Friday - 12 January 2024 - 1:25 PM

सीएम की मुलायम से मुलाकात, कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना

केपी सिंह

स्वास्थ्य का हाल-चाल जानने और दीपावली की बधाई देने के बहाने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की। इस दौरान भाजपा की डमी पार्टी के रूप में पहचान बनाती जा रही प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव तो मौजूद थे लेकिन उनके पुत्र और समाजवादी पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस दौरान अपने को दूर ही रखा। जबकि पिछली बार जब योगी मुलायम सिंह से मिलने पहुंचे थे तो अखिलेश यादव भी उनके स्वागत के लिए घर पर मौजूद रहे थे।

कितना शिष्टाचार और कितनी राजनीति

कहने को तो लोकतांत्रिक शिष्टाचार को बनाये रखने और बढ़ाने के नाम पर योगी आदित्यनाथ ने ऐसा किया लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद देश के साथ-साथ प्रदेश में भी विपक्ष के लिए हताशा जनक राजनीतिक वातावरण निर्मित हो गया था। हाल फिलहाल भाजपा से मोर्चा लेने की तुक विपक्षी खेमे में नही बैठ पा रही थी। इसलिए उपचुनाव हुए तो अवसाद ग्रस्त अखिलेश यादव कहीं प्रचार करने नही गये। पर इसके बावजूद समाजवादी पार्टी को एक दर्जन क्षेत्रों में से तीन सीटे हाथ लग गईं। जबकि खुद को उनसे बड़ा साबित करके सपा-बसपा गठबंधन तोड़ चुकी मायावती की छूंछी रह जाने की वजह से मिटटी पलीत हो गई।

उपचुनाव के नतीजों से बहाल हुआ अखिलेश का मनोबल

इस अप्रत्याशित सफलता से अखिलेश यादव में नये मनोबल का संचार हुआ है और वे अब हौसले के साथ भाजपा से टकराने का मंसूबा बांध उठे हैं। योगी को भी एहसास है कि उपचुनाव के परिणामों ने जहां उनकी प्रदेश में पहले जैसी पकड़ पर प्रश्न चिन्ह लगाया है वहीं आम जनता में विपक्ष का भाव बढ़ा दिया है जिससे उनके लिए आने वाले दिनों में चुनौतियां बढ़ने वाली हैं।

विपक्षी धार को भौंथरा बनाने का पैंतरा

मुलायम सिंह यादव से योगी का मिलने जाना समाजवादी पार्टी के विपक्षी अस्तित्व की धार को भौंथरा बनाने का पैंतरा माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान मुलायम सिंह यादव ने सदन में खुलेआम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से सत्ता में आने का आशीर्वाद दिया था। जिससे भाजपा विरोधी वोटर विचलित हो गया था। कहीं न कहीं समाजवादी पार्टी को इसका भी परिणाम चुनाव में भुगतना पड़ा था। इसलिए अखिलेश यादव अबकी बार सतर्क हैं और उन्होंने अपने पिता से सीएम की मुलाकात के समय अनुपस्थित रहकर इस संकेत को मजबूत करने की कोशिश की है कि यह मुलाकात कतई राजनैतिक नही थी।

 

शिवपाल की हैसियत भाजपा की डमी के रूप में बेनकाब

अखिलेश इसके पहले हताशा में अपने चाचा शिवपाल यादव को फिर से पार्टी के साथ जोड़ने के गुणा-भाग में लग गये थे लेकिन उप चुनाव के नतीजों की संजीवनी पाते ही उन्होंने मिजाज बदल दिया और शिवपाल के लिए पार्टी के दरवाजे फिर से बंद कर लिए हैं। इस बीच यह साबित हो चुका है कि अखिलेश को ही असली समाजवादी पार्टी के रूप में लोगों की स्वीकार्यता मिल चुकी है। इसलिए वे अब अखिलेश का कोई नुकसान नही कर पायेगें। उन्हें सत्ता का सुख बस मिलता रहेगा लेकिन यह सुख उनके राजनैतिक ग्राफ को भी थाम देने वाला साबित हो रहा है।

अयोध्या पर फैसले के समय मुलायम की जुबान करा सकती है अनर्थ

इस बीच अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है। मुलायम सिंह ने लोकसभा चुनाव के समय बयान दे डाला था कि 30 नवंबर 1990 को अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाने के फैसले के लिए उन्हें अभी भी कोई अफसोस नही है। उक्त गोली कांड में एक दर्जन के लगभग लोग ही मारे गये थे पर अगर 32-35 लोग भी मारे जाते तब भी वे गोली चलवाने से नही चूकते।

अगर अयोध्या फैसले के बाद मुलायम सिंह को फिर ऐसा ही भड़काऊ बयान देने की जुंग सवार हो गई तो शासन-प्रशासन को प्रदेश में लेने के देने पड़ सकते हैं। योगी को जरूरत है कि मुलायम सिंह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चुप्पी साधे रहें और इसके लिए उनका मान-सम्मान दिखाने में वे कोई चूंक नही करना चाहते।

हालांकि मुलायम सिंह की भी मुसलमानों को लेकर क्रांतिकारिता अब ठंडी पड़ चुकी है। वे एक भदेस बुजुर्ग की तरह राजनैतिक मामलों से ज्यादा चिंता इन दिनो अपने परिवार को भव-बाधाओं से बचाये रखने की कर रहे हैं।

योगी और अखिलेश में भले ही छत्तीस का आंकड़ा हो लेकिन मुलायम सिंह की बदौलत ही है कि योगी सरकार अखिलेश के कार्यकाल में हुए कार्यों की जांच में एक सीमा से आगे नही जा रहे हैं। दूसरे मुलायम के प्रति अपने आदर को उन्होंने राजनैतिक तौर पर भी खूब कैश कराया है। भावुक भारतीय समाज में इस बात का बड़ा महत्व है कि विरोधी होते हुए भी राजनीति के सबसे बुजुर्ग का सीएम कितना सम्मान कर रहे हैं। दूसरी ओर अखिलेश का मानवीय धरातल पर यह बड़ा कमजोर पक्ष है कि उन्होंने अपने पिता से पार्टी की विरासत को उनके जीवित और सक्रिय रहते हुए भी लगभग छीनने की उतावली दिखाई। इस प्रस्तुतिकरण में योगी सफल रहे हैं और मंच से चुनाव में यह बातें कहकर अखिलेश का उन्होंने बड़ा नुकसान किया है। आज भी वे अपने तरकश में इसे सबसे पैने तीर के रूप में सहेजे हुए हैं।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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