Friday - 12 January 2024 - 2:11 AM

लाकडाउन में मानेसर के मजदूरों को कौन देखेगा

अमन सिद्धांत

मानेसर के अलियरपुर चौक पर स्थित बीजीआर बिल्डिंग मजदूरों के बड़े अड्डे के तौर पर जानी जाती है। चार माले की यह बिल्डिंग करीब डेढ़ सौ लोगों को छत मुहैया कराती है। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग मारुति, होंडा और उनके पार्ट्स बनाने वाली उनकी तमाम सहायक कम्पनियों में काम करते हैं।

अलियरपुर में एक ऐसी घटना सामने आई है जिसमें मकान मालिकों ने वहां काम की तलाश में आए मजदूरों से मार-पिटाई की। आईटीआई ट्रेनिंग के लिए मारुति कम्पनी में काम करने वाले मजदूर किशन को गंभीर चोटें आई हैं। किशन के अलावा भी करीब 10 लोगों को चोटें आईं हैं।

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घटना के प्रत्यक्षदर्शी राजकिशोर ने फोन पर बात करते हुए बताया, “दोपहर के ग्यारह बजे के आसपास का समय था, जब 25-30 लोग लाठी, डंडा, लोहे की रॉड और हॉकी स्टिक लेकर बिल्डिंग में घुसे और मारपीट की। दोपहर का समय था, तो कुछ लोग खाना खा रहे थे तो, कुछ लोग बनाने की तैयारी कर रहे थे। अचानक से एक शोर उठा। जब तक कुछ समझ आता, तब तक मारपीट शुरू हो चुकी थी। गांव के लोकल गुंडे बिल्डिंग के हर माले पर जा रहे थे। जिसका दरवाजा खुला पाया, उसके साथ मारपीट की। जिनके बंद थे, उसका दरवाजा तोड़कर मारा।

इस हमले में सिवान के रहने वाले किशन के सिर में बुरी तरह चोट लगी। किशन स्टूडेंट ट्रेनिंग के तहत एक साल से मारुति में काम कर रहा है। वहां उसकी एक साल की ट्रेनिंग अभी बकाया है।

वीरनारायण साहू बताते हैं, “स्थानीय लोग किशन को अस्पताल ले जाने से भी रोक रहे थे। मारपीट के बाद गुंडे कुछ देर तक खुलेआम घूमते रहे और हम लोग डर की वजह से अपने-अपने कमरे में छिपे रहे। मकान मालिक यहां रहते नहीं हैं। जैसे-तैसे करके उनको फोन पर घटना की जानकारी दी, तब जाकर उन्होंने पुलिस को बुलाया। पुलिस के आने के बाद किशन को गुड़गांव के पारस अस्पताल ले जाया गया।

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मारपीट का कारण जानने के लिये एक मजदूर से बात की तो, उसने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “मानेसर के आसपास इस तरह की घटनायें बहुत आम होती हैं। मान लीजिये कि किसी का मन मारपीट करने का हो रहा है, तो वो किसी भी मजदूर को पकड़ कर पीट देगा।” ऐसा क्यों होता है? इस पर वे बताते हैं, “यह मामला लोकल बनाम बाहरी का है। लोकल सब इकट्ठे होते हैं, जबकि बाहर से आने वाले मजदूरों के बीच इतनी एकता नहीं बन पाती है कि सब एकजुट होकर इस तरह की घटनाओं का विरोध कर पाएं।

ज्यादातर मजदूर ठेकेदारों के जरिये भर्ती किये जाते हैं, तो मजदूर यूनियनें भी साथ नहीं देती हैं। इसका दूसरा कारण बिहारियों से नफरत भी है, क्योंकि यहां के लोगों को लगता है कि बिहारी आकर उनकी नौकरियां छीन लेते हैं।”

