Saturday - 6 January 2024 - 10:11 PM

बातें करने से नहीं बल्कि अमल में लाने की जरूरत है

प्रीति सिंह

पिछले कई सालों से प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने या पूरी तरह से खत्म करने की बात की जा रही है। दुनिया भर के तमाम देश इसमें शामिल हैं, लेकिन साल दर साल पर्यावरण को लेकर जो रिपोर्ट आ रही है उससे तो यही लग रहा है कि इस मुद्दें पर सिर्फ बात ही हो रही है, अमल नहीं हो रहा है।

दुनिया भर के वैज्ञानिक पर्यावरण को हो रहे नुकसान को लेकर लोगों को सचेत कर रहे हैं, बावजूद इसके कोई सुधार नहीं हो रहा है। इंसानों की लापरवाही का नतीजा है कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, पृथ्वी के तापमान में बढ़ोत्तरी हो रही है जिसकी वजह से गर्मी बढंती जा रही है। ये सब पृथ्वी के विनाश का सबब बन रहे हैं।

पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में सबसे बड़ा हाथ प्लास्टिक का है। यह बात सभी को मालूम है बावजूद इसके इससे कोई भी तौबा करने को तैयार नहीं है, जबकि प्लास्टिक से तौबा करना वक्त की जरूरत बन चुकी है। वर्तमान में प्लास्टिक मानवजाति के लिए ही नहीं बल्कि हर तरह के जीव के लिए दुश्मन के तौर पर देखा जा रहा है। प्लास्टिक प्रदूषण की वजह से पूरी दुनिया बेहाल है। समुंद्र में जीव-जंतुओं वजूद पर संकट खड़ा हो गया है।

यह भी पढ़ें : Climate change: अगले तीस साल में आज से चार गुना हो जायेंगे कूलिंग उपकरण

यह भी पढ़ें :  ग्रेटा के आंदोलन के बाद से कितना बदला है पर्यावरण?

यह भी पढ़ें : अस्तित्वविहीन होते जंगल और पर्यावरण

जिस तरह दुनिया भर में प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है उससे वह दिन दूर नहीं जब समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक का कचरा होगा। हाल ही में प्रकाशित एक शोध में खुलासा हुआ है कि 2040 तक समुद्र में मौजूद प्लास्टिक कचरे में तीन गुना तक इजाफा हो जाएगा। और 2050 तक समुद्र में उतना प्लास्टिक होगा जितनी उसमें मछलियां भी नहीं हैं।

यह शोध एक अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित हुआ है। इसे द प्यू चैरिटेबल ट्रस्ट और सिस्टेमिक नामक संस्था द्वारा किया गया है। इसमें एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन, कॉमन सीस, ऑक्सफोर्ड और लीड्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सहयोग किया है।

पर्यावरण के लिए प्लास्टिक का कचरा इसलिए दुश्मन बन गया है, क्योंकि उसका क्षरण सैकड़ों वर्षों में होता है। यह संकट अब गंभीर रूप ले चुका है। अब तो एक बार प्रयोग होने वाले प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद करने की भी बात कही जा रही है। ऐसी स्थिति आने से पहले हम खुद सचेत हो जाए तो इस गंभीर संकट से बचा जा सकता है। यह सच है कि प्लास्टिक के सामान से तभी पीछा छूटेगा जब इसका विकल्प उपलब्ध होगा।

भारत ही नहीं पूरी दुनिया प्लास्टिक के कचरे से परेशान है। नदी, समंदर, पहाड़, द्वीप या मैदान, हर जगह प्लास्टिक के कचरे से प्रदूषण फैल रहा है और इससे पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। प्लास्टिक के कचरे से सबसे ज्यादा नुकसान समुद्री जीवों को हो रहा है। अधिकांश बीच पर प्लास्टिक बोतल, डिस्पोजल, पॉलीथिन और सिगरेट जगह-जगह पड़े दिखते हैं और समुद्र की लहरें इसे अपने साथ लेकर चली जाती हैं।

यह भी पढ़ें : जलते जंगल और पर्यावरणविदों की चिंता 

यह भी पढ़ें : राजस्थान में ऊंट कब तक खड़ा रहेगा

रिपोर्ट्स के अनुसार समुद्र प्लास्टिक कचरे से बेहाल हैं और समुद्री जीव-जंतुओं का इससे दम घुट रहा है। यह धरती के लिए काफी हानिकारक है। ये आंकड़े लोगों को सतर्क होने के लिए आगाह कर रहे हैं। ये चेतावनी दे रहे हैं कि यदि अब भी सचेत न हुए तो ये प्लास्टिक कचरा भयानक तबाही लेकर आयेगा, जो सब पर भारी पड़ेगा।

