Wednesday - 10 January 2024 - 5:45 AM

डॉक्टरों को लेकर योगी के फरमान पर पीएमएस नाराज

जुबिली स्पेशल डेस्क

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने डॉक्टरों को लेकर कई अहम फैसले लिए हैं। इन फैसलों के अनुसार अब योगी सरकार डॉक्टरों के लिय सख्त कदम उठाने जा रही हैं।

स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव के अनुसार, आदेश में ये साफ किया गया है कि डॉक्टरों को अब पीजी करने के बाद अब कम से कम 10 साल तक सरकारी अस्पताल में अपनी सेवा देनी होगी और अगर कोई डॉक्टर बीच में नौकरी छोड़ता है तो उन्हें एक करोड़ रुपये तक धनराशि सरकार को देनी होगी।

स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक डॉ. डीएस नेगी ने बताया कि अगर कोई डॉक्टर पीजी कोर्स की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देता है तो उन्हें तीन साल के लिए डिबार कर दिया जाएगा। मतलब इन तीन सालों में वो दोबारा दाखिला नहीं ले सकेंगे।

इस शासनादेश पर पीएमएस के अध्यक्ष डॉ सचिन वैश्य का कहना है कि चिकित्सकों को सीनियर रेजिडेंट लिए मना कर दिया गया या यूं कहिए कि उपयुक्त नहीं पाया गया।

यह अजीब विरोधाभास है। एक तरफ तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नए चिकित्सा संस्थानों को खोलने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं, वहीं दूसरी ओर इन संस्थानों में फैकल्टी कहां से आएगी, यह कोई सोचना ही नहीं चाहता। सीनियर रेजिडेंट करने के पश्चात ही कोई चिकित्सक असिस्टेंट प्रोफेसर या प्रोफेसर बन पाते हैं। तो हमारे संवर्ग के चिकित्सकों को सीनियर रेजिडेंट की अनुमति मिलनी चाहिए।

डॉ सचिन वैश्य ने आगे कहा कि इससे ना केवल चिकित्सा संस्थानों में हमारे द्वारा फैकल्टी की कमी पूरी हो सकेगी बल्कि जनता को भी अधिक से अधिक विशेषज्ञता का लाभ मिल सकेगा।

संघ का मानना है कि भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक को शिक्षा का अधिकार है और अगर ऐसा किया जा सकता है तो क्यों नहीं? किसी भी शिक्षित संवर्ग को कूपमंडूकता का शिकार नहीं बनाया जा सकता।

हमारे द्वारा इस विषय पर मुख्यमंत्री से भी एक पत्राचार करके अनुरोध किया जा रहा है कि वे इस पर अवश्य विचार करें। इसके साथ ही साथ शासन भी इस हेतु पुनर्विचार करे क्योंकि भविष्य में ये व्यवस्था एक मील का पत्थर साबित होगी ओर हम नए आयामों को स्थापित कर सकेंगे।
बता दें कि उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में तैनात सैकड़ों डॉक्टर हर साल पीजी में दाखिला लेते हैं।

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सरकार ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि जो भी एमबीबीएस डॉक्टर उत्तर प्रदेश में पीजी करेगा उसे सरकारी अस्पताल में कम से कम दस साल की सेवा देनी होगी। बीच में नौकरी छोड़ी तो एक करोड़ रुपये जुर्माना अदा करना होगा।

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