Friday - 5 January 2024 - 6:10 PM

भ्रष्टाचार की दीमक से दरकता लखनऊ विश्वविद्यालय

शबाहत हुसैन विजेता

लखनऊ. चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय (कानपुर) और अवध विश्वविद्यालय (फैजाबाद) जैसा हाल ही लखनऊ विश्वविद्यालय का भी है. लखनऊ विश्वविद्यालय भारत के सबसे पुराने शिक्षण संस्थानों में से एक है. पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा, राजमाता विजय राजे सिंधिया, केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान, झारखंड के पूर्व राज्यपाल सैय्यद सिब्ते रज़ी, तमिलनाडु के गवर्नर सुरजीत सिंह बरनाला, पूर्व केन्द्रीय मंत्री के.सी.पन्त, ज़फर अली नकवी और उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक जैसे राजनेताओं को इसी लखनऊ विश्वविद्यालय ने सजाया-संवारा. इस विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले विद्वानों में से दो को पद्मविभूषण, चार को पद्मभूषण और 18 को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया. यहाँ के छात्रों ने बी.सी.राय और शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार भी हासिल किये.

लखनऊ विश्वविद्यालय की शानदार इमारत ने फिल्म निर्माताओं को भी अपनी तरफ आकर्षित किया. इस विश्वविद्यालय में समय-समय पर ए.पी.जे.अब्दुल कलाम. अटल बिहारी वाजपेयी और विष्णुकांत शास्त्री जैसे विद्वान आते रहे हैं. इस विश्वविद्यालय का ऐसा मुकाम रहा है कि हर पढ़ने वाला यह ख़्वाब देखता है कि एक बार उसे भी यहाँ पर पढ़ने को मिल जाए.

… लेकिन बदलते वक्त के साथ लखनऊ विश्वविद्यालय की गरिमा को तार-तार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई है. भ्रष्टाचार की दीमक इस विश्वविद्यालय को चाटने लगी है. मर्यादा तो कई साल पहले ही डस्टबिन में फेंक दी गई थी. दो दशक पहले ही इस विश्वविद्यालय के एक शिक्षक ने एक शिक्षिका को न सिर्फ नगर वधु कहा था बल्कि दीवारों पर लिखवा भी दिया था. वो तो कहिये कि उस शिक्षिका ने झुकने से इनकार कर दिया और अपने सम्मान की लड़ाई को पुरजोर तरीके से लड़ा लेकिन इस लड़ाई ने विश्वविद्यालय की गरिमा को ज़बरदस्त ठेस पहुंचाई.

अब इस विश्वविद्यालय में जो ज़िम्मेदार हाथ हैं वह वास्तव में इतने गैर ज़िम्मेदार हैं कि वह सिर्फ और सिर्फ पैसों की भाषा समझते हैं. पैसों से सही को गलत और गलत को सही कर दिया जाता है. एडमिशन से लेकर शिक्षकों के प्रमोशन तक में भ्रष्टाचार की जड़ें लगातार गहरी होती जा रही हैं. भ्रष्टाचार करने वालों की खाल इतनी मोटी है कि चाहे उनकी शिकायत राजभवन की जाए या फिर अदालत में उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता. अदालती आदेशों को भी यहाँ के ज़िम्मेदार मनमाने अंदाज़ में लागू कर देते हैं.

देश के सबसे शानदार और सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक लखनऊ विश्वविद्यालय की गरिमा और मर्यादा को ठेस पहुंचाने वालों की पूरी तस्वीर हम आपको दिखायेंगे. बेईमानों की बेईमानी भी सामने रखेंगे और पीड़ितों का दर्द भी आपको दिखायेंगे. लखनऊ विश्वविद्यालय के कर्ताधर्ताओं पर अब किसी भी शिकायत का कोई असर नहीं होता है. जो शिकायतें राजभवन तक पहुँच जाती हैं और राजभवन उन्हें संज्ञान ले लेता है उन शिकायतों को विश्वविद्यालय में बैठे ज़िम्मेदार अपने तरीके से निबटा देते हैं.

लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन अजब-गज़ब तरीके से अपने काम को अंजाम देने में लगा है. शिक्षकों के प्रमोशन के लिए बनाई जाने वाली समिति में इतना झोलझाल है कि उसमें भ्रष्टाचार की झलक पहली ही नज़र में दिखाई देने लगती है. नियम क़ानून ताक पर रखकर समिति की बैठक कर फैसले कर लिए जाते हैं. नियमों पर बात करें तो चयन समिति के सदस्यों को बैठक की सूचना बैठक से 15 दिन पहले लिखित रूप में दी जानी चाहिए लेकिन गज़ब यह है कि बैठक से कुछ घंटों पहले बैठक की सूचना दी जाती है. यह सब इसलिए किया जाता है ताकि मनमाने तरीके से प्रमोशन पर मोहर लगाईं जा सके. मनमाना रवैया ऐसा है कि अयोग्य को बड़ी ज़िम्मेदारी दे दी जाती है और योग्य को अयोग्य के नीचे काम करने को मजबूर किया जाता है.

लखनऊ यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसियेशन (लूटा) के अध्यक्ष डॉ. विनीत कुमार वर्मा साफ़ तौर पर कहते हैं कि विश्वविद्यालय कार्य परिषद की बैठक अब मज़ाक बन चुकी है. जिस बैठक की जानकारी 15 दिन पहले दी जानी चाहिए उसकी जानकारी विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. विनोद कुमार सिंह ने सिर्फ तीन दिन पहले भेजे पत्र में दी. इस पत्र में भी बैठक का एजेंडा नहीं था.

लखनऊ विश्वविद्यालय में शिक्षकों के प्रमोशन में हुई धांधली के खिलाफ दो शिक्षक कोर्ट चले गए और पर्शियन विभाग के सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. अरशद जाफरी ने राजभवन का दरवाज़ा खटखटाया. विश्वविद्यालय ने कोर्ट की बात तो सुन ली लेकिन राजभवन ने जो सवाल पूछे उसमें राजभवन को गोलमोल भाषा में समझा दिया. अरशद जाफरी के मामले में प्रमुख शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद ने भी राज्यपाल को तीन पत्र भेजे. डॉ. अरशद जाफरी अब अपने मामले को लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं.

लखनऊ विश्वविद्यालय में शिक्षकों के प्रमोशन मामले में जो धांधलियां हुई हैं उसकी पूरी तस्वीर सामने लाने की तैयारी है. वह कौन से शिक्षक हैं जो योग्य न होते हुए भी प्रमोशन पा गए और वह कौन से शिक्षक हैं जो हर मापदंड पर खरे उतरकर भी प्रमोशन से महरूम रह गए. सबके नाम सामने आएंगे. मीटिंग में जो हुआ और मीटिंग के बाद जो हुआ वह सब हम बताएंगे. यह सिर्फ शुरुआत है पूरी खबर में तो बहुत कुछ है. पूरी बात हम आपको सिलसिलेवार बताएंगे.

यह भी पढ़ें : कमिश्नर जांच में दोषी मिला यूपी का ये कृषि विश्वविद्यालय

यह भी पढ़ें : कानपुर कृषि विश्वविद्यालय शासनादेशों को ठेंगा दिखा कर करेगा भर्तियाँ ?

यह भी पढ़ें : कानपुर कृषि विश्वविद्यालय के घोटाले SIT को क्यों नहीं सौंप देती सरकार ?

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : वक्त के गाल पर हमेशा के लिए रुका एक आंसू है ताजमहल

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com