लोगों को समुद्र की लहरें बहुत आकर्षित करती है लेकिन वह अपने भीतर कितना कचरा रखे हुए है यह जानकर आपको हैरानी होगी। 2017 में प्रकाशित एक शोध के हवाले से स्लोएक्टिव वेबसाइट ने लिखा है कि हर साल समुद्र में 1.15 से 2.41 मिलियन टन मतलब 24 लाख टन तक प्लास्टिक कचरा जाता था। यह कचरा नदियों के माध्यम से समुद्र में जाता है। 20 प्रमुख नदियों पर अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि ज्यादातर एशिया की नदियां हैं जो समुद्रों में भारी मात्रा में कचरा पहुंचा रही हैं और दुनिया भर की नदियों से जो प्लास्टिक कचरा समुद्र में पहुंचता है, समुद्री कचरे का 67 फीसदी होता है।

दरअसल पिछले 70 सालों में प्लास्टिक की जरूरतों मे बेतहाशा वृद्धि हुई है। प्लास्टिक ओशियन संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनिया में 300 मिलियन यानी 30 करोड़ टन से ज़्यादा प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है। इसमें से आधा प्लास्टिक डिस्पोजेबल सामान के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मतलब एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है। इसका नतीजा ये होता है कि हर साल 80 लाख से 1 करोड़ टन तक प्लास्टिक वेस्ट समुद्रों में जाता है।

यह भी पढ़ें :  चीन के सबसे बड़े परमाणु सेंटर के 90 वैज्ञानिकों ने क्यों दिया इस्तीफा ?

यह भी पढ़ें : मोदी सरकार की आलोचना में पूर्व आरबीआई गवर्नर ने क्या कहा?

भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम के मुताबिक अकेले भारत में प्रति वर्ष 56 लाख टन प्लास्टिक कूड़ा पैदा होता है। पूरी दुनिया द्वारा जितना कूड़ा सालाना समुद्र में डम्प किया जाता है उसका 60 प्रतिशत कूड़ा अकेले भारत डम्प करता है। भारतीय प्रति दिन 15000 टन प्लास्टिक कचरें में फेंकते हैं।

वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट ने एक अनुमान के हिसाब से आंकड़ा दिया है कि एक साल में एक अमेरिकी या यूरोपीय व्यक्ति करीब 100 किलोग्राम प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है और इसमें से ज्यादातर इस्तेमाल पैकेजिंग के लिए किया जाता है। वहीं दूसरी ओर एशिया में प्रति व्यक्ति का आंकड़ा 20 किलोग्राम प्रति वर्ष का है। एशिया में इस आंकड़े के कम होने के पीछे आर्थिक विकास कम होना है।

प्लास्टिक पर निर्भरता ही सारी समस्या की जड़ है। दरअसल खाने-पीने की सारी वस्तुएं प्लास्टिक के पैकेट में आ रही हैं। प्लास्टिक के चलन के पीछे का कारण है कि ये लंबे समय तक बना रहता है और टूटता नहीं है। मतलब प्लास्टिक पूरी तरह से नष्ट नहीं हो सकता। विज्ञान के मुताबिक सूरज की गर्मी या ज्यादा तापमान के संपर्क में आने से प्लास्टिक कणों में टूटता है। समुद्र के मामले में ये  होता है कि समुद्र के भीतर प्लास्टिक डायरेक्ट धूप के संपर्क में नहीं आता जिसकी वजह से इसके नष्ट होने में ज्यादा वक्त लगता है। जब तक पुराना प्लास्टिक नष्ट होने के कगार पर पहुंचता है तब तक नया कचरा आ चुका होता है।

यह भी पढ़ें : थनबर्ग ने पर्यावरण अवॉर्ड लेने से क्यों किया इनकार

यह भी पढ़ें :  तो क्या ग्रेटा थुनबर्ग समय यात्री हैं

यह भी पढ़ें : प्रेम में हम क्या भूल जाते हैं

क्या करने की है जरूरत

फिलहाल अब वक्त आ गया है कि हम सचेत हो जाए। शोध के अनुसार यदि आज उपलब्ध तकनीकों का बेहतर ढंग से उपयोग किया जाए तो समुद्रों में बढ़ रहे प्लास्टिक वेस्ट में 80 फीसदी से भी ज्यादा की कटौती की जा सकती है। इसके लिए नीति निर्माताओं को बड़े परिवर्तन करने की जरूरत है।

इसके लिए सबसे जरूरी है कि प्लास्टिक के उत्पादन और उपभोग को कम करना होगा। साथ ही प्लास्टिक की जगह पेपर और अन्य सामग्री रीसाइकल हो सकने वाले उत्पादों पर बल देना होगा। इसके साथ ही विकासशील देशों में वेस्ट कलेक्शन और मैनेजमेंट की प्रक्रिया में सुधार करना होगा जबकि अमीर देशों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और रीसाइक्लिंग पर ध्यान देना होगा। इसके अलावा अपने वेस्ट को विकासशील देशों में भेजना बंद करना होगा।

यदि दुनिया के देशों ने इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले वक्त में करीब 400 करोड़ लोग वेस्ट कलेक्शन और मैनेजमेंट जैसी सुविधाओं से वंचित होंगे। ऐसे में वेस्ट की मात्रा में कितनी वृद्धि होगी इस बात का अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। ऊपर से जिस तरह से कोरोना महामारी के चलते प्लास्टिक कचरे में इजाफा हो रहा है वह इस समस्या को अधिक बड़ा और खतरनाक बना देगा।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com