Sunday - 7 January 2024 - 7:28 AM

दुनिया में हर साल पैदा हो रहे हैं 16 लाख जुड़वां बच्चे

जुबिली न्यूज डेस्क

बीते कुछ सालों में दुनिया में जुड़वा बच्चों की संख्या काफी बढ़ गई है। एक समय था जब कभी-कभार जुड़वा बच्चे पैदा होने की खबर सुर्खियां बटोरती थी लेकिन अब यह आम बात होती जा रही है। यह चलन जहां बेहतर होती कुछ चीजों की तरफ इशारा कर रहा है तो दूसरी तरफ इसे लेकर चिंताएं भी बहुत हैं।

पूरी दुनिया में लगभग हर 40 में एक बच्चा जुड़वां बच्चे के रूप में पैदा हो रहा है। यह संख्या पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा है। डॉक्टरों की मदद से होने वाली जुड़वा बच्चों की पैदाइश को इसके लिए सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है।

 

साइंस जर्नल ह्यूमन रिप्रोडक्शन में छपी एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक पूरे विश्व में हर साल 16 लाख जुड़वां बच्चे पैदा हो रहे हैं।

इस मामले में रिसर्च में शामिल ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रो. क्रिश्टियान मोंडेन का कहना है, “जुड़वां बच्चों की तुलनात्मक और विशुद्ध संख्या विश्व में बीसवीं सदी के मध्य के बाद अब सबसे ज्यादा है और यह सर्वकालिक रूप से सबसे ज्यादा रहने की उम्मीद है।”

साल 1970 के दशक से विकसित देशों में प्रजनन में मदद करने वाली तकनीक यानी एआरटी का उदय हुआ। इसके बाद से इसने जुड़वां बच्चों के जन्म के मामलों में बड़ा योगदान दिया है।

ये भी पढ़े: तिहाड़ जेल में बंद आतंकियों के पास कैसे पहुंचा मोबाइल फोन

ये भी पढ़े: पंजाब में 169 दिन से रेलवे ट्रैक पर प्रदर्शन कर रहे किसान क्यों हटें ?

ये भी पढ़े: ‘भाजपा को वोट न दो, इसने तो पूरा देश बर्बाद कर दिया’

ये भी पढ़े:तो इस दिन से खुलेंगे केदारनाथ के कपाट

अब आलम यह है कि अब बहुत सी महिलाएं ज्यादा उम्र में मां बन रही हैं और फिर उनके जुड़वां बच्चे होने के आसार बढ़ जाते हैं। पहले की तुलना में अब गर्भनिरोधक का इस्तेमाल बढ़ गया है। महिलाएं अपना परिवार ज्यादा उम्र में अकेले रहने के बाद शुरू कर रही हैं और इसके साथ ही कुल मिला फर्टिलिटी रेट में आई गिरावट को भी इसके लिए जिम्मेदार बताया गया है।

अव्वल है अफ्रीका

शोधकर्ताओं के मुताबिक इसके लिए उन लोगों ने 135 देशों से साल 2010-2015 के बीच के आंकड़े जुटाए। जुड़वां बच्चों के पैदा होने की दर सबसे ज्यादा अफ्रीका में है।

हालांकि शोधकर्ताओं ने इसके लिए अफ्रीका महाद्वीप और बाकी दुनिया के बीच जेनेटिक फर्क को इसके लिए जिम्मेदार माना है। एक शोधकर्ता ने बताया कि संसार के गरीब देशों में जुड़वां बच्चों की संख्या बढऩे से चिंता भी है।

ये भी पढ़े: ममता की ‘चोट’ से कैसे उबरेगी भाजपा?

ये भी पढ़े: मुख्य सचिव की रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं निर्वाचन आयोग

 

प्रो. क्रिश्टियान मोंडेन का कहना है, “जुड़वां बच्चों की पैदाइश के साथ शिशुओं और बच्चों की मौत की उच्च दर भी जुड़ी है साथ ही महिलाओं और बच्चों में गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद ज्यादा जटिलता भी होती है।”

वहीं इस मामले में रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखक जरोएन स्मिट्स का कहना है, “कम और मध्यम आय वाले देशों में जुड़वां बच्चों पर और ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है। सब सहारा अफ्रीका में तो खासतौर से बहुत सारे बच्चे अपने जुड़वां को जीवन के पहले साल में ही खो देते हैं, हमारी रिसर्च के मुताबिक यह संख्या हर साल 2-3 लाख तक है।”

शोधकर्ताओं का कहना है कि जुड़वां बच्चों की संख्या में इजाफा मुख्य रूप से “फ्रैटर्नल ट्विंस” यानी उन बच्चों में हो रही है जो दो अलग निषेचित अंडाणुओं से पैदा होते हैं। आडेंटिकल ट्विंस जिन्हें मोनोजाइगट भी कहा जाता है उनकी संख्या लगभग वही है यानी एक हजार बच्चों में एक।

ये भी पढ़े:राहुल गांधी ने क्यों कहा-भारत अब लोकतांत्रिक देश नहीं रहा 

ये भी पढ़े:Pulast Tiwari Encounter : कोर्ट ने दिया पुलिसवालों पर FIR के आदेश    

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com