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डंके की चोट पर : कोरोना से ज्यादा खतरनाक है यह वायरस

शबाहत हुसैन विजेता

साल 2020 की शुरुआत के साथ ही कोरोना नाम का वायरस मौत की शक्ल में इंसानों की दुनिया को शिकार बनाता हुआ दौड़ पड़ा था. चीन में हाहाकार मचा हुआ था. हर तरफ अफरातफरी थी. अस्पताल लोगों से भरने लगे थे. हर शहर और हर गली में मरीज़ थे. मरने वालों की तादाद तेज़ी से बढ़ रही थी मगर दुनिया आराम से सो रही थी. किसी को भी कोई फ़िक्र नहीं थी क्योंकि कोरोना तो चीन में था.

वक्त के साथ ही कोरोना की परवाज़ दुनिया के दूसरे देशों को निशाना बनाने लगी. दूसरे देशों में असर क्योंकि कम था इसलिये कोई भी डर नहीं रहा था. हिन्दुस्तान के 400 शहरों में एनआरसी के खिलाफ आन्दोलन चल रहा था. हज़ारों की तादाद में औरतें सड़कों पर जमा थीं. इन औरतों को न पुलिस की लाठियों का डर था, न ही इस बात की फ़िक्र कि बगैर किसी इंतजाम के हुकूमत से कैसे टकराया जाएगा.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का भारत दौरा तय हो चुका था. पूरी हुकूमत इसी में लगी थी. गुजरात की मलिन बस्ती को छुपाने के लिए आठ फिट ऊंची दीवार उठ रही थी. ट्रम्प भारत आये. गुजरात और दिल्ली में घूमे. इसी दौरान दिल्ली में दंगा हुआ. तमाम लोग मरे. तमाम घरों को आग के हवाले किया गया. तमाम लोगों के बिजनेस खत्म हो गए. ट्रम्प तारीफ़ करके वापस लौट गए कि हिन्दुस्तान में लोकतंत्र अभी तक जिंदा है. देश की राजधानी में भी लोग प्रदर्शन करते हैं और सरकार अपने नागरिकों पर सख्ती नहीं करती.

दुनिया के सारे काम अपनी-अपनी रफ़्तार में चल रहे थे. कोरोना भी अपनी सधी हुई चाल से अपनी जगह बनाता जा रहा था. साल 2020 का मार्च खत्म होने की तरफ बढ़ चला था. कोरोना के कुछ केस हिन्दुस्तान में आ गए थे. सरकार ने 20 मार्च को जनता कर्फ्यू का एलान किया. दिन भर के कामयाब कर्फ्यू के बाद शाम होते-होते लॉक डाउन का एलान हो गया. लोग अपने घरों में बंद हो गए.

लॉक डाउन चलता रहा. कोरोना भी मद्धम चाल से चलता रहा. सड़कें सुनसान थीं लेकिन लापरवाह लोग गलियों के नुक्कड़ पर जमा थे. बार-बार बताया जा रहा था कि लोगों ने दूरी नहीं बनाई तो कोरोना हमला करेगा. बावजूद इसके बड़ी तादाद में लोग लॉक डाउन को मज़ाक में लेते रहे. वह शुरुआती दौर था. हर 24 घंटे में 20-25 नये मरीज़ सामने आ जाते थे. पूरे देश में 20-25 लोगों के संक्रमण से लोगों को लगता था कि हमारे पास तक संक्रमण कभी नहीं आएगा. कुछ ही दिन में एक दिन में संक्रमित होने वालों की तादाद 60 हो गई. फिर 60 से 80 और 80 से 100 मरीज़ रोज़ संक्रमित होने लगे. हज़ार की संख्या पार हो गई. हज़ार 20 हज़ार में और 20 हज़ार 40 हज़ार की संख्या में बदल गया. देखते ही देखते आंकड़ा एक लाख को पार कर गया.

कोरोना मरीजों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही थी मगर लापरवाह लोगों ने खुद को कैद में रखना क़ुबूल नहीं किया. लोग आपस में चर्चा करते थे कि एक भी जानने वाले को कोरोना नहीं है. पता नहीं लोग क्यों डरे जा रहे हैं. यही लापरवाही हर शहर में कन्टेनमेंट ज़ोन तैयार कराने लगी. देखते ही देखते हिन्दुस्तान दुनिया के टॉप 10 में शामिल हो गया.

अब कोरोना अपने पैर पसार चुका था. दुनिया की लिस्ट में हिन्दुस्तान एक-एक कर देशों को पछाड़कर ऊपर की तरफ बढ़ने लगा था. लापरवाह लोग मज़ाक में कहते थे कि सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानी. हालात बिगड़ते गए. हिन्दुस्तान दुनिया में दूसरे नम्बर पर पहुँच चुका है. हिन्दुस्तान ने ब्राजील को पछाड़ दिया है. अमेरिका के बाद भारत दूसरे नम्बर पर पहुँच चुका है.

आज हालात यह हैं कि एक भी आदमी यह कहने की स्थिति में नहीं है कि हमारा कोई जानने वाला संक्रमित नहीं है. अब हर शख्स के कई-कई जानने वाले हैं जो इस संक्रमण का शिकार हो चुके हैं. देश में हाहाकार वाली स्थिति है. अब लोग समझने लगे हैं कि कोरोना से बचा जा सकता है. लोग समझने लगे हैं कि अगर भीड़ में जाने से बचा जाए तो कोरोना अटैक नहीं करता है. अब लोग समझने लगे हैं कि कोरोना दरवाज़े पर दस्तक देकर नहीं घुसता है. अब लोगों की समझ में यह बात आ गई है कि अगर दूरी बनाकर रखी जाए और घरों में आने-जाने का चलन कम किया जाए तो कोरोना से बचा जा सकता है.

