Friday - 5 January 2024 - 5:01 PM

पेयजल-महिलाओं का संघर्ष एवं सफलता

पंकज कुमार (वाटर एड इंडिया) 

अधेड़ उम्र की सरस्वती देवी के लिए गर्मियों का सीजन दुःखभरा वक्त होता है। “गर्मियों में अक्सर पानी का स्तर काफी नीचे चला जाता है, जिससे बहुत मशक्कत करने पर भी चापाकल से पानी नहीं निकलता है,” सरस्वती देवी कहती हैं।

उन्होंने बताया, “हमें डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित स्कूल के चापाकल से पानी लाना पड़ता है और अगर रात हो जाए, तो पड़ोस के गांव में जाना पड़ता है। दूसरों के घरों में जाते हैं, तो उन घरों के लोग सामने ही बैठे होते हैं और उनके बीच हमें पानी भरना पड़ता है। वे लोग हमें देखते रहते हैं। उस समय बहुत शर्म आती है।”

गया जिले के मानपुर प्रखंड में कइया ग्राम पंचायत के बेलहंटी टोले की रहने वाली सरस्वती देवी की ये समस्या उनकी इकलौती समस्या नहीं है। इस टोले में रहने वाले करीब दो दर्जन परिवारों की महिलाएं पेयजल को लेकर इसी तरह की दिक्कतों का सामना कर रही हैं क्योंकि टोले में एक ही ट्यूबवेल है, जो गर्मियों में सूख जाता है। ऐसे में यहां की महिलाओं को गर्मियों के मौसम में कमोबेश रोज ही पेयजल के लिए कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।

पिछले साल आई राष्ट्रीय महिला आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण महिलाओं को अब भी पेयजल के स्रोत तक पहुंचने के लिए 2.5 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।

रिपोर्ट कहती है, “महिलाएं वजनदार बर्तन में पानी भर कर घर लाती हैं। घर आकर आराम भी नहीं करती हैं और खाना पकाने, बर्तन धोने, कपड़े साफ करने, बच्चों की देखभाल और मवेशियों की देखरेख में लग जाती हैं। इसके बाद शाम को दोबारा पानी लाती हैं। इस तरह ग्रामीण महिला का जीवन कठिन परिश्रम से भरा हुआ है।”

राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट में जिन बातों का जिक्र है, उन समस्याओं का सामना यहां की महिलाएं रोज करती हैं। गांव की एक अन्य 25 वर्षीय महिला रेशमी देवी कहती हैं, “स्कूल से पानी लाने में ढाई से तीन घंटे खर्च हो जाते हैं क्योंकि अकेले एक बार में ज्यादा पानी नहीं ला सकते हैं। इसके लिए कई बार जाना पड़ता है।”

अगर दुर्भाग्य से देर रात ट्यूबवेल खराब हो गया या ट्यूबवेल से पानी आना बंद हो गया, तो उन्हें बिना पानी के भी रात गुजारनी पड़ती है।
रेशमी देवी ऐसी ही एक घटना की जिक्र करती हैं। “डेढ़ साल पुरानी घटना है। ट्यूबवेल का पाइप पुराना था, जो रात में फट गया। उस दिन हमलोग खाना भी नहीं बना पाये थे। सुबह हुई तो हम सब पानी के लिए स्कूल की तरफ दौड़े,” वे कहती हैं।

ये टोला खेत के बीचोंबीच बसा हुआ है। पक्की सड़क से एक पतली व कच्ची पगडंडी इस टोले की तरफ जाती है। आगे जाकर एक नहर आती है, जिस पर बिजली के लैम्पपोस्ट डाल दिये गये हैं। ये लैम्पपोस्ट पुल का काम करता है।

सिर्फ एक ट्यूबवेल होने और गर्मी के मौसम में उससे पानी नहीं निकलने के चलते पिछले कुछ महीनों में कुछ रिश्ते भी इस टोले से लौट चुके हैं। सरस्वती देवी कहती हैं, हाल के महीनों में कम से कम दो युवकों का रिश्ता लौट चुका है।

गया जिला बिहार के उन जिलों में शामिल है, जहां बारिश अपेक्षाकृत कम होती है और भूगर्भ जल का दोहन अधिक होता है। सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की साल 2020 की समीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक, गया के तीन ब्लॉक के भूगर्भ जल का अति-दोहन होता है। इन तीन ब्लॉक में मानपुर भी शामिल है।

मानपुर ब्लॉक के बेलहंडी टोले से कुछ किलोमीटर दूर स्थित सनौत पंचायत के 35 घरों वाले हरिजन टोले की स्थिति भी बेलहंटी जैसी ही है। यहां एक ट्यूबवेल पर 15 परिवार निर्भर हैं और गर्मियों ने इन परिवारों की महिलाओं को भी पेयजल के लिए जूझना पड़ता है।

हरिजल टोले की 45 वर्षीया मंदोदरी देवी कहती हैं, “गर्मियों में तो हालत ये हो जाती है कि एक बाल्टी पानी डालने पर ट्यूबवेल से पानी निकलता है, लेकिन पानी इतना कम आता है कि एक बाल्टी पानी भरने में आधा घंटे से ज्यादा समय लग जाता है। कई बार तो पानी डालने पर भी चापाकल काम नहीं करता है, तो हमें खेतों में चलने वाले सब्मर्सिबल पम्प से पानी भरना पड़ता है।”

हरिजल टोले की रहने वाली आरती देवी को छोटे-छोटे चार बच्चे हैं। उन्हें दूसरी जगह से पानी लाने के लिए अपने बच्चों को दूसरी महिलाओं के हवाले करना पड़ता है। “पानी नहीं लायेंगे, तो पति काम पर नहीं जा पायेंगे, खाना नहीं बन पायेगा, इसलिए बच्चों को दूसरों के भरोसे छोड़कर पानी लाते हैं।”

गर्मियों में भूगर्भ जलस्तर से और नीचे चले जाने से पेयजल के इंतजाम के लिए महिलाओं को जो संघर्ष करना पड़ता है, वो न केवल इनका कीमत वक्त खा जाता है बल्कि कई बार वे देर होने के चलते काम पर भी नहीं जा पाती हैं और काम पर नहीं जाने का मतलब है 200 से 300 रुपए का नुकसान।

चूंकि दोनों ही टोलों में दलित समुदाय के लोग रहते हैं और वे भूमिहीन है, तो उनके पास कमाई का जरिया सिर्फ मजदूरी है, जो नियमित नहीं मिलती है। इसलिए 200 से 300 रुपए का नुकसान भी इनके लिए बहुत मायने रखता है।

पानी की किल्लत न केवल इन टोलों की महिलाओं को प्रभावित करती है बल्कि यहां की छात्राएं भी इससे खासा परेशान रहती हैं। 18 वर्षीय पूनम कुमारी स्नातक कर रही हैं। वह गर्मियों के दिनों को याद करते हुए कहती हैं, गर्मी में अक्सर पानी के लिए खेतों के सब्मर्सिबल पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन जब खेतों में सिंचाई नहीं होती थी, तो और मुश्किल होती थी। कई बार पानी नहीं होने के चलते मैं स्कूल नहीं जा पाती थी।पूनम शिक्षक बनना चाहती हैं। “पानी की किल्लत के चलते जब मैं स्कूल नहीं जा पाती थी, तो लगता था कि मैं शिक्षक बन पाऊंगी कि नहीं,” पूनम ने बताया।

10वीं में पढ़ रही मधु कुमारी कहती हैं, “कई बार दूर से पानी लाने में देर हो जाती थी, तो स्कूल नहीं जा पाती थी तो कई बार घर में पानी नहीं होने के चलते स्कूल नहीं जाती थी। दूसरे दिन स्कूल जाती, तो मेरे सहपाठी पूछते थे कि मैं स्कूल क्यों नहीं आई थी। मैं बताती कि घर में पानी नहीं था, तो वे मजाक उड़ाते थे।”

लेकिन, पिछले साल दोनों ही टोले में वाटरएड इंडिया ने चापाकल की गहराई बढ़ाई और दोनों चापाकल की देखरेख के लिए जल उपभोक्ता समिति बना दी। इस कमेटी में स्थानीय महिलाएं शामिल हैं। चापाकल की गहराई बढ़ने से दोनों ही टोले की महिलाएं खुश हैं क्योंकि अब उन्हें जीवन की तमाम चिंताओं के बीच पानी की अतिरिक्त चिंता नहीं है।

हरिजन टोले की गिरिजा देवी कहती हैं, “अब हमें पानी की किल्लत से दो चार नहीं होना पड़ता है। जब से ट्यूबवेल की गहराई बढ़ी है, पानी नहीं छोड़ता है। ट्यूबवेल अब चलाने में भी हल्का हो गया है।”

आरती देवी कहती हैं, “पहले तो हालत ये थी कि हमलोगों से चापाकल नहीं चलता था, लेकिन अब तो मेरी चार साल की बेटी भी पानी चला लेती है। पानी की चिंता अब बिल्कुल नहीं है।”

जल उपभोक्ता समिति में शामिल महिलाएं हर महीने कुछ महिलाएं मामूली रुपए देती हैं। इन रुपयों को आपातकाल स्थिति में बेहद न्यूनतम ब्याज पर महिलाओं को कर्ज के रूप में दिया जाता है और यही रुपए चापाकल की मरम्मत में इस्तेमाल होते हैं।

बरेव के हरिजल टोले में बनी समिति से जुड़ी गिरिजा देवी कहती हैं, “अब तक दो-तीन परिवारों को बच्चों के इलाज के लिए कर्ज दिया जा चुका है।” हमलोग फंड का इस्तेमाल टोले की महिलाओं को स्वनिर्भर बनाने के लिए करना चाहते हैं। हमलोग शादियों में इस्तेमाल होने वाले बर्तन खरीदने की योजना बना रहे हैं। इन बर्तनों को भाड़े पर लगाएंगे और इससे होने वाली कमाई से स्वरोजगार का इंतजाम किया जाएगा।

हरिजन टाले में नल-जल स्कीम पहुंच गई है, लेकिन जो घर ऊंचाई पर है वहां नल होने के बावजूद पानी नहीं पहुंच रहा है, इसलिए टोले के अधिकांश घरों को नल-जल से फायदा नहीं हो रहा है। वहीं बेलहंडी टोले में नल-जल योजना अब तक नहीं पहुंची है।

दोनों ही टोले की महिलाओं की सरकार से दरख्वास्त है कि कम से कम पेयजल के लिए पर्याप्त इंतजाम किया जाए, ताकि वे दूसरी प्राथमिकताओं पर ध्यान दे सकें।

 

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