Sunday - 7 January 2024 - 12:53 PM

गांधी सबके फिर साबरमती आश्रम से दुराव क्यों !

डॉ. वी के मिश्रा

दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढ़ाल।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।।

जी हां, यह गीत 1954 में प्रख्यात गीतकार प्रदीप द्वारा लिखा गया। महात्मा गांधी वर्ष 1918 से 1930 तक इस पवित्र भूमि पर रहे, यहीं से मोहनदास कर्मचंद गांधी को महात्मा गांधी के रूप में स्वीकार किया गया। इसी नदी के तट से वर्ष 1930 में दांडी यात्रा का शुभारंभ किया।

गांधी जी ने साबरमती नदी के किनारे शांत वातावरण में अपने निवास को चुना और इस साबरमती नदी को पूरे विश्व में प्रसिद्ध कर दिया।

अहमदाबाद में बहुत से मंदिर, पार्क एवं स्मारक हैं जो अत्यंत आकर्षक हैं, जहां जाने को पर्यटकों को बाध्य करते हैं। पर उसी जगह साबरमती आश्रम जिसे काका साहेब कालेलकर ने हृदय कुंज का नाम दिया, उसकी उपेक्षा स्पष्टï रूप से दिखाई देती है। जिस बापू के नाम, विचार को आज के राजनेता समय-समय पर अपनी सुविधा एवं लाभ के लिए प्रयोग करते रहे हैं वहीं उन्हीं के द्वारा उपेक्षित हैं।

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पूरे विश्व में कोई भी राष्ट्र अध्यक्ष  अथवा पर्यटक कहीं से भी यदि अहमदाबाद आता है तो वह बापू के इस पवित्र कर्मभूमि पर अवश्य जाकर उन्हें नमन करता है।

अभी कुछ वर्ष पूर्व चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी अपनी अहमदाबाद की यात्रा के समय रिवर फ्रंट व्यू पर झूले का आनंद लेने के पश्चात बापू के साबरमती आश्रम गए। निश्चित ही उनके भ्रमण के दौरान कुछ साफ-सफाई का कार्य हुआ होगा, उनके जाने के पश्चात फिर शायद ही किसी राजनेता की दृष्टि इसके रखरखाव पर गई होगी।

साबरमती आश्रम में बापू जिस स्थान पर बैठकर चरखा कातते थे और स्वतंत्रता आंदोलन की रूपरेखा तय करते थे उसे एक कक्ष के रूप में परिवर्तित कर लोहे की जाली लगा दी गई है, जैसे किसी कैदखाने में होती है। कक्ष के कोने में उनके बैठने के स्थान को भी लकड़ी से घेर दिया गया है। देखकर पीड़ा होना स्वाभाविक है। बेहतर होता कि इसे जाली के स्थान पर शीशे का बनाया गया होता तो दर्शक स्पष्ट रूप से उस स्थान का दर्शन कर पाता।

सामने विनोवा भावे जी की कुटी है। शायद 12 गुणा 20 के आकार की होगी। जहां वो दरी बिछाकर रहते थे। प्रात:काल उठकर पूरे आश्रम की स्वयं सफाई का कार्य करते थे। समझ से परे है। आज के राजनेताओं की जीवन शैली, इसे देखकर कुछ तो संवेदनशील होते।

एक पुस्तकालय है जो बेहाल स्थिति में है। कोई जन सुविधाा की जगह भी नहीं है। चारो ओर पुरानी ईंटों का रास्ता है और
मिट्टी मोरंग है जो गर्मी में बहुत तपता होगा और आने वाले पर्यटकों को कष्ट होता होगा।

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हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के।
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल कर।।

कवि प्रदीप ने अपनी इस रचना में महात्मा गांधी के विचारों को बड़ी सहजता से लिखा। निश्चित ही आज जो देश संभाल रहे हैं वो उस समय बच्चे ही रहे होंगे, उनसे बापू की क्या अपेक्षा रही होगी। ठीक उसके विपरीत अपनी उपेक्षा इन्हीं बच्चों से होते देख बापू की आत्मा अवश्य ही कहीं दुखी होती होगी।

सरदार बल्लभ भाई पटेल जिनकी प्रतिमा विश्व की सबसे ऊंची बनाई गई है, निश्चित ही गुजरात एवं पूरे भारत देश के लिए गर्व का विषय है। पटेल भी इसी आश्रम में बापू के निकट बैठकर मंत्रणाओं में भाग लेते रहे होंगे। पटेल जी की पटेल की प्रतिमा पर 3000 करोड़ रुपए खर्च किए गए। क्या बापू के इस आश्रम को कुछ करोड़ खर्च कर संवारा नहीं जा सकता?

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