Sunday - 7 January 2024 - 2:12 AM

नौकरशाही को सिर पर बिठाने से एक बार फिर योगी सरकार की किरकिरी

केपी सिंह

नौकरशाही को सिर पर बिठाने के रवैये के कारण उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को एक बार फिर किरकिरी झेलनी पड़ी। अमेठी के डीएम प्रशांत कुमार शर्मा को हाईकोर्ट से कुछ ही दिन पहले कड़ी फटकार मिली थी। फिर भी उन्हें शासन का संरक्षण जारी था। इसके बाद उन्होनें हत्या के शिकार मृतक के भाई के साथ कालर पकड़कर अभद्रता कर डाली। जिसके साथ यह दुर्व्यवहार किया गया वह भी पीसीएस अफसर है।

इसका वीडियो वायरल होने और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी जो कि अमेठी से ही सांसद हैं और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी का टवीट सामने आने के बाद मामले के तूल पकड़ने पर सरकार ने आखिरकार उन्हें हटा दिया है और उनके स्थान पर मुरादाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष अरुण कुमार को स्थानांतरित कर अमेठी के डीएम की बागडोर सौंप दी है।

मगरूर होने के चलते ही हाईकोर्ट ने किया था दंडित

प्रशांत कुमार शर्मा के खिलाफ कार्रवाई तो तभी हो जानी चाहिए थी जब हाईकोर्ट ने कुछ ही दिन पहले उन पर एक्शन लिया था जो उनके मगरूर हो जाने की इंतहा का परिणाम था। एक प्रधान के मामले में हाईकोर्ट ने जो निर्देश दिये थे उनको अमल में लाने की बजाय प्रशांत ने झूठा हलफनामा अदालत को भिजवा दिया। इसके बाद जब अदालत ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से तलब किया तो वे हाजिर नही हुए। उच्च न्यायालय इसके बाद सख्त हो गया और उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया। तब वे आनन-फानन हाईकोर्ट पहुंचे तो अदालत ने उन्हें हिरासत में ले लिया।

अदालत उठने तक वे कस्टडी में रहे और माफी मांगने के बाद छूट सके। पर शासन ने इसे संज्ञान में नही लिया जबकि महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति की ऐसी गुस्ताखी सामने आने पर बदनामी तो शासन की भी होती है। पर प्रशांत शर्मा शासन के एक अत्यंत वरिष्ठ अधिकारी के संबंधी हैं इसलिए सैया भये कोतवाल फिर डर काहे का की तर्ज पर उन्होंने किसी की परवाह करना बंद कर दिया था। उन्हें फिलहाल प्रतीक्षारत किया गया है। लेकिन वे बहुत ज्यादा दिनों तक शायद ही लूप लाइन में रहें।

वर्तमान सरकार में कई अधिकारी ऐसे हैं जिन्हें कोताही के चलते हटाया गया। लेकिन बाद में वे फिर अच्छी जगह पुर्नस्थापित हो गये। चूंकि अच्छी पोस्टिंग देने के मामले में शासन ने बहुत सीमित दायरा अपना रखा है। वंचित जातियों के अधिकारियों को एक भी अच्छा अवसर देकर आजमाना शासन को गंवारा नही है। कुछ जातियों को उस पर भी अगर अधिकारी के संबंधी शासन में उच्च पद पर हों तो सोने में सुहागा हो जाता है, उपकृत किया जाता है इसलिए घूम फिर कर कुछ ही अधिकारियों पर मेहरबानी होते रहना लाजिमी है।

राम राज्य को सिर्फ अलापने से गुजर नहीं

वैसे हाईकोर्ट ने जिस मामले में प्रशांत को दंडित किया था वह एक बानगी थी जिससे सबक लिया जाना चाहिए था। योगी सरकार राम राज्य की बात करती है। भगवान राम के राज्य में सर्वोच्च प्राथमिकता आम फरियादी की गुहार की थी। इसलिए वे अपने दरबार में आने वाले पीडि़तों की बात सुनकर उनका निदान करने तक सीमित नही रहते थे। बल्कि रात में भेष बदलकर घूमते थे और जायजा लेते थे कि आम प्रजा में से किसी के साथ अन्याय तो नही हो रहा और राज्य के कारिंदे उसका संरक्षण करने में लापरवाही तो नही बरत रहे। योगी सरकार में इसके विपरीत है।

