Wednesday - 10 January 2024 - 7:09 PM

अस्तित्वविहीन होते जंगल और पर्यावरण

प्रीति सिंह

प्रकृति में हर चीज का अपना महत्व है। प्रकृति में उपलब्ध हवा, मिट्टी और पानी सीमित रूप से ही जीवन को पाल सकती है। प्रकृति सबको स्वतंत्र रूप से निशुल्क सब कुछ देती है और हमेशा अपेक्षा करती है कि हम इसकी अहमियत को समझेंगे। पर वर्तमान परिवेश में ऐसा नहीं है। हम प्रकृति के महत्व को नहीं समझ रहे। जीव-जंतु, पेड़-पौधे भी प्रकृति को स्वस्थ बनाए रखने में अपना योगदान दे रहे हैं। सिर्फमनुष्य ही अपने पारिस्थितिकी तंत्र को बर्बाद करने में जुटा पड़ा है।

पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ाने से पूरी दुनिया के पर्यावरणविद् चिंतिंत है। वह आने वाली पीढिय़ों के लिए चिंतिंत है। वह प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ की वजह से चिंतिंत है, क्योंकि वह जानते हैं कि मनुष्य का जन्म प्रकृति में हुआ है और प्रकृति के सानिध्य में ही वह बेहतर विकास करता है। लेकिन आज विकास और बाजारवादी अवधारणा ने सबकुछ बदल दिया है। विकास की अंधी दौड़ में मनुष्य प्रकृति का भरपूर दोहन कर रहा है। बड़े-बड़े जंगल आग के हवाले किए जा रहे हैं, जिसकी वजह से कई पेड़-पौधे, जीव-जंतु और नदियों का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है। जाहिर है यह सब होगा तो पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ायेगा ही।

प्रकृति पर मनुष्य की निर्भरता किसी से छिपी नहीं है। हमारे बुजुर्ग प्रकृति के महत्व को समझते थे तभी कई जीवों और पेड़-पौधों को देव-तुल्य मानकर उनके संरक्षण के व्यापक उपाय किये। तुलसी और पीपल इसके सटीक उदाहरण हैं। अब ऐसा नहीं है। अब लोगों को हरियाली नहीं बल्कि जगमगाते मॉल पंसद आ रहे हैं। जंगलों के अस्तित्व को मिटाकर उस पर कंक्रीट के जंगल बनाए जा रहे हैं, जहां ऑक्सीजन देने वाले और कार्बन सोखने वाले पेड़ नहीं है।

पिछले तीन सप्ताह से पूरी दुनिया की निगाहें ब्राजील के अमेजन के वर्षावन पर टिकी हुई हैं। वर्षावन धू-धू जल रहा है। आग बुझाने के सारे प्रयास विफल हो रहे हैं। पूरी दुनिया प्रार्थना कर रही है कि यह आग जल्द आग बुझे। दक्षिण अफ्रीका में स्थित अमेजन के जंगल का क्षेत्रफल लगभग 55 लाख वर्ग कि.मी. है। इस वन की गिनती धरती के सबसे विविध ट्रॉपिकल वर्षा वनों में होती है।

मालूम हो ब्राजील में अमेजन के 60 प्रतिशत वर्षावन हैं। इसे पृथ्वी का फेफड़ा भी कहा जाता है क्योंकि दुनिया को 20 प्रतिशत ऑक्सीजन इन्हीं वर्षावनों से मिलता है। इससे समझा जा सकता है कि यह जंगल पूरी दुनिया के लिए कितना महत्वपूर्ण है, फिर भी इस जंगल को आधुनिक विकास के लिए नुकसान पहुंचाया जा रहा है।

जिस तरह से अमेजन के वर्षावन में आग की घटनाएं हो रही है, उस पर सवाल खड़े हो गए हैं। 1950 से लेकर अब तक अमेजन वर्षावन का 18 प्रतिशत हिस्सा खत्म हो चुका है। वहीं इन वर्षावनों में लगने वाली आग की घटनाओं में इस साल 83 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

अमेजन के जंगलों में जिस तरह से आग की घटनाएं हो रही है वह बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रही हैं। इन आग की घटनाओं के लिए ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो की नीतियों भी जिम्मेदार बतायी जा रही है। जंगल में आग की घटनाओं को साजिश इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि राष्ट्रपति की नीति में अमेजन के इलाके में खेती और खनन करना भी शामिल है। इसलिए यह सवाल उठ रहा है। इसके अलावा एक राष्ट्रपति को जिस तरह जंगल के कटान और आग को लेकर चिंतिंत होना चाहिए वैसी चिंता उनकी नहीं दिखती। जब देश का मुखिया चिंता नहीं करेगा तो आम लोग क्या करेंगे।

दुर्भाग्य से आज हमने ऐसे हालात बना दिये हैं कि सरकार और आम लोगों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला आग को बुझाने की बजाय, भड़काने का काम कर रहा है। जाहिर है प्राचीन परम्पराओं से खिलवाड़ का यही परिणाम निकलना था?

अमेजन के जंगल में लगे आग से अब 47 हजार किलोमीटर जंगल जलकर खाक हो चुका है।  इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे पर्यावरण के साथ-साथ मनुष्य को कितना बड़ा नुकसान हुआ है। जंगल से उठने वाले धुएं की वजह से ब्राजील के कई राज्यों में अंधेरा छाया हुआ है। कार्बन की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि लोग सांस नहीं ले पा रहे हैं। इस आग में कितने पेड़-पौधे, जीव-जंतु खत्म हो गए। ये सब प्रकृति के लिए और मानव जाति के लिए बहुत ही उपयोगी थे।

जंगलों में आग लगना कोई नई बात नहीं है। दुनिया भर के जंगलों में आग लगता है। कहीं गर्म मौसम की वजह से खुद लग जाता है तो कहीं साजिशन लगाया जाता है। ऐसे ही जंगलों में आग लगने की वजह से पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ रहा है। इस तंत्र में मनुष्य या अन्य जीवों की संख्या के अनुपात में प्रकृति के अन्य संसाधन घटते जा रहे हैं। पृथ्वी ऐसे बोझ से दबी हुई है जिसमें पारिस्थितिकी का दम घुट रहा है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि हमारे लिए हवा और पानी कम पडऩे के साथ ही हमारे सामने जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।

दरअसल मनुष्य अपनी कौशल और बुद्धि का दुरुपयोग कर रहा है। वह प्रकृति पर अपनी मनमर्जी चला रहा है। अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए वह प्रकृति को नजरअंदाज कर रहा है। वह अपने लिए सब कुछ जुटाने में लगा हुआ है और अन्य जीव व प्रकृति के अन्य उत्पादों के महत्व को नकार रहा है।

इसी नकारने का नतीजा है कि जंगलों में आग लगाकर उसे महत्ववविहीन किया जा रहा है। इसी का परिणाम है कि मनुष्य समय-समय पर प्राकृतिक आपदाओं से दो-चार हो रहा है। जिस क्षेत्र में गर्मी में सूखा के स्थिति थी, वही क्षेत्र जुलाई-अगस्त माह में बाढ़ के पानी से जलमग्न हो गए। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, यह सोचने का विषय है। यदि अब हम सचेत नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ियों को इसकी भरपाई करनी पड़ेगी।

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