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कानपुर कृषि विश्वविद्यालय के घोटाले SIT को क्यों नहीं सौंप देती सरकार ?

प्रमुख संवाददाता

लखनऊ. कृषि विश्वविद्यालय कानपुर में फैली वित्तीय अनियमितताओं की बेल लगातार बढ़ती जा रही है. इस बेल में तरह-तरह के भ्रष्टाचार के फल दिखाई देने लगे हैं. इस भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में सत्ता पक्ष के सांसदों और विधायकों ने भी सरकार को लिखा और शिक्षक दल से जुड़े जनप्रतिनिधि भी इसी कोशिश में लगे हैं कि किसी तरह से यह विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाए.

शिकायतें सरकार से लेकर राजभवन तक पहुँचीं. सरकार की तरफ से विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखकर जवाब भी माँगा गया लेकिन विश्वविद्यालय की तरफ से न तो जवाब भेजा गया और न ही रवैये में बदलाव किया गया.

कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के भ्रष्टाचारों की पूरी किताब तैयार हो चुकी है. हम आपको इसके भ्रष्टाचारों की एक-एक परत दिखायेंगे और यह भी बताते चलेंगे कि नियम क्या है और हो क्या रहा है. किसने-किसने इस विश्वविद्यालय में फ़ैल रहे भ्रष्टाचार पर अपनी आवाज़ उठाई.

पूर्व विधायक संजय मिश्र ने लिखा है कि 28 जुलाई 2020 को उत्तर प्रदेश के कृषि शिक्षा विभाग ने कृषि विश्वविद्यालय कानपुर को लिखे पत्र में नवसृजित के.वी.के. कासगंज के 16 पद और पूर्व के के.वी.के. में रिक्त दर्शाए गए 52 पदों को भरने की अनुमति दी गई है. जबकि हकीकत यह है कि के.वी.के. कासगंज में तो 16 पद रिक्त हैं लेकिन पुराने के.वी.के. में दर्शाए गए 52 रिक्त नहीं हैं. यह भ्रामक आंकड़ा है. के.वी.के. में नियुक्त कर्मचारियों को विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कर उसे रिक्त दर्शा दिया गया है. यह पूरी तरह से गलत है और इन नियुक्तियों को रोका जाना चाहिए.

इससे पूर्व पहली सितम्बर को कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर में चल रही अनियमितताओं का संज्ञान लेते हुए अपर मुख्य सचिव डॉ. देवेश चतुर्वेदी ने कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय में सम्बद्ध किये गए कृषि विज्ञान केन्द्रों के कार्मिकों की सम्बद्धता को समाप्त किये जाने का आदेश दिया था. इस पत्र को विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब तक संज्ञान में नहीं लिया है.

इस पत्र में कहा गया है कि मौजूदा कुलपति के कार्यभार गृहण करने से पहले पूर्व कुलपतियों ने कृषि विश्वविद्यालय कानपुर के नियंत्रण में आने वाले कृषि विज्ञान केन्द्रों पर कार्यरत वैज्ञानिकों को मुख्यालय से स्थानांतरित किया है. यह स्थानान्तरण नियमों के अंतर्गत नहीं है. इस सम्बन्ध में 26 जून 2019 को हुए शासनादेश में कहा गया था कि कृषि विश्वविद्यालयों के अंतर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्रों के कार्मिक अगर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध किये गए हैं तो उन्हें तत्काल अवमुक्त कर दिया जाए.

इस शासनादेश के बाद सरकार ने 30 दिसम्बर 2019, पांच फरवरी 2020, दो जून 2020, 10 जुलाई 2020 और 15 जुलाई 2020 को पत्र लिखे गए लेकिन विश्वविद्यालय ने आज तक सरकार को इस सम्बन्ध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई.

शासन ने विश्वविद्यालय से कहा कि तालिका बनाकर विस्तार से जानकारी दें कि इन स्थानान्तरण और सम्बद्धता के लिए कौन अधिकारी ज़िम्मेदार हैं. उनके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करें. अगर यह कार्रवाई शासन स्तर से होनी है तो उसकी जानकारी भी उपलब्ध कराएं. यह भी बताएं कि इन कार्मिकों का वेतन किस मद से दिया गया. साथ ही यह भी बताया जाए कि क्या इस सम्बद्धीकरण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली से अनुमति ली गई थी या नहीं.

इससे पहले छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के वित्त अधिकारी धीरेन्द्र कुमार तिवारी ने चंद्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के अर्थ नियंत्रक को फिर से पत्र लिखकर विश्वविद्यालय में चल रही गतिविधियों की तरफ ध्यान आकर्षित किया. पत्र में कहा गया है कि शासन ने अपने विभिन्न आदेशों में चंद्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर के लिए कुछ व्यवस्थाएं की हैं. जिसका अनुपालन होता हुआ नहीं दिख रहा है.

