकार का मुद्दा उठाया. केन्द्र से मिली योजनाओं और धन की बात कि बिहार के विकास की बात की लेकिन महागठबंधन का आरोप है कि बिहार में विकास का पहिया रुक गया है. केन्द्र ने भी बिहार का ध्यान नहीं रखा और राज्य सरकार ने भी विकास का कोई काम नहीं किया.

बिहार विधानसभा चुनाव के प्रचार का शोर आज थम जाएगा. सात तारीख को मतदान होगा. 10 नवम्बर को पता चलेगा कि कौन से मुद्दे हैं जिन पर जनता ने अपनी सहमति दी है. चुनाव परिणाम तय करेगा कि जनता कैसा बिहार देखना चाहती है.

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