कुमार भवेश चंद्र
उम्मीद के अनुरूप ही कांग्रेस के भीतर से अपने नेतृत्व को लेकर असंतोष की आवाजें बुलंद होने लगी हैं। अब तो यह भी कह सकते हैं कि तेज होने लगी है। एक के बाद दूसरे नेता पार्टी नेतृत्व की कमियों की बात कह रहे हैं, सुधार, आत्मचिंतन और आत्ममंथन की बातें कह रहे हैं लेकिन पार्टी नेतृत्व ने अभी तक इन सवालों को तवज्जो नहीं दी है।
कांग्रेस को आत्मचिंतन की जरूरत-तारिक अनवर
बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद सबसे पहले प्रदेश के वरिष्ठ नेता और पार्टी के महासचिव तारिक अनवर ने कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर निराशा प्रकट की पार्टी से हुई चूक को स्वीकार किया। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि पार्टी को आत्मचिंतन करने की जरूरत है।
बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हार के no 1 मुजरिम
श्री अवीनाश पाण्डे
टिकेट के बटवारे में दूसरी पार्टी से मिल कर कमज़ोर उमीदवार दिया ।— Shakeel uzzaman Ansari (@UzzamanAnsari) November 11, 2020
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बिहार प्रभारी गोविल पर निशाना
उसके बाद बिहार प्रदेश के दूसरे नेताओं ने भी विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन के लिए केंद्रीय नेतृत्व की कमियों के बारे में खुलकर बात करनी शुरू कर दी। बिहार में मंत्री रहे एक सीनियर कांग्रेस नेता शकील उज्जमा अंसारी ने तो एक इंटरव्यू में यहां तक कह दिया है कि बिहार के कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोविल ने अमित शाह के साथ मिलकर बिहार कांग्रेस का बंटाधार कर दिया।
शक्ति सिंह गोहिल ने बिहार में
अमित शाह की कमी पूरी की
# बिहार चुनाव का मुजरिम no 2— Shakeel uzzaman Ansari (@UzzamanAnsari) November 11, 2020
बाहरी लोगों को टिकट देकर पार्टी का नुकसान किया
चुनाव नतीजे आने के बाद अंसारी ने ट्वीट के जरिए बिहार कांग्रेस की दुर्गति के लिए गोविल को कसूरवार ठहराया। उन्होंने लिखा, “शक्ति सिंह गोहिल ने बिहार में अमित शाह की कमी पूरी की। उज्जमा ने उन्हें बिहार चुनाव का मुजरिम नंबर दो बताया जबकि अविनाश पांडेय को मुजरिम नंबर एक बताया जिन्होंने कमजोर लोगों को टिकट दिलवाकर पार्टी की संभावनाओं को समाप्त करने की कोशिश की।
उज्जमा ने चुनाव से पहले राहुल गांधी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग बैठक में भी साफ तौर पर जमीनी कार्यकर्ताओं को टिकट देने की बात कही थी। लेकिन आरोप है कि गोहिल ने पार्टी से बाहरी लोगों को टिकट देकर कांग्रेस की उम्मीद पर पानी फेर दिया।
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देश ने विकल्प के रूप में कांग्रेस को ठुकराया- सिब्बल
इन सबके बीच वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने भी एक बार फिर केंद्रीय नेतृत्व की कमजोरियों पर सवाल उठाए हैं। एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कपिल सिब्बल ने साफ कहा है कि बिहार विधानसभा के चुनाव और देश के अलग राज्यों के उप चुनाव के नतीजे ने साफ कर दिया है कि देश की जनता ने कांग्रेस को प्रभावी विकल्प मानने से इनकार कर दिया है।
My interview in today’s Indian Express
We are yet to hear on recent polls… Maybe Congress leadership thinks it should be business as usual: Kapil Sibal https://t.co/paYyFYUEud via @IndianExpress
— Kapil Sibal (@KapilSibal) November 16, 2020
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कांग्रेस से आत्ममंथन की कोई उम्मीद नहीं
सिब्बल ने कहा, “गुजरात विधानसभा के उप चुनाव में पार्टी को सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा के चुनाव में भी वहां पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी। गुजरात में हमारे तीन उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। यूपी में कांग्रेस उम्मीदवारों को कुल वोटिंग के 2 फीसदी वोट भी नहीं मिले। हमारे एक साथी ने कहा कि कांग्रेस को आत्ममंथन करने की जरूरत है। हमने पिछले छह सालों में कोई मंथन नहीं किया तो अब कैसे उम्मीद करें कि पार्टी आत्ममंथन करेगी।”
नेतृत्व गलतियों की ओर देखने को तैयार नहीं
सिब्बल ने इस इंटरव्यू में खुले तौर पर नेतृत्व को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि संगठन के रूप में पार्टी को पता है कि हमसे गलतियां कहां हो रही हैं। हम इनका जवाब भी जानते हैं लेकिन हम उन जवाब की ओर बढ़ना नहीं चाहते। उसपर अमल नहीं करना चाहते। और जबतक उसपर अमल नहीं होगा इसी तरह हमारा पतन तय है।
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10 फरवरी तक चुनना होगा नया अध्यक्ष
कपिल उन 23 नेताओं की फेहरिश्त में शामिल हैं, जिनकी चिट्ठियों ने पार्टी के भीतर हड़कंप मचा दिया था। अगस्त में कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी का कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद नए नेतृत्व का फैसला टलने को लेकर यह चिट्ठी लिखी गई थी। इस चिट्ठी के बाद ही सोनिया गांधी का कार्यकाल अगले छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया। इस फैसले के मुताबिक 10 फरवरी से पहले कांग्रेस को शीर्ष नेतृत्व को लेकर ठोस फैसला करना है।
कांग्रेस के भीतर नहीं बचा लोकतंत्र
इस बीच सिब्बल ने इस इंटरव्यू में कहा कि पार्टी में अपनी बात रखने का कोई मंच नहीं है इसलिए हमें अपनी बातें सार्वजनिक रूप से कहनी पड़ रही है। उन्होंने कांग्रेस कार्यसमिति के लोकतांत्रिक होने पर भी सवाल खड़े किए है। उनका कहना है कि यह मनोनीत लोगों का समूह हैं जबकि पार्टी संविधान के लिहाज से इसके सदस्य लोकतांत्रिक रूप से चुने जाने चाहिए। यानी वे खुलकर स्वीकार कर रहे हैं कि पार्टी के भीतर लोकतंत्र नहीं रह गया है।