Saturday - 6 January 2024 - 1:51 PM

इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों से निपटने में सक्षम है नई शिक्षा नीति

कृष्णमोहन झा

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नया नाम अब शिक्षा मंत्रालय होगा। केंद्र सरकार के द्वारा हाल में ही घोषित नई शिक्षा नीति में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम भर नही बदला है, इसमें बहुत कुछ बदल गया है। देश में अभी तक जारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में लागू की गई थी जब केंद्र में प्रधानमंत्री पद की बागडोर राजीव गांधी संभाल रहे थे।

राजीव गांधी सरकार के पहले 1968 में तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति तैयार की गई थी। राजीव गांधी सरकार ने ही शिक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय किया था। 1992 में शिक्षा नीति में थोड़े बदलाव जरूर किए गए परंतु वे इतने बड़े बदलाव नहीं थे कि उसका स्वरूप ही बदल जाए। केंद्र में अटल सरकार के कार्य काल में भी 1986 की शिक्षा नीति ही जारी रही और मनमोहन सरकार ने भी नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए कोई सक्रिय पहल नहीं की।

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2014 के लोकसभा चुनावों में जब भाजपा को बहुमत मिला और उसके नेतृत्व में बनी राजग सरकार के प्रधान मंत्री पद की बागडोर नरेंद्र मोदी सरकार ने संभाली तो भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वादों को अमली जामा पहनने की दिशा में मोदी सरकार ने तेजी से कदम बढ़ाने शुरू किए।

भाजपा ने चुनाव घोषणापत्र में किए गए वादे के मुताबिक नई शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व अध्यक्ष कस्तूरी रंगन की अध्यक्षता में एक 9 सदसीय समिति का गठन किया जिस पर देश भर से सुझाव आमंत्रित किए गए और उन सब के आधार पर गई शिक्षा नीति को अंतिम रूप दिया गया है।

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कस्तूरी रंगन समिति ने अपनी रिपोर्ट में मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर पुन: शिक्षा मंत्रालय करने का सुझाव दिया और शिक्षा प्रणाली को रोजगारोन्मुख बनाने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। 34 साल बाद घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पूरी तरह लागू करना भी सरकार के लिए अपने आप में एक चुनौती है परंतु मोदी सरकार की इच्छा शक्ति को देखते हुए यह माना जा सकता है कि शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में समर्थ इस शिक्षा नीति के संपूर्ण क्रियान्वयन में सरकार कोई कसर बाकी नहीं रखेगी।

कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार ने अपनी स्वीकृति दे दी है। आम तौर पर नई शिक्षा नीति के अधिकांश प्रावधानों का स्वागत किया जा रहा है और इसमें जो खामियाँ गिनाई जा रही हैं वे इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं कि इस महत्वाकांक्षी शिक्षा नीति की खूबियों की चर्चा ही न की जाए।

मोदी सरकार इस बात के लिए निसंदेह सराहना की हकदार है कि उसने 34 सालों से चली आ रही शिक्षा नीति में बदलते समय की चुनौतियों के अनुसार परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की और महान वैग्यानिक कस्तूरी रंगन की अगुवाई में एक समिति का गठन किया, जिसने अथक परिश्रम से नई राष्ट्रीय नीति का प्रारूप तैयार किया फिर इस प्रारूप पर देश भर से मिले सुझावों के आधार पर नई शिक्षा नीति को अंतिम रूप दिया गया। केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का मानना है कि नई शिक्षा नीति के छात्रों के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।

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डॉ. कस्तूरी रंगन कहते हैं कि नई शिक्षा नीति पिछले तीन दशकों में सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक व राजनीतिक क्षेत्रों में आए महत्वपूर्ण परिवर्तनों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। इसमें शिक्षा के विभिन्न आयामों के बीच संतुलन साधने का पूरा प्रयास किया गया है। डॉ. कस्तूरी रंगन ने आशा व्यक्त की है कि नई राष्ट्रीय नीति के सकारात्मक प्रभाव अगले दो तीन सालों में दिखाई देने लगेंगे।

नई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा की वर्तमान 10+2 प्रणाली के स्थान पर 5+3+3+4 प्रणाली का प्रावधान किया गया है। छात्रों को प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा में प्रदान की जाएगी। उन्हें इस स्तर तक मातृभाषा अथवा किसी क्षेत्रीय भाषा में अध्ययन करने की छूट होगी। यह इस शिक्षा नीति की एक प्रमुख विशेषता है।