अर्थ नियंत्रक को बताया गया है कि चंद्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर में वित्तीय अनुशान स्थापित किये जाने के लिए शासनादेश संख्या 3028/ 67/ कृ.शि.-4-1506/ दिनांक 22 दिसंबर 2004 का अनुपालन विशेषकर वित्तीय उपाशय के मुद्दे पर शासन से पुष्टि नहीं कराई गई.

शासकीय आदेशों की अवहेलना का उदाहरण देते हुए उन्होंने लिखा है कि आईसीएआर से शतप्रतिशत वित्त पोषित तदर्थ योजनाओं में कार्यरत कार्मिकों का ट्रांसफर या समायोजन राज्य सरकार द्वारा सृजित पदों पर करके राजकीय अनुदान द्वारा अनियमित भुगतान और उन्हें सातवाँ वेतनमान का भुगतान किया गया.

अर्थ नियंत्रक को लिखे पत्र में कहा है कि असाधारण गज़ट अधिसूचना संख्या 1450/ 79-वि-1-19-1(क)-5-19 दिनांक 5 अगस्त 2019 में वर्णित अध्यापक से भिन्न गैर शिक्षकों तथा सेवानिवृत्त गैर शिक्षकों को भी सिर्फ अध्यापकों के लिए अनुमन्य लाभ 62 वर्ष तक के सेवा विस्तार की कार्रवाई भी कर दी. विश्वविद्यालय ने सृजित पदों से अधिक संख्या में कर्मचारियों को भुगतान किया. निधि लेखा विभाग ने वर्ष 2014-15 में इस पर लिखित आपत्ति भी की थी.

इसी तरह से विश्वविद्यालय के प्रबंध मंडल की 25 अप्रैल 2018 को हुई 153 वीं बैठक में 5 जुलाई 2017 के शासनादेश की व्यवस्था के प्रतिकूल लेखा संवर्ग में की गई प्रोन्नतियों को निरस्त कर दिया गया था लेकिन अब तक उक्त कार्मिकों का उन्हीं पदों पर कार्यरत रहना शासनादेश और प्रबंध मंडल के आदेशों की अवमानना प्रतीत होती है.

उधर बी.एस.एम.डी. कालेज कानपुर में शिक्षक और भाजपा प्रबुद्ध प्रकोष्ठ के नेता डॉ. अनिल कुमार मिश्रा ने अपर मुख्य सचिव वित्त और वित्त आयुक्त को पत्र लिखकर कहा है कि प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए वित्त विभाग द्वारा अनुदान स्वीकृत किया जाता है. वित्तीय स्वीकृतियों में यह स्पष्ट निर्देश रहता है कि जो शिक्षक और कर्मचारी शासन द्वारा नियमित रूप से सृजित पदों पर नियुक्त हैं उन्हें ही वेतन दिया जाए.

उन्होंने लिखा है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने गज़ट प्रकाशित कर शिक्षक की परिभाषा भी स्पष्ट की है. राजाज्ञा के विपरीत कानपुर कृषि विश्वविद्यालय में यूजीसी मानक के विपरीत नान यूजीसी/ केवीके वैज्ञानिक एवं शोध सहायकों को नान प्लान मद में आवंटित अनुदान से वेतन दिया जा रहा है जो कि गज़ट की मंशा के विपरीत है.

डॉ. अनिल कुमार मिश्रा ने लिखा है कि कुलपति द्वारा मनमाने तरीके से प्लान में नियुक्त कर्मचारियों का नान प्लान के पद पर और नान प्लान में नियुक्त कर्मचारियों को प्लान के पदों पर ट्रांसफर कर गंभीर वित्तीय अनियमितता की जा रही है.

डॉ. मिश्र ने लिखा है कि विश्वविद्यालय अपनी सुविधा के अनुसार सृजित पदों की संख्या बदलता रहता है. रोस्टर रजिस्टर भी शासन के आदेशों के तहत नहीं बना है. कुलपति रिक्त पदों को भरने के लिए विज्ञापन देते रहते हैं. जबकि वित्त विभाग की नियमावली में इसकी मनाही है. विश्वविद्यालय के कई विभागों में आवश्यकता से अधिक कर्मचारी और शिक्षक हैं.

चंद्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर में शासकीय नियमों के विपरीत चल रहे क्रियाकलापों के मुद्दे पर सांसद बृज भूषण शरण सिंह ने मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एस.पी.गोयल को पत्र लिखकर पूरे मामले की जानकारी दी.

बृज भूषण शरण सिंह ने सरकार को लिखा है कि 18 जून, 26 जून तथा 30 दिसम्बर 2019 को हुए शासनादेश में स्पष्ट कहा गया है कि के.वी.के. पर तैनात वैज्ञानिकों को मुख्यालय पर सम्बद्ध अथवा ट्रांसफर नहीं किया जाएगा. इन शासनादेशों का अनुपालन आज तक नहीं किया गया. इन शासनादेशों का मखौल उड़ाते हुए कुलपति ने 13 जुलाई 2020 को अलीगढ़ के.वी.के. के डॉ. ए.के.सिंह को मुख्यालय से सम्बद्ध कर अपर निदेशक प्रसार का प्रभार दे दिया गया. जिनकी नियुक्ति / सेवायें कुलाधिपति ने 17 फरवरी 1994 को निरस्त कर दिया था. इसी तरह के.वी.के. मूल के नियुक्ति पाए डॉ. अजय कुमार दुबे को उद्यान विभाग का प्रभारी बना दिया गया. जिनके भ्रष्टाचार की जांच शासन में लंबित है.