वक्त रहते यही बात समझ ली होती तो हालात आज इतने खराब हुए ही नहीं होते. लॉक डाउन के पीछे सरकार की क्या मंशा थी इसे गली के नुक्कड़ पर खड़े लोगों ने समझ लिया होता तो शायद कुछ ही महीनों में कोरोना की हार हो गई होती और इतनी बड़ी तादाद में हमें अपने लोगों को नहीं खोना पड़ता.

कोरोना एक महामारी है. इससे बचने की गाइडलाइन है. कोरोना से बचने के तरीके हर किसी को पता हैं. ठीक इसी तरह से एक और महामारी बहुत तेज़ी से सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही है.हिन्दू-मुसलमान के नाम पर नफरत का खेल बहुत तेज़ी से खेला जा रहा है. यह सिलसिला कोरोना महामारी से पहले से ही चलता आ रहा है लेकिन नफरत के इस वायरस से होने वाले नुक्सान की तरफ से हर कोई अपनी आँख बंद किये हुए है. कोरोना मामले में नागरिक सो रहे थे लेकिन सरकार जाग रही थी लेकिन नफरत के वायरस मामले में नागरिक भी सो रहे हैं और सरकार को भी जागा हुआ नहीं कहा जा सकता.

नफरत का वायरस हर दिन मज़बूत हो रहा है. झूठ और सच को मिलाकर ऐसी पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल कराई जा रही हैं जिससे नफरत का ज्वालामुखी तैयार होने लगा है. नफरत के इस वायरस से निबटने के अब तक कोई इंतजाम नहीं किये गए हैं. जिन लोगों को इस तरह की पोस्ट पसंद नहीं हैं और वह विरोध कर पाने की स्थिति में नहीं हैं वह या तो ऐसी पोस्ट इग्नोर कर देते हैं या फिर ऐसे कथित दोस्त को अनफ्रेंड कर संतुष्ट हो जाते हैं कि हमारी नज़रों से ऐसी पोस्ट अब नहीं गुजरेंगी.

रेत में सर घुसाकर शुतुरमुर्ग सुरक्षित नहीं हो जाता बल्कि शिकारियों द्वारा मार डाला जाता है. यही हालत नफरत के वायरस की है. नफरत फैलाने वालों से सरकार बेखबर है या फिर सरकार को इसकी फ़िक्र नहीं है. सोशल मीडिया पर एक्टिव लोग भी ज्यादा हैरान परेशान नहीं हैं कि इससे अब तक कोई नुक्सान तो हुआ नहीं है. किसी जानने वाले के साथ तो मॉब लिंचिंग नहीं हुई है. किसी जानने वाले को मारा तो नहीं गया है.

यह सही है कि अभी ऐसा नहीं हुआ है लेकिन जनवरी को याद करें तो कोरोना से भी कोई संक्रमित नहीं हुआ था. कोरोना से भी कोई नहीं मरा था लेकिन आज की तारीख में कितने ही पहचान वाले चेहरे कोरोना ने छीन लिए. नफरत का वायरस तो कोरोना से ज्यादा ताकतवर वायरस है. यह लगातार अपनी ताकत बढ़ाता जा रहा है और समझदार लोग दो-चार लोगों को अनफ्रेंड कर यह समझने लगे हैं कि सब कुछ ठीक है.

नफरत का वायरस ताकतवर है क्योंकि इसे फैलाने वाले पढ़े-लिखे लोग हैं. बहुत से प्रशासनिक अधिकारी, बहुत से रिटायर्ड अधिकारी, बहुत से पत्रकार इस काम में बड़े जतन से जुटे हुए हैं. हालात बिगड़ते जा रहे हैं. देश नफरत के तैयार हो रहे ज्वालामुखी के दहाने पर बैठा है.

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कोरोना से हम बच सकते थे मगर हमारी लापरवाही ने हमें बचने नहीं दिया. नफरत के वायरस से भी हम बच सकते हैं मगर सब कुछ समझकर भी हम खामोश हैं. हम अपनी ज़िम्मेदारी महसूस नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे चेहरों का बेनकाब होना ज़रूरी है. आवाज़ उठाने का यही सबसे सही वक्त है. हमें तय करना होगा कि हम अपने सोशल मीडिया एकाउंट से नफरत नहीं फैलाएंगे. हमारी मित्र सूची में जो यह वायरस फैला रहे हैं हम उन्हें समझायेंगे. नहीं मानने पर उन्हें ब्लाक करेंगे. नफरत फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की शुरुआत करेंगे.

देश भी बचाना है और खुद को भी बचाना है. नफरत की जो बाजीगरी अभी शब्दों में चल रही है वह सड़कों पर हकीकत में शुरू हो जायेगी तब हम क्या कर पाएंगे. सोशल मीडिया पर माहौल बिगाड़ा जा रहा है उसमें हमारी खामोशी भी ज़िम्मेदार है. साहिर लुधियानवी ने लिखा था :- आज अगर खामोश रहे तो कल सन्नाटा छाएगा, हर बस्ती में आग लगेगी हर बस्ती जल जायेगी. सन्नाटे के पीछे से तब एक सदा ये आयेगी. कोई नहीं है कोई नहीं है कोई नहीं है कोई नहीं.

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