Wednesday - 10 January 2024 - 8:26 AM

बिहार : शासन-प्रशासन की लापरवाही से मरे हैं बच्चे

न्यूज डेस्क

बिहार के मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से हुई बच्चों की मौत के लिए शासन-प्रशासन जिम्मेदार है। प्रशासनिक विफलता और राज्य की उदासीनता की वजह से डेढ़ सौ मासूम बच्चों की मौत हुई।

बिहार सरकार इस त्रासदी की वजह से लगातार सवालों के घेरे में है। अब तो इस त्रासदी की जांच के लिए गये डॉक्टरों के समूह ने भी इसके लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।

नीतीश सरकार इस मामले में कभी गंभीर थी ही नहीं। नीतीश कुमार का यह दूसरा कार्यकाल है। सत्ता में रहते उनको सात साल होने को है और वह अब तक इस बीमारी से निपटने के लिए कोई उपाय नहीं ढूंढ पाये हैं। जबकि यह बीमारी आज की नहीं है। पिछले दो दशक से इस महामारी से बच्चे मर रहे हैं।

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि एक ओर बच्चे एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से मर रहे हैं और सरकार अपनी लापरवाही छिपाने के लिए अज्ञात बीमारी का राग अलाप रही है। लीची को जिम्मेदार ठहरा रही थी।

मुजफ्फरपुर जिले में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से हाल ही में हुई बच्चों की मौतों की स्वतंत्र जांच करने वाले डॉक्टरों के एक समूह ने इस त्रासदी के लिए प्रशासनिक विफलता और लोगों के प्रति राज्य की उदासीनता को जिम्मेदार ठहराया है।

प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट्स फोरम (पीएमएसएफ) के बैनर तले डॉक्टरों की एक तथ्यान्वेषी टीम द्वारा तैयार प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर बच्चे कुपोषित थे और किसी का भी इलाज नहीं हुआ था। इसके अलावा, उनमें से किसी के पास भी विकास निगरानी कार्ड नहीं थे।

समूह में नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टर भी थे।

डॉक्टरों के समूह ने यह भी दावा किया गया है कि अधिकांश मृत बच्चों के माता-पिता की सार्वजनिक वितरण प्रणाली तक पहुंच नहीं थी, क्योंकि उनके पास राशन कार्ड नहीं थे।

डॉक्टरों की टीम ने कहा, ‘इन परिस्थितियों में इस तरह की त्रासदी होनी ही थी। राज्य सरकार अपनी लापरवाही को छिपाने के लिए अज्ञात बीमारी का राग अलाप रही है। वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे हैं, तब तक राज्य को स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने पर गंभीरता से काम करना चाहिए, जिससे इस तरह की त्रासदी को रोका जा सके।’

मालूम हो कि बिहार में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम की चपेट में 150 से अधिक मौतें हुई हैं। अकेले मुजफ्फरपुर में अब तक 132 बच्चे मारे जा चुके हैं।

पीएमएसएफ के राष्ट्रीय संयोजक और एम्स रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. हरजीत सिंह भाटी ने कहा कि ये मौतें पिछले दस वर्षों से हो रही हैं और अभी भी खास बीमारियों या क्षेत्र में अतिसार जैसी आम बीमारी के लिए कोई निवारक तंत्र और स्वास्थ्य जागरूकता नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘पेयजल की भारी कमी है और पूरे मुजफ्फरपुर में समुचित सीवरेज प्रणाली नहीं है। स्वास्थ्य केन्द्रों में सफाई की स्थिति खराब है।’

टीम ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है, ‘आशा कार्यकर्ता, उप-केंद्रों और आंगनबाड़ी सेवाओं की संख्या और कार्यों में कमी है और लोगों का स्थानीय स्वास्थ्य प्रणाली में विश्वास नहीं है। टीकाकरण सेवाएं खराब हैं।’

रिपोर्ट में कहा गया है कि मुजफ्फरपुर स्थित श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एसकेएमसीएच), जहां सबसे ज्यादा बच्चों की मौत रिकॉर्ड की गई, यहां के आपातकालीन कक्ष में एक दिन में 500 रोगियों की देखभाल के लिए केवल चार डॉक्टर और तीन नर्स थे और दवाओं और उपकरणों की भारी कमी थी। इसके अलावा आईसीयू में भी पर्याप्त चिकित्सकीय सुविधाएं मौजूद नहीं थीं।

किसी अधिकारी के खिलाफ नहीं हुई कार्रवाई

डॉक्टरों की टीम ने दावा किया कि विभिन्न स्तरों पर खामियों के बावजूद किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।  रिपोर्ट में यह भी कहा गया, ‘यह भी देखा गया कि कुछ मामलों में हाइपोग्लाइसीमिया से पीडि़त बच्चों को इलाज के बाद कुछ घंटों के अंदर डिस्चार्ज कर दिया गया और घर पर फिर से हाइपोग्लाइसीमिया की चपेट में आकर उनकी मौत हो गई।’

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com