सांसद बृज भूषण शरण सिंह ने प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री से यह शिकायत भी की है कि विश्वविद्यालय ने लम्बे समय सर वित्त उप समिति की बैठक नहीं की है जबकि एक्ट और राजकीय अधिसूचना के अनुसार वित्त उप समिति में ही समस्त प्रकरण जिनमें वित्तीय उपाशय निहित हो, प्रस्तुत होने चाहिए एवं समय से उसकी बैठक होनी चाहिए.

उन्होंने लिखा कि इस तरह की कई शिकायतें शासन के संज्ञान में हैं लेकिन शासन भी कार्यवाही के बजाय कुलपति से ही आख्या मांग लेता है. कुलपति भी सरकार के किसी भी पत्र का स्पष्ट उत्तर नहीं देते. कुलपति के खिलाफ कार्रवाई न होने की वजह से भ्रष्टाचार और अनिमितताओं में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है.

सांसद बृज भूषण सिंह ने चन्द्र शेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर में तैनात शिक्षकों और वैज्ञानिकों के शैक्षणिक पत्रों और नियुक्ति पत्रों के सत्यापन की बात भी कही है. उन्होंने लिखा है कि शैक्षणिक प्रपत्रों को लेकर कई शिकायतें हैं. विश्वविद्यालय में लगभग 150 ऐसे लोग हैं जिन्होंने सहायक प्रोफ़ेसर के लिए प्रत्यावेदन भी नहीं किया लेकिन उन्हें 9000 ग्रेड पे यूजीसी वेतनमान दिया जा रहा है इसकी वजह से सरकार पर हर महीने दो करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार आ रहा है. उन्होंने लिखा है कि जाँच में कुलपति, निदेशक प्रशासन या मानीटरिंग शासकीय आदेशों की अवहेलना के दोषी पाए जाएँ तो उनके खिलाफ तत्काल प्रशासनिक और विधिक कार्रवाई की जाए.

चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर की वित्त उप समिति की बैठक लम्बे समय से नहीं बुलाई गई है. जबकि हर बोर्ड मीटिंग से पहले वित्त उप समिति की बैठक करने का शासनादेश है. इस संदर्भ में वित्त नियंत्रक ने भी सरकार को पत्र लिखा है.

अर्थ नियंत्रक धीरेन्द्र कुमार तिवारी ने चंद्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति को लिखे पत्र में कहा है कि विश्वविद्यालय के प्रबंध मंडल की बैठक के पूर्व वित्त उप समिति की बैठक ज़रूर कर लें. इस पत्र में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निर्गत अधिसूचना दिनांक 04-04-1995 के प्रस्तर द के अनुसार ऐसे सभी मामलों में जिनमें वित्तीय उपाशय निहित हैं पहले वित्त उप समिति के सामने विचारार्थ रखे जायेंगे उसके बाद ही उप समिति की संस्तुतियों के साथ प्रबंध मंडल के सामने रखे जायेंगे.

पत्र में कुलपति से कहा गया है कि वह सम्बंधित अधिकारियों को आदेशित करें कि प्रत्येक प्रकरण जिनमें किसी भी प्रकार का वित्तीय उपाशय चाहे वह वेतनमान या फिर यूजीसी वेतनमान के लाभ से सम्बन्धित हो का प्रस्ताव तत्काल अर्थ नियंत्रक के कार्यालय को उपलब्ध कराया जाए जिससे प्रबंध मंडल की अगली बैठक के पूर्व ही वित्त उप समिति के सामने पेश किया जा सके.

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इससे पहले 10 अप्रैल 1995 को राज्यपाल के विधि परामर्शी चन्द्र भूषण पाण्डेय ने भी कुलपति को पत्र लिखकर कहा था कि कुलाधिपति ने यह आदेश दिया है कि वित्त उप समिति का गठन किया जाए. इस आदेश में साफ़ तौर पर कहा गया था कि कुलपति की अध्यक्षता में वित्त उप समिति का गठन किया जायेगा. इस समिति में वित्त, कृषि और शिक्षा विभाग के सचिव अथवा सचिव द्वारा नामित संयुक्त सचिव और प्रबंध मंडल के एक गैर सरकारी सदस्य वित्त उप समिति के सदस्य होंगे.

वित्त नियंत्रक, विशेष सचिव और राज्यपाल के विधि परामर्शी के आदेश के बावजूद चन्द्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर में वित्त उप समिति की बैठक बुलाने की ज़रूरत नहीं समझी जा रही है.

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