मानेसर औद्योगिक क्षेत्र थाने के एसएचओ अरविंद ने फोन पर हुई इस बातचीत में कहा, “कुछ लोग घटना को आपसी लड़ाई बता रहे हैं। मामले की एफआईआर दर्ज कर ली गई है। अब तक आठ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। घटना से जुड़ी चीजें बरामद कर ली गई हैं। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 148,149,452,और 506 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है।”

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घटना के प्रत्यक्षदर्शियों का दावा है कि 25-30 लोगों ने बिल्डिंग के अंदर जाकर हॉकी, डंडों से मारपीट की, जबकि एसएचओ अरविंद इसको अफवाह बताते हुए कह रहे हैं कि ऐसी बातें बहुत तेजी से फैलती हैं। अलियरपुर में हुई इस घटना के बाद आसपास के पूरे इलाके में डर का माहौल है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि एक बार लॉक डाउन खुले, तो वे अपने घरों को लौट जाएंगे।

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हरियाणा का मानेसर औद्योगिक क्षेत्र मेहनत-मजदूरी करके पेट पालने वालों के एक बड़े ठिकाने के तौर पर जाना जाता है। यहां पर यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश जैसी जगहों से आने वाले लाखों मजदूर साथ काम करते हैं। इस इलाके में ऑटो मोबाईल, गार्मेंट से जुड़ी हजारों छोटी-बड़ी कम्पनियों की उत्पादन इकाइयां स्थित हैं।

कोविड-19 महामारी के चलते किये गये लॉक डाउन की सबसे ज्यादा मार मजदूरों पर ही पड़ी है और इसके प्रभाव से मानेसर भी अछूता नहीं है। लॉक डाउन की घोषणा के बाद यहां से करीब एक लाख लोग अपने घरों को लौट गये हैं। उसके बाद भी एक बड़ी तादाद है, जो नहीं लौट पाई। फंसे हुए मजदूरों में सबसे ज्यादा बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के लोग हैं, जो दूरी ज्यादा होने के कारण लौटने की हिम्मत नहीं कर पाए और अब यहां भूख और मकान मालिकों का उत्पीड़न झेल रहे हैं।

जहांनाबाद के जाहिद खान कहते हैं कि, “मेरी मति मारी गई थी, जो यहां आया। जो शहर हमको रोटी नहीं दे सकता, हमारी सुरक्षा नहीं कर सकता, तो वहां रहकर काम करने का क्या फायदा?” जाहिद लेडीज बैग बनाने वाली एक फैक्ट्री में काम करते थे, जहां उनको 9500 रुपये वेतन मिलता था। वे बताते हैं कि दो महीने से वेतन नहीं मिला है, ऊपर से ये लॉक डाउन!

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पश्चिम बंगाल के मालदा से मानेसर काम की तलाश में आए सागर का कहना है, ‘लॉक डाउन के एक हफ्ते पहले यहां आया था, तीन दिन दिहाड़ी पर काम किया, उसके बाद बंदी हो गई। अभी उन तीन दिनों के काम की मजदूरी भी नहीं मिली है। ऐसे में क्या खाऊँ और कहां रहूं? ये बंदी खत्म हो तो अपने घर लौट जाऊंगा।’

नेक मोहम्मद और अनिल कुमार पड़ोसी हैं और किराये के कमरे में अगल-बगल रहते हैं। काम भी साथ में करते हैं। उन्होंने बताया कि वे दिहाड़ी पर काम करते थे। 20 तारीख से एक पैसे का भी काम नहीं कर पाए। उनकी जेब में पांच सौ रुपये बचे हैं। अंदाजा लगा लीजिये कि कितने दिन चलेंगे!

मानेसर और उसके आसपास के इलाके में अभी हजारों लोग फसे हुए हैं, जिनके पास खाने के लिये न राशन है और न पैसे कि वे खरीद लें। फसे हुए ज्यादातर लोग सामाजिक संस्थाओं की मदद के भरोसे हैं। इस कारण कभी मदद मिलती है और कभी नहीं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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