Friday - 12 January 2024 - 12:37 PM

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग खाते थे बीफ, स्टडी में हुआ खुलासा

जुबिली न्यूज डेस्क

पिछले कुछ सालों से भारत में बीफ को लेकर खूब सियासत हो रही है, खासकर बीजेपी शासित राज्यों में। कई राज्यों में तो बीफ को लेकर इतनी बड़ी-बड़ी घटनाएं हो चुकी है जिसकी गूंज देश की संसद में भी सुनाई दी।

बुलंदशहर हिंसा का मामला हो या झारखंड में बीफ बेचने के शक में एक दुकानदार को पीट-पीटकर मार डालने की घटना। केरल में बीफ पकाने के शक में हुई मॉब लिंचिग का मामला हो या राजस्थान में गौ तस्करी के शक में रकबर खान को पीट- पीटकर मार डालने का मामला, इन सभी घटनाओं का शोर संसद में सुनाई दिया।

देश के अधिकांश राज्यों में गो हत्या पर पूरी या आंशिक रूप से प्रतिबंध है। सिर्फ 10 राज्य ऐसे हैं जहां गाय, बछड़ा, बैल, सांड और भैंस को काटने और उनका गोश्त खाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

भारत की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी हिंदू है जिनमें ज्यादातर लोग गाय को पूजते हैं, लेकिन ये भी बड़ा सच है कि दुनियाभर में च्बीफज़् का सबसे ज़्यादा निर्यात करनेवाले देशों में से भारत एक है।

भारत में बीफ को लेकर कुछ सालों से सियासत हो रही है लेकिन इसे लोग सदियों से खाते आ रहे हैं। बीफ को लेकर एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग बीफ भी खाते थे।

सिंधु घाटी सभ्यता पर हुए एक स्टडी में पता चला है कि उस समय के लोगों के भोजन में मांस का वर्चस्व था, जिसमें गो-मांस भी शामिल था।

इस स्टडी के नतीजे ‘जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस’ में छपे हैं। इस स्टडी का नेतृत्व कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर अक्षयेता सूर्यनारायण कर रही थीं।

इनकी टीम में पुणे के डेक्कन कॉलेज के पूर्व उप-कुलपति और जाने-माने पुरातत्वविद प्रोफेसर वसंत शिंडे और बीएचयू के प्रोफेसर रविंद्र एन सिंह भी शामिल हैं।

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स्टडी के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश में हड़प्पा से जुड़े स्थलों पर मिले मिट्टी के बर्तनों में वसा के अवशेषों का विश्लेषण किया गया।

विश्लेषण में सूअरों, गाय-बैलों, भैंसों, भेंड़-बकरियों जैसे पशु उत्पाद और डेरी उत्पादों के अवशेष मिले।

स्टडी के मुताबिक अवशेषों में पालतू जानवरों में से 50 से 60 प्रतिशत हड्डियां गाय, बैलों और भैंसों की मिली हैं और केवल 10 प्रतिशत हड्डियां भेड़ों और बकरियों की थीं।

अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक यह इस बात का संकेत है कि सिंधु घाटी की सभ्यताओं में सांस्कृतिक तौर पर भोजन में बीफ खाने में पसंद की वस्तु रही होगी।

कई स्थानों पर बर्तनों में कम मात्रा में हिरन, खरगोश, पक्षी और जलचरों के भी अवशेष मिले हैं। कुछ विशेष किस्म के मर्तबानों की समीक्षा में वाइन और तेल के भंडारण के भी संकेत मिले हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता आधुनिक पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिमी और पश्चिमी भारत अफगानिस्तान में फैली हुई थी।

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इस अध्ययन में पांच गांवों और दो कस्बों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। गांवों में आलमगीरपुर (मेरठ, उत्तर प्रदेश), मसूदपुर (हिसार, हरियाणा) में दो गांव, लोहारी राघो (हिसार) और खनक (भिवानी, हरियाणा) शामिल हैं। कस्बों में फरमाना (जिला रोहतक, हरियाणा) और राखीगढ़ी (हिसार) शामिल हैं।

हड़प्पा में 90 प्रतिशत गाय-बैलों को तीन, साढ़े तीन साल तक की उम्र तक जिन्दा रखा जाता था। मादा पशुओं को डेरी उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जाता था और नर पशुओं को सामान खींचने के लिए।

किन राज्यों में पूरा प्रतिबंध

गो-हत्या पर पूरे प्रतिबंध का मतलब है- गाय, बछड़ा, बैल और सांड की हत्या पर रोक। ये रोक 11 राज्यों -भारत प्रशासित कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महराष्ट्र, छत्तीसगढ़, और दो केन्द्र प्रशासित राज्यों – दिल्ली, चंडीगढ़ में लागू है।

गो-हत्या क़ानून के उल्लंघन पर सबसे कड़ी सज़ा भी इन्हीं राज्यों में तय की गई है। हरियाणा में सबसे ज़्यादा एक लाख रुपए का जुर्माना और 10 साल की जेल की सजा का प्रावधान है। वहीं महाराष्ट्र में गो-हत्या पर 10,000 रुपए का जुर्माना और पांच साल की जेल की सजा है। हालांकि छत्तीसगढ़ के अलावा इन सभी राज्यों में भैंस के काटे जाने पर कोई रोक नहीं है।

4 साल में मॉब लिंचिंग के 134 मामले

मोहम्मद अख्लाक से लेकर रकबर खान तक.. पिछले 4 सालों में 2014 से 2018 के बीच मॉब लिंचिंग के 134 मामले हो चुके हैं और एक वेबसाइट के मुताबिक इन मामलों में 2015 से अब तक 68 लोगों की जानें जा चुकी हैं।

इनमें दलितों के साथ हुए अत्याचार भी शामिल हैं, लेकिन सिर्फ गोरक्षा के नाम पर हुई गुंडागर्दी की बात करें तो सरकारी आंकड़े कहते हैं कि साल 2014 में ऐसे 3 मामले आए और उनमें 11 लोग ज़ख्मी हुए, जबकि 2015 में अचानक ये बढ़कर 12 हो गया। इन 12 मामलों में 10 लोगों की पीट-पीट कर मार डाला गया जबकि 48 लोग जख्मी हुए।

2016 में गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्डी की वारदातें दोगुनी हो गई हैं। 24 ऐसे मामलों में 8 लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ीं जबकि 58 लोगों को पीट-पीट कर बदहाल कर दिया गया। वहीं साल 2017 में तो गोरक्षा के नाम पर गुंडई करने वाले बेकाबू ही हो गए। 37 ऐसे मामले हुए जिनमें 11 लोगों की मौत हुई, जबकि 152 लोग बुरी तरह जख्मी हुए। 2018 और 2019 में भी मॉब लिंचिंग की खूब घटनाएं हुई और इस पर बहस भी खूब हुई।

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