अकेले प्रशांत कुमार नही ज्यादातर डीएम, एसपी फरियादियों की शिकायतों के वास्तविक निस्तारण के लिए गंभीर नही हैं। इसके लिए हर जिले में सुबह जनता की सुनवाई की हुई व्यवस्था ढकोसला से ज्यादा कुछ नही है। जब हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी अधिकारी किसी की समस्या का निदान करने की जुर्रत नही करते तो अंदाजा लगाइये कि सामान्य तौर पर शिकायतों के मामले में वे क्या करते होगें। लोगों की शिकायतों को गंभीरता पूर्वक सुनने और उनकी गहराई से छानबीन कराने से कई ऐसी बातें उजागर होती हैं जो कि गवर्नेंस को खोखला करने की साजिश को उजागर करती हैं। इसलिए अगर शिकायतों पर प्रभावी कार्रवाई की व्यवस्था हो जाये तो पूरा तंत्र दुरुस्त हो सकता है और सुशासन की संकल्पना चरितार्थ नजर आ सकती है।

इस मामले में ज्यादा से ज्यादा शिकायतें निस्तारित करने वाले डीएम, एसपी को हर महीने पुरस्कृत किया जाता है लेकिन यह पुरस्कार दरअसल ज्यादा से ज्यादा धूर्तता का होता है। निस्तारण के नाम पर केवल कागजी कार्रवाईयां की जाती हैं। कई प्रार्थना पत्रों पर वरिष्ठ अधिकारी को अपना कवरिंग लैटर लगाकर दूसरे विभाग को संदर्भित करने की जरूरत साफ दिखाई देती है पर क्या ऐसा होता है। 1076 नंबर भी एक ड्रामा है जिससे लोग ऊबने लगे हैं लेकिन लोग जायें तो जायें कहां। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक भी किसी को पीडि़त का आर्तनांद सुनने की फुर्सत नही है। कोई कार्रवाई होती भी है तो तब जब मीडिया या सोशल मीडिया पर कोई बात वायरल हो जाती है। यह ढर्रा बदला जाना चाहिए वरना शासन के प्रति असंतोष बढ़ता ही जायेगा। प्रदेश के उपचुनावों में सत्तारूढ़ दल को जो झटका लगा है उससे यह आशंका चरितार्थ रूप से सामने आ गई है।

यह था अमेठी का मामला

अमेठी में भाजपा के नेता शिवनायक सिंह के बेटे विजय कुमार सिंह उर्फ सोनू सिंह की गौरी गंज थाना से आधा किलोमीटर के करीब की दूरी पर गोलियों से मारकर हत्या कर दी गई थी जिसमें पुलिस की कोताही की बात साफ-साफ उजागर है। इसीलिए पोस्टमार्टम हाउस पर मृतक के परिजनों ने हंगामा काट दिया। डीएम प्रशांत कुमार इससे बौखला गये। उन्होंने माहौल की नजाकत का ध्यान नही रखा और मृतक के चचेरे भाई सुनील सिंह पर कालर पकड़कर बरसना शुरू कर दिया। वे पुलिस का बचाव कर रहे थे। कह रहे थे कि हमारे अधिकारी रात भर लगे रहे क्या कोई अधिकारी चाहता है कि उसके क्षेत्र में मर्डर हो जाये और क्या मर्डर जैसी घटना दुनियां में कहीं रोकी जा सकती है। उनके यह तेवर किसी ने वीडियो में कैद कर लिए। हालांकि बाद में जब स्मृति ईरानी का यह ट्वीट आया कि हम लोग जनता के सेवक हैं शासक नही इसलिए हमें संवेदनशील और विनयशील व्यवहार करना चाहिए तो डीएम ने सुनील सिंह को मैनेज किया जो कि ट्रेनी पीसीएस हैं। उन्हें अपने कैरियर की चिंता करनी थी।

प्रशांत कुमार खुद आईएएस हैं आगे चलकर उनके ही डीएम या कमिश्नर हो सकते हैं। इसके अलावा उनके रिश्तेदार शासन में उच्च पद पर हैं। इसलिए उनसे तत्काल ही नुकसान हो सकता था। पर इस बीच प्रियंका गांधी का भी ट्वीट आ चुका था। जिसमें उन्होंने कहा था कि उत्तर प्रदेश मे अधिकारियों का अपराधियों पर वश नही चल रहा और वह लोगों के साथ गलत बर्ताव कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने स्वयं अमेठी की घटना को संज्ञान में लिया। इस वजह से प्रशांत के सारे कवच-कुंडल नाकाम हो गये और उन्हें बेआबरू होकर हटना पड़ा।

पता नही उनके मामले को शासन एक दृष्टांत के रूप में संज्ञान में लेकर व्यवस्थागत सुधार करेगी या नही। साथ ही अधिकारियों की ट्रेनिंग में भी परिवर्तन किया जाये। खासतौर से आईएएस अधिकारियों को अलग से प्रशिक्षण दिया जाये कि वे तानाशाह शासक की तरह सोचने की बजाय लोगों का विश्वास जीतकर प्रशासन चलाने की कोशिश करें।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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