Sunday - 14 January 2024 - 2:24 PM

वन्यजीवों की 22 प्रजातियां भारत में विलुप्त

प्रतीकात्मक फोटो

न्यूज डेस्क

एक ओर देश की आबादी बढ़ रही है तो दूसरी ओर भारत सेकई जानवर और पेड़-पौधों की प्रजातियां विलुप्त हो रही है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ बाढ़ आपदा के रूप में देखने को मिल रहा है। निश्चित ही जब असंतुलन की स्थिति आयेगी तो विनाश शुरु होगा। इन सबके बावजूद हम सचेत नहीं हैं।

वाइल्डलाइफ सर्वे ऑर्गनाइजेशन के अनुसार भारत से कई जानवर और पेड़-पौधों की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इसके लिए कई वजहों को जिम्मेदार बताया है। रिपोर्ट में 1750 से लेकर साल 1876 तक के आंकड़े दिए गए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक जीवों की चार प्रजातियां और वनस्पतियों की 18 प्रजातियां पिछले कई वर्षों में भारत से विलुप्त हो चुकी हैं। इस महीने की शुरुआत में लोकसभा में मंत्रालय की ओर से ये मुद्दा भी उठाया गया था।

बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया  (BSI) के निदेशक ए.ए. माओ ने कहा कि भारत दुनिया में सभी वनस्पतियों के 11.5 प्रतिशत का घर है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की नई स्टडी में पता चला है कि 1750 के बाद से पक्षियों, स्तनधारियों और उभयचरों की तुलना में दोगुने से अधिक पौधे गायब हो चुके हैं।

बीएसआई के मुताबिक, पौधों की 18 प्रजातियां (जिसमें 4 बिना फूल वाले औऱ 14 फूल वाले) विलुप्त हो चुकी हैं। 1882 में Lastreopsis wattii (लास्ट्रेप्सिस वाट्टी) जॉर्ज वॉट ने मणिपुर में एक फर्न और जीनस ओफीर्रिहिजा (Ophiorrhiza brunonis, Ophiorrhiza caudate and Ophiorrhiza radican ) से तीन प्रजातियां खोजी थीं। वहीं, म्यांमार और बंगाल रीजन में विलियम रोक्सबर्ग द्वारा खोजी गई Corypha taliera Roxb, एक ताड़ की प्रजाति भी विलुप्त है।

स्तनधारियों की बात करें तो चीता (Acionyx jubatus)  और सुमाट्रान गैंडा  (Dicerorhinus sumatrensisi) भारत में विलुप्त माने जाते हैं। 1950 के बाद से गुलाबी सिर वाले बतख (Rhodonessa caryophyllaceai) के विलुप्त होने की आशंका है। हिमालयी बटेर (Ophrysia supercililios) की 1876 तक होने बात सामने आई है।

भारतीय प्राणि सर्वेक्षण के निदेशक कैलाश चंद्र ने कहा कि चार जानवर दुनिया के अन्य हिस्सों में पाए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि

भारत में दुनिया के सभी जीव प्रजातियों का लगभग 6.49 प्रतिशत हिस्सा पाया जाता है। वहीं, मंत्रालय का कहना है ‘प्रतिस्पर्धा, प्राकृतिक चयन, शिकार और निवास स्थान में गिरावट जैसे मानव प्रेरित कारक इन प्रजातियों के विलुप्त होने की कुछ वजहें हैं।’

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