Wednesday - 10 January 2024 - 9:32 AM

डंके की चोट पर : यह परीक्षा सिर्फ ट्रम्प की है

शबाहत हुसैन विजेता

आईएसआईएस की कमर तोड़ने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले ईरान के जनरल क़ासिम सुलेमानी के कत्ल के बाद दुनिया के तमाम मुल्कों में अमरीका के खिलाफ गुस्सा उबाल पर है। तेल और सोने की कीमतों में उछाल आ गया है और शेयर बाजार मुंह के बल आ गिरा है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इसे अपनी बड़ी जीत मान रहे हैं तो इज़रायल ने जंग की तैयारियां शुरू कर दी हैं।

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ईरानी सेना के सर्वोच्च कमांडर और ईरान के भावी राष्ट्रपति क़ासिम सुलेमानी की जान लेकर अमरीका ने दुनिया को खतरनाक जंग के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। क़ासिम सुलेमानी का ईरान में बहुत बड़ा कद था। सुरक्षा के मामले में वह ईरानी हुकूमत के सबसे बड़े सलाहकार थे। कई बार उनकी भूमिका विदेश मंत्री सरीखी रहती थी। ईरानी अवाम में भी उनकी बहुत इज़्ज़त थी और ईरान की हुकूमत सभी अहम मामलों में उन्हीं की राय लिया करती थी।

क़ासिम सुलेमानी के कत्ल के बाद डोनाल्ड ट्रम्प ने अमरीकी झंडे को ट्वीट कर जहां अपनी खुशी का इज़हार किया वहीं ईरान रंज-ओ-ग़म में डूब गया। ईरान की हुकूमत ने तीन दिन के राष्ट्रीय शोक का एलान करते हुए अमरीका से इसका बदला लेने की बात कही।

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अमरीका से बदला लेने के लिए ईरान के लिए सबसे सॉफ्ट टारगेट इज़रायल है। इज़रायल भी यह बात जनता है, इसलिए उसने जंग की तैयारियां तेज़ कर दी हैं। ईरान और अमरीका की इस जंग में सिर्फ सऊदी अरब अमरीका के साथ खड़ा होगा। इराक ईरान के साथ रहेगा। चीन और रूस के भी ईरान के पक्ष में खड़े होने की संभावना है।

अमरीका अपनी ज़मीन पर जंग नहीं लड़ता है लिहाजा उसे सिर्फ अपने सैनिकों की कुर्बानी देनी होगी लेकिन इराक, ईरान, इज़रायल और सीरिया में बड़ी संख्या में बेगुनाह लोगों की जान जाएगी। शांत समंदर में पत्थर उछाल कर अमरीका ने जो गुस्से की लहरें पैदा की हैं उसकी आग भारत तक आएगी। एक तरफ भारत को जबरदस्ती की महंगाई का सामना करना पड़ेगा तो दूसरी तरफ हिन्दुस्तान में रह रहे 5 करोड़ शिया मुसलमानों के गुस्से से भी जूझना पड़ेगा।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमरीका के साथ दोस्ती की जो पींगें पिछले साढ़े पांच साल में बढ़ाई हैं उन पर भी इस कत्ल का असर यहां होने वाले विरोध प्रदर्शनों की वजह से पड़ेगा। ईरानी सेना के सर्वोच्च कमांडर पर मानव रहित विमान के जरिये हमला कर उनका कत्ल करने वाले अमरीका ने उन्हें आतंकी बताकर ईरान के गुस्से में पेट्रोल डालने का काम कर दिया है। ईरान के साथ हालांकि अमरीका के पिछले 40 साल से रिश्ते बेहतर नहीं थे लेकिन परमाणु शक्ति सम्पन्न ईरान के साथ अमरीका ने सीधी जंग का जोखिम कभी नहीं लिया लेकिन अब जब अमरीकी राष्ट्रपति अपने देश की संसद में महाभियोग की तलवार पर चल रहे हैं और जल्दी ही उन्हें चुनाव का भी सामना करना है।

दक्षिण कोरिया के तानाशाह किम जोंग ने उन्हें फिर से आंखें तरेरना शुरू कर दिया है। चीन अमरीका के सामने बिल्कुल बराबरी से खड़ा हो गया है और रूस को भी अमरीकी धमकियों की परवाह नहीं रह गई है। ऐसे में ईरानी सेना के सर्वोच्च कमांडर को मारकर अमरीका ने दुनिया को यही संदेश देने की कोशिश की है कि तमाम देशों को उसकी दिखाई राह पर ही चलना पड़ेगा वर्ना उसे क़ासिम सुलेमानी की तरह अंजाम भुगतने को तैयार रहना चाहिए।

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अमरीका और ईरान की जंग छिड़ती है तो अमरीका पर इसका सबसे गहरा असर पड़ने वाला है। जिस तरह से जादूगर की जान तोते में बस्ती थी वैसे ही अमरीका की जान इज़राइल में बस्ती है। इज़राइल उन्हीं यहूदियों का देश है जिनके पास अमरीकी इकोनॉमी की चाबी है। जंग में इज़राइल का नुक़सान हुआ तो अमरीकी अर्थव्यवस्था को लड़खड़ाने से कोई भी ताकत बचा नहीं पाएगी।

अमरीका ने एक साथ दो गलतियां की हैं। एक तरफ उसने ईरानी सेना के सर्वोच्च कमांडर को मारकर ईरान की सेना को सीधी चुनौती दी है तो दूसरी तरफ उन्हें आतंकी बताकर ईरान की हुकूमत को भी यह संदेश दे दिया है कि अब अमरीका ईरान के साथ दो-दो हाथ करने को तैयार है।

अमरीका के लिए बुरी खबर यह है कि जिन इराक और ईरान को अमरीका ने आठ साल तक आमने-सामने की जंग में उलझाए रखा था वह ईरान और इराक अब अमरीका के खिलाफ साथ-साथ कदमताल को तैयार हैं।
अमरीका की तीसरी गलती यह है कि उसने क़ासिम सुलेमानी के कत्ल को बगदादी और लादेन के कत्ल वाली कड़ी में ही रखा है। लादेन और बगदादी आतंकी थे। दुनिया उनसे त्रस्त थी जबकि सुलेमानी ईरानी हुकूमत का हौंसला थे। तमाम मुस्लिम देशों में उन्हें हीरो की तरह देखा जाता था।

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ठीक इसी तरह अमरीका ने हिजबुल्लाह को भी आतंकी बताया है। जबकि हिजबुल्लाह आतंकवाद के खिलाफ जंग में लगा है। आईएसआईएस के खात्मे में हिजबुल्लाह और क़ासिम सुलेमानी ने लगातार संघर्ष किया है। इस संघर्ष की वजह से सुलेमानी न सिर्फ ईरान में बल्कि इराक और सीरिया में भी लोकप्रियता के शिखर पर थे।

जंग किसी मसले का हल नहीं है। जंग जब तक टलती रहे तभी तक इंसानी ज़िन्दगी सुकून से जीती है लेकिन अमरीका ने अचानक सुकून के पलों में आग लगा दी है। एक तरफ गुस्से का उबाल शुरू हुआ है तो दूसरी तरफ बेगुनाहों को लपकती मौत का डर भी शुरू हुआ है। इसे थर्ड वर्ल्ड वार की शक्ल में भी देखा जा रहा है। इसका नतीजा जो भी हो लेकिन यह परीक्षा सिर्फ ट्रम्प की है। ट्रम्प फेल होंगे या पास बहुत जल्द सामने आ जायेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

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