Saturday - 13 January 2024 - 7:56 PM

मुलायम प्रेम है लेकिन अपनी अलग पहचान बनाने की चुनौती है शिवपाल पर

सैय्यद मोहम्मद अब्बास

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी दोबारा जिंदा होने के लिए संघर्ष कर रही है। अखिलेश यादव पांच साल यूपी के सीएम रहे लेकिन जनता ने उनको दूसरा कार्यकाल नहीं दिया। आलम तो यह रहा कि यूपी में सपा का सूपड़ा साफ हो गया है। इतना ही नहीं सपा को विधान सभा चुनाव में भारी पराजय झेलनी पड़ी। इसके बाद लोकसभा चुनाव में फिर हारी सपा। लगातार दो चुनाव में हार के बाद से अखिलेश यादव ने अपने राजनीति पारी को ठीक से आगे नहीं बढ़ा सके।

दो चुनाव के हार के बाद फिर लोकसभा चुनाव में सपा दम-खम के साथ उतरी लेकिन मोदी की सुनामी में सपा की बची-कुची उम्मीदें भी दम तोड़ गई। इसके आलावा अखिलेश के फैसलों पर सवाल उठने लगा। पहले राहुल गांधी फिर मायावती के साथ गठबंधन लेकिन रिजल्ट के नाम पर कुछ भी नहीं रहा। सपा और नीचे चली गई।

बताया जाता सपा का ये हाल परिवारिक कलह की वजह से हुआ है। उधर मुलायम की सेहत भी पहले जैसी नहीं रही। इस वजह से वह पार्टी सक्रिय भी नजर नहीं आ रहे हैं। जब से शिवपाल यादव ने सपा से किनारा किया है तब उसे और नुकसान पहुंचा है। दरअसल शिवपाल यादव मुलायम की विरासत को संभालने का दावा करते आये हैं लेकिन असली वारिस अखिलेश यादव ही है। पिता मुलायम भी अपने बेटे को सियासी पारी में पूरा समर्थन करते नजर आ रहे हैं। हालांकि उनके लिए शिवपाल यादव भी काफी अहम रहे हैं।

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सपा को अगर राष्ट्रीयस्तर पर पहचान मिली है तो इसमें शिवपाल यादव का भी खास योगदान रहा है लेकिन दोनों ही मुलायम की विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं। इसी को लेकर दोनों के बीच रिश्ते खराब हो चुके हैं लेकिन शिवपाल अब भी मुