Thursday - 11 January 2024 - 6:09 AM

अदालत ने मीडिया को दिखाया आइना

जुबिली न्यूज डेस्क

पिछले साल अभिनेता सुशांत सिंह के आत्महत्या मामले में उनकी दोस्त रिया चक्रवर्ती को लेकर हुए मीडिया ट्रायल पर खूब सवाल उठा था। रिया को लेकर अधिकांश टीवी चैनलों ने रिया को लेकर जोरदार बहसें की और उन्हें सुशांत की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया था, जबकि बाद में रिया बेकुसूर साबित हुई थी।

अक्सर टीवी न्यूज चैनल विवादित मुद्दों पर अभियुक्त का नाम आते ही या उसकी गिरफ्तारी होते ही जिस तरह से बेबुनियाद खबरें चलाता है और बेसिरपैर की बहस करता है, उस पर दिल्ली की एक अदालत ने बेहद अहम फैसला सुनाया है।

अदालत ने मीडिया पर तल्ख टिप्पणी की है। उसने मीडिया की आलोचना दिल्ली दंगों में गिरफ्तार उमर खालिद के मसले पर की है।

दिल्ली की एक अदालत में मुख्य मेट्रोपोलिट मजिस्ट्रेट ने मीडिया को फटकार लगाते हुये कहा है कि दोषी साबित होने तक अभियुक्त के निर्दोष माने जाने के अधिकार को खत्म नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि पुलिस के सामने दिए गए अभियुक्त के बयान को सबूत नहीं माना जाना चाहिए।

पिछले कुछ सालों में पत्रकारिता में भारी गिरावट देखने को मिला है। कुछ टीवी चैनलों की वजह से पत्रकारिता पर सवाल खड़ा हो गया है। मीडिया से लोगों का भरोसा खत्म होता दिख रहा है।

दरअसल पिछले दिनों कई मामलों में ऐसा देखने को मिला कि कुछ टीवी चैनल पुलिस को दिए बयान के आधार पर अभियुक्त को सीधे अपराधी ठहरा दिए, जबकि बाद में अभियुक्त बाइज्जत बरी हो गए।

उमर खालिद मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मीडिया पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि, मीडिया को “आत्म नियंत्रण से काम करना चाहिए क्योंकि नियंत्रण का सबसे अच्छा तरीका आत्म नियंत्रण ही है।”

अदालत ने ये बातें उमर खालिद मामले की सुनवाई करते हुए कही हैं।

अदालत ने क्या कहा?

दिल्ली दंगों के अभियुक्त उमर खालिद के मामले में मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया है कि उन्होंने दंगों में अपनी भूमिका होने की बात कबूल कर ली है और इस आधार पर उसे अपराधी करार दे दिया गया, जबकि उमर ने अदालत से अपील की थी कि ऐसी कवरेज करके टीवी उसकी छवि को खराब कर रहा है और इस निष्पक्ष न्याय पर असर पड़ सकता है।

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मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने कहा, “प्रेस और समाचार माध्यम को लोकतांत्रिक समाज का चौथा खंभा माना जाता है। इसे समाज की रक्षा करने वालों में माना जाता है।”

उन्होंने आगे कहा, “लेकिन यदि प्रेस और समाचार माध्यम अपना काम सावधानी से करने में कामयाब नहीं होते हैं तो इससे खतरा पैदा होता है। इनमें से एक खतरा मीडिया ट्रायल का है।”

मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने आगे कहा कि “आपराधिक न्याय प्रणाली की बुनियादी बात है कि जब तक अपराध साबित नहीं होता तब तक अभियुक्त निर्दोष है। इसे शुरू में ही मीडिया ट्रायल कर नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।”

अदालत ने यह भी कहा कि एक समाचार की शुरुआत ही होती है, ‘कट्टरपंथी इस्लामवादी और हिन्दू विरोध दंगों के अभियुक्त उमर खालिद’ से, जबकि इस दंगे से समाज का हर समुदाय प्रभावित हुआ था।

इसके पहले उमर खालिद ने एक याचिका में कहा था कि मीडिया का एक हिस्सा जानबूझ कर उनके खिलाफ पूर्वग्रह से ग्रसित विचार फैला रहा है और ऐसा जानबूझ कर किया जा रहा है।

उन्होंन यह आरोप भी लगाया था कि उनके मामले की चार्जशीट को जानबूझ कर लीक कर दिया गया था।

उमर खालिद के अलावा ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां मीडिया ने गैर-ज़िम्मेदाराना ढंग से रिपोर्टिंग की है और अभियुक्त को शुरू में दोषी बता दिया है।

खालिद जवाहर लाल नेहरू में पढ़ाई कर रहे हैं। उन पर यह आरोप भी लगा था कि उन्होंने कुछ कश्मीरी छात्रों के साथ ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के नारे लगाये थे। उमर के खिलाफएक तरफा टीवी कवरेज से प्रभावित एक लड़के ने दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब के बाहर जान लेवा हमला भी किया गया था।

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इसी प्रकार जेएनयू के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ भी समाचार चैनलों ने रिपोर्ट की थी कि उन्होंने ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’, के नारे लगाए थे। उनके ‘हमें चाहिए आजादी’ के नारे को एक टीवी चैनल ने एडिट कर गलत ढंग से पेश किया था।

नतीजा यह हुआ था कि कन्हैया को गिरफ्तार किया गया और अदालत में उन पर हमला हुआ था। कन्हैया कुमार पर ये आरोप अब तक साबित नहीं हुए हैं, उन पर तो मुकदमा की सुनवाई भी शुरू नहीं हुई है।

करन जौहर का मामला भी याद होगा। फिल्म निर्देशक करण जौहर के घर पर बने एक वीडियो को दिखा कर फिल्म इंडस्ट्री पर यह आरोप लगाया गया था कि ये सब नशेड़ी हैं।

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इस वीडियो में करण जौहर, शाहिद कपूर, अर्जुन कपूर, विक्की कौशल को साफ देखा जा सकता था। करण जौहर के बार बार सफाई देने के बावजूद इन लोगों पर कीचड़ उछाले गये और उस वीडियो के आधार पर कहा गया कि ये ड्रग पार्टी थी।

रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ पर इन विडियो के आधार पर गंभीर आरोप लगाये गये और एकतरफा डिबेट की गयी। इससे नाराज
होकर मुंबई के 34 फिल्म निर्माताओं ने अदालत में अर्जी देकर कहा था कि इन दोनों समाचार चैंनलों ने कई फिल्मी हस्तियों के खिलाफ बेबुनियाद, गैर-जिम्मेदाराना और अवमाननापूर्ण सामग्री चलायी है और उनका मीडिया ट्रायल किया है।

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