नई शिक्षा नीति में संस्कृत को पर्याप्त महत्व देने का प्रावधान है। त्रिभाषा फार्मूला पर आधारित स्कूली शिक्षा में छठवीं कक्षा से ही वोकेशनल कोर्स लागू किए जायेंगे। छात्रों के लिए स्कूल में ही इंटर्नशिप की व्यवस्था भी की जाएगी। इसका उद्देश्य स्कूल से ही शिक्ष रोजगारान्मुखी बनाना है। जब उनकी स्कूली शिक्षा पूर्ण होगी तब तक वे अपने अंदर छिपे किसी हुनर को विकसित कर चुके होंगे।

अपनी अभिरुचि के क्षेत्र में प्रवीणता उन्हें आगे चलकर स्वयं का व्यवसाय शुरू करने में मदद करेगी। छात्रों को स्कूल से ही व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने की सिफारिश निसंदेह स्वागतेय है। अब स्कूलों में आर्टस्, साइंस और कामर्स का बंटवारा समाप्त कर दिया गया है। साइंस के छात्र को साथ में आर्टस् का विषय लेने की भी छूट होगी। बीच में वह चाहे तो उसे छोड भी सकेगा लेकिन साइंस का छात्र साइंस का और कामर्स का ही माना जाएगा।

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इस शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा में भी कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। सबका उद्देश्य बदलते समय की चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना करने के लिए छात्रों को सक्षम बनाना है। कस्तूरी रंगन समिति की इस रिपोर्ट में जहां छात्रों के सर्वागीण विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है वहीं शिक्षा को गुणवत्ता में सुधार करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रधान किए गए हैं। विश्व की 100 शीर्ष विदेशी यूनिवर्सिटीज को भारत में कैंपस खोलने के लिए आमंत्रित किया जाएगा, परंतु उनका नियमन भी भारतीय शिक्षण संस्थानों के समान ही होगा।

डिजिटल शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए नेशनल एजुकेशनल टेक्नालाजी फोरम का गठन किया जाएगा। कस्तूरी रंगन समिति की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति तय की है उसमें समिति की यह सिफारिश भी शामिल है कि शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6 प्रतिशत खर्च किया जाना चाहिए। आजादी के सात दशकों के बाद भी हमारे देश में शिक्षा के लिए यह राशि 4 प्रतिशत के आसपास ही रही है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने नई शिक्षा नीति की घोषणा करते हुए यह कहा है सरकार ज़ीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने के लिए कृतसंकल्प है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री की घोषणा को सरकार अगर अमल में लाने में सफल हो सकी तो निश्चित रूप से इस शिक्षा नीति से शिक्षा के वर्तमान स्वरूप मे महत्वाकांक्षी बदलाव आने की उम्मीद को बल मिलेगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए राज्यों के ऊपर भी काफी कुछ छोडा गया है।

कस्तूरी रंगन समिति की सिफारिशें इतनी व्यापक और बहुआयामी हैं कि इन्हें एक साथ लागू करना संभव ही नहीं हैं। इन्हें चरणबद्ध तरीके से ही लागू किया जा सकता है। राज्य सरकारों की भागीदारी भी उसमें सुनिश्चित करनी होगी। केंद्र सरकार ने जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की सिफारिश तो मान ली है परंतु इसके लिए दृढ इच्छा शक्ति भी दिखानी होगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद यह धारणा भी बन सकती है कि इसे समझने के लिए कठिन कवायद करनी होगी।

छात्रों और शिक्षकों के बीच भी इस शिक्षा नीति को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हुई है। उन्हें दूर करना सरकार की जिम्मेदारी है। कुछ हद तक इसका सरलीकरण किए जाने की भी आवश्यकता महसूस की जा रही है। इसमें प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा अथवा क्षेत्रीय भाषा रखने का जो प्रावधान किया जा रहा है वह देश में समाज के हर वर्ग को स्वीकार्य होगा यह मानना उचित नहीं होगा। महंगे पब्लिक स्कूलों का संचालन करने वाली संस्थाएं इसके लिए आसानी से तैयार हो जाएंगी यह दावे के साथ कह पाना मुश्किल है।

वास्तव में आवश्यकता तो सरकारी स्कूलों के गुणवत्ता स्तर के उन्नयन की है। सरकार से कोई अनुदान न लेने वाले आर्थिक रूप से सक्षम निजी शिक्षण संस्थान नई शिक्षा नीति के इस प्रावधान को अपने लिए बाध्यकारी मानेंगे इसमें संदेह ही है। फिर भी शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाने की जो पहल इस शिक्षा नीति में की गई है वह सराहनीय है। बच्चों की पाठ्यक्रमेतर अभिरुचियों को विकसित करने के लिए भी इस शिक्षा नीति में बहुत कुछ है। मोदी सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति यह संदेश महत्वपूर्ण है कि इसमें इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों से निपटने हुए नए भारत के निर्माण की ललक इसमें स्पष्ट दिखाई देती है। कस्तूरी रंगन समिति और मोदी सरकार दोनों इसके लिए साधुवाद की पात्र हैं।

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