Saturday - 13 January 2024 - 8:47 PM

लॉकडाउन बनाम अनिवार्य टेस्टिंग: चीन बनाम सिंगापुर मॉडल

  • भारत सहित बड़ी आबादी वाले सभी देशो में टेस्टिंग नही लाक डाउन ही एकमात्र उपाय है

योगेश बंधु

मीडिया सहित, राजनीतिक विचारको और बुद्धजीवियों सहित आम जनमानस में आजकल इस विषय पर बहस जोरो पर है कि कोरोना से निपटने का एकमात्र उपाय है – टेस्ट , टेस्ट और टेस्ट। लेकिन ऐसा कहने वाले शायद वैश्विक तथ्यों से पूरी तरह परिचित नहीं हैं या जानबूझकर इसे नजरअंदाज कर रहे हैं। वास्तव में सभी नागरिको का आवश्यक परीक्षण का विचार गलत ही नहीं भ्रामक भी है। इसको हालिया एक दूसरी वैश्विक महामारी एड्स के संदर्भ में समझा जा सकता है।

1981 में एड्स की महामारी के बारे में पता चलने के बाद से अब तक इससे लगभग 30 करोड़ लोग जान गंवा बैठे हैं। वर्तमान में भारत में 21.40 लाख से ज़्यादा एड्स मरीज़ (AIDS Patients) दर्ज हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक हमारे देश में एड्स पीड़ितों की संख्या 30 लाख से भी ऊपर है। जैसा कि सभी जानते हैं एड्स एक संक्रामक बीमारी है और इस संक्रमण के फैलने के तीन मुख्य कारण हैं – असुरक्षित यौन संबंध, रक्त का आदान-प्रदान तथा माँ से शिशु में संक्रमण।

खून के सैंपल की जांच से किसी व्यक्ति को एड्स होने का पता लगाया जा सकता है। इस रोग के आरम्भिक लक्षणों में बुखार, वजन घटना, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं और मांसपेशियों में दर्द आदि है। तो क्या दुनिया में यौन सम्बंध रखने वाले, रक्त का आदान प्रदान करने वाले और गर्भवती महिलाओं को बुखार या वजन घटना या गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं अथवा मांसपेशियों में दर्द की शिकायत होने पर आवश्यक रूप से एड्स का टेस्ट किया जाता है – जवाब है नहीं।

उसी प्रकार से बुख़ार, सूखी खांसी और साँस लेने मे तकलीफ वुहान वायरस (CORONA-19) के आरम्भिक लक्षण हैं। लेकिन जैसे यौन संबंध, रक्त का आदान-प्रदान और गर्भवती होना, एड्स का टेस्ट कराने के लिए पर्याप्त आधार नही स्थापित करते। उसी प्रकार केवल बुख़ार या सूखी खांसी अथवा साँस लेने मे तकलीफ – कोरोना के टेस्ट कराने की अनिवार्यता के लिए पर्याप्त आधार नही हैं।

लेकिन अंतराष्ट्रीय मीडिया सहित एक विशिष्ट हित समूह जी जान से यह स्थापित करने में लगा है कि कोरोना से निपटने के लिए सभी नागरिकों का या अधिक से अधिक लोगों का टेस्ट कराना ही सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। ये वैसे ही है जैसे यौन सम्बंध रखने वाले सभी नागरिकों या रक्त लेने या देने वाले अथवा गर्भधारण करने वाली सभी महिलाओं का अनिवार्य रूप से एड्स के जाँच की अनिवार्यता।

उल्लेखनीय है कि बीमारी की व्यापकता और चिकित्सीय संसाधनो की सीमित उपलब्धता के कारण ना तो पहले एड्स के मामले में और ना ही आज कोरोना के मामले में सभी नागरिक का अनिवार्य रूप से टेस्ट कराना किसी भी देश के लिए सम्भव ही नही है।

ऐसे में संक्रमण रोकने के लिए पहली प्राथमिकता है स्वस्थ्य और संक्रमित लोगों के बीच में सम्पर्क को रोकना, जिसेक लिए आज दुनिया के सभी देश संक्रमण के किसी ना किसी चरण में लाक-ड़ाऊन को अपना रहे हैं। इसके बाद दूसरी प्राथमिकता है सभी सम्भावित संक्रमित लोगों का परीक्षण करना, जिसको उपलब्ध संसाधनो के अनुरूप सभी देश अपना रहे हैं।

30 जनवरी को केरल में , कोरोना का देश का पहला मामला सामने आने के बाद 6 अप्रैल को दूसरी बार ऐसा हुआ है जब देश में कोरोना के मरीज़ों की वृद्धि दर में कमी आयी है। पहली बार ऐसा 29 मार्च को हुआ था।

उल्लेखनीय है कि 29 मार्च तक देश में तबलीग़ी जमात का मामला सामने नहीं आया था। हालाँकि, 31 मार्च के बाद कोरोना के अधिकांश मामले तबलीगी जमात से जुड़े लोगों या इनके सम्पर्क में आए लोगों से सम्बंधित रहे हैं, ऐसे में यह संक्रमित लोगों की वृद्धि दर में कमी सरकार के प्रयासों की सही दिशा को बताता है।

इस तरह से कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा पहले लाक-डाउन का फ़ैसला और उसके बाद अब अधिक से अधिक संदिग्ध लोगों की जाँच पर ज़ोर देना , वर्तमान परिस्थितियों और वैश्विक स्तर पर उपलब्ध संसाधनो के अनुरूप सबसे बेहतर रणनीति है।

लेकिन देश में कुछ लोग सभी नागरिको का अनिवार्य परीक्षण कराने और इस कोरोना से बचाव या इलाज के लिए इस विचार को जोर शोर से बढ़ावा दे रहे हैं। मगर इस तरह की अफवाहों से जो अराजकता पैदा होगी उसकी कल्पना करना भी कठिन है। दूसरी ज्यादा महत्वपूर्ण बात – क्या किसी व्यक्ति परीक्षण करना इस बात की गारंटी है कि उसे कोरोना नहीं होगा – एकदम नही।

क्योंकि, किसी को संक्रमण ना होना इस बता पर निर्भर करेगा कि वह व्यक्ति किसी अन्य संक्रमित मरीज के संपर्क में न आये , जिसके लिए जरूरी है कि दोनों को कम से कम सोलह दिन की अवधि के लिए अलग रखा जाये यानि लाक डाउन। सीमित चिकित्सीय संसाधनो की वजह से यूरोप के किसी भी देश या अमेरिका में भी ऐसा करना सम्भव नही है।

सभी नागरिको की अनिवार्य टेस्टिंग पर जोर देने वाले लोग इस तथ्य से अनजान हैं कि जिस सिंगापुर माडल की बात वो कर रहे हैं वहां पर भी अभी तक केवल 65000 टेस्ट किये गए हैं, जो 1 अप्रैल तक भारत में किये गए कुल परीक्षणों (167,235) के आधे से भी कम है। दूसरी महत्वपूर्ण बात सिंगापुर की कुल आबादी महज 56 लाख है, उसके बाद भी वह अपने सभी नागरिको का अनिवार्य परीक्षण नही कर पाया।

1 अप्रैल तक वहां कोरोना के कुल 774 मरीज थे जिनमे से 559 (लगभग 65 प्रतिशत) किसी ना किसी तरह से विदेशी संपर्क वाले थे, जिन्हें पहचानना और अलग रखना आसान था। इन चिन्हित मरीजों और उनके परिवारों के साथ बहुत कडाई से पेश आते हुए सख्त पहरे में समाज से एकदम अलग रखा गया। इसके विपरीत भारत में पिछले कुछ दिनों में भारत में कोरोना संक्रमित मरीजो को जिस तरह से खोजना पड रहा है वो सिंगापुर क्या किसी भी अन्य देश से अलग, अपने आप में अनोखी चुनौती है।

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गुरुवार (9 अप्रैल 2020) की दोपहर तक देश के 31 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 285 जिले कोरोना वायरस की चपेट में हैं। इनमें पांच राज्य व केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं, जिनके सभी 30 जिले अथवा शहर कोरोना वायरस का प्रकोप झेल रहे हैं। वहीं 31 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 730 जिलों अथवा शहरों में से 445 ऐसे हैं, जहां अब तक कोरोना वायरस नही पहुँच पाया है।

कोरोना वायरस से जीतना है तो उसे जहां है वहीं तक सीमित रखकर खत्म करना होगा। इनमें भी अस्सी फीसदी केस केवल 62 जिलों में मिले हैं। बचाव के लिए जरूरी है कि उत्तर प्रदेश की तरह अन्य राज्य भी इन सबसे ज्यादा संवेदनशील जिलों के हॉटस्पाट को पूरी तरह से तब तक अलग रखकर उसकी निगरानी करें, जब तक कि इन स्थानों से नए संक्रमित मरीजो की संख्या शून्य ना हो जाए।

किसी भी जिले में हॉटस्पाट ऐसे विशेष स्थान हैं, जहाँ एक साथ कोरोना के छ: या अधिक मरीज पाए जाते हैं| कोरोना से संक्रमित ऐसे जिले जहां मरीजो की संख्या एक दो तक सीमित है, उनमें सबसे ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत है, जिसे संक्रमण के विस्तार को वहीं रोका जा सके। शेष जिन 445 जिलो में अभी तक कोरोना नही पहुंचा है उन जिलो की सीमा को अभेद्य बनाना होगा जिससे किसी भी दशा में संक्रमण वहां न अपहुँच पाए। इसके लिए हमें चीन द्वारा आजमाई गयी रणनीति को अपनाते हुए उन्हें भौगोलिक रूप से अलग रखना होगा, जिससे किसी भी दशा में संक्रमण वहां ना पहुंचे।

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आज चीन तीन महीनो में ही कोरोना के जनक वुहान को उसकी सामान्य दशा में लाने में इसीलिए समर्थ हो पाया है क्योंकि उसने संक्रमण काल में वुहान का सम्पर्क शेष चीन से पूरी तरह समाप्त कर दिया था, जिसे उसके पड़ोसी दश जापान सहित दुनिया के सभी अमीर गरीब देश अपना रहें हैं, क्योंकि कितना अभी संपन्न देश हो कोरोना के विस्तार को केवल संसाधनों के बल पर नही रोक सकता। इस पूरे प्रकरण में संतोषजनक बात यह है कि कोरोना से इस लड़ाई में तमाम दिक़्क़तों के बाद भी पूरा देश एकजुट होकर सरकार के साथ खड़ा है।

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)

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