Wednesday - 10 January 2024 - 2:57 PM

पहले भी आ चुका है कोरोना, बस नया वाला थोड़ा अलग है

प्रीति सिंह

2013 में विश्व स्वास्थ्य संगठन वैसे ही सर्तक हुआ था जैसे दिसंबर 2019 में चीन में कोरोना वायरस के मरीज पाये जाने पर। उस समय मिडिल ईस्ट देशों में कोरोना वायरस की मौतों के बाद डब्ल्यूएचओ हरकत में आ गया था और दुनिया भर के देशों के लिए गाइड लाइन जारी किया था। 2013 में डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस के बारे में जितनी जानकारी दी थी वह आज के कोविड 19 से हुबहू मिलती है।

उस समय इस वायरस को मिडिल ईस्ट रेस्पायरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस (MERS-CoV) नाम दिया गया था। उस समय मिडिल ईस्ट के अधिकांश देश इससे प्रभावित हुए थे, जिनमें जार्डन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और कतर शामिल था।

इसका संक्रमण यूरोप के भी तीन देशों फ्रांस, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम में भी देखने को मिला था। उस समय भी यात्रियों द्वारा ही एक देश से दूसरे देश में कोरोना का संक्रमण फैला था। अब इसको लेकर डॉक्टरों का कहना है कि यदि उस समय इसकी दवा खोज ली गई होती तो शायद आज कोविड 19 की वजह से पूरी दुनिया तबाह न हो रही होती।

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MERS-CoV

पूरी दुनिया में कहर बरपाने वाली कोरोना वायरस की प्रजाति कोविड 19 नया नहीं है, हां बस थोड़ा सा अलग है। इसके बारे में हर रोज नये खुलासे हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि इससे दुनिया का पीछा तब तक पूरी तरह नहीं छूटेगा जब तक इसका टीका नहीं बन जाता। 2013 में भी यही कहा गया था कि कोरोना वायरस का कोई एंटीडोज नहीं है। लक्षणों के आधार पर ही इलाज करने की बात डब्ल्यूएचओ ने कही थी।

2013 में डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया था कि यह वायरस चमगादड़ के जरिए मनुष्यों में फैलता है। नवंबर 2013 के पहले सप्ताह तक सउदी में 151 हजयात्रियों में कोरोना का संक्रमण पाया गया था जिसमें 51 लोगों की मौत हो गई है। भारत में भी इसको लेकर एलर्ट जारी किया गया था, क्योंकि यहां से भारी संख्या में हजयात्रियों का जत्था सउदी गया था और ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही थी कि हज यात्रियों के जरिए देश में कोरोना वायरस आ सकता है।

मिडिल ईस्ट के देशों  में 2013 में जो कोरोना वायरस की चपेट में आए थे उनमें वहीं लक्षण दिखे थे, जो कोविड 19 के संक्रमित मरीजों में दिख रहा है। बुखार आना, सर्दी-जुकाम, सांस लेने में दिक्कत, खांसी आना, नाक का बहना, थकान व बदन दर्द और गले में निगलने में दिक्कत जैसे लक्षण सामने आए थे।

उस समय भी डॉक्टरों ने कहा था कि जब इंसानों में इस वायरस का प्रवेश होता है तो यह तेजी से फैलता है। इस बीमारी का एक्यूबेशन पीरियड पांच दिन का होता है। रोग के लक्षण मिलते ही रोगी को दो सप्ताह तक आइसोलेटेड कर चिकित्सकीय निगरानी में रखना होता है। इसका वायरस श्वसन तंत्र पर अधिक असर डालता है। वायरस समूह के रूप में रेस्पायरेटरी ट्रैक को सतह पर रहकर नुकसान पहुंचाते हैं। इस रोग की भी कोई दवा नहीं खोजी जा सकी थी।

इस वायरस से बचाव के लिए डब्ल्यूएचओ ने जो गाइडलाइन जारी की थी उसके मुताबिक लोगों से मरीज के सम्पर्क में आने से बचने के लिए कहा गया था। रोगी के कपड़े व विस्तर सैप्टिक लोशन से साफ करने की सलाह दी गई थी। छींकते व खांसते वक्त मुंह पर कपड़ा रखने की बात कही गयी थी। रोगी से मिलने से पहले मास्क लगाने के लिए कहा गया था और यह भी कहा गया था कि टिशू पेपर व प्रयोग हुए कपड़े को बंद पैकेट में रखें। रोगी के कमरे की सफाई करते समय विशेष सतर्कता बरतने की सलाह दी गई थी।

वरिष्ठ फीजिशियन डॉ. चक्रपाणि पांडेय कहते हैं, कोरोना तो बहुत पुराना वायरस है। ये एक वायरस फैमिली का नाम है जो ज़्यादातर नजला-ज़ुकाम, सर्दी, खांसी बुखार वगैरह के लिए जिम्मेदार होता है। 2013 में मिडिल ईस्ट के देशों में कोरोना का जो संक्रमण देखा गया था वह कोविड 19 से काफी मिलता-जुलता है। यदि उस समय MERS-CoV की दवा खोज ली गई होती तो निश्चित ही आज कोविड 19 के मरीजों के इलाज में मदद मिलती।

वह कहते हैं दरअसल उस समय इसका प्रभाव मिडिल ईस्ट के देशों तक ही सीमित रहा। संक्रमण भी धीरे- धीरे खत्म हो गया और दोबारा इसका अटैक नहीं हुआ। इसलिए इसको लेकर वैज्ञानिक सजग नहीं हुए। 

ऐसा था वायरस

2013 में कोरोना के बारे में ऐसा कुछ बताया गया था। कोराना वायरस कई वायरस का समूह होता है। इस वायरस से मिडिल ईस्ट रेस्पायरेटरी सिंड्रोम बीमारी होती है। बीमारी गंभीर होते ही मरीज की मौत हो जाती है। मुख्यत: इसका प्रभाव श्वसन तंत्र पर पड़ता है। समूह के कुछ वायरस पाचन तंत्र पर असर डालते हैं। इस वायरस की खोज कामन कोल्ड के रोगियो में पहली मर्तबा 1965 में हुई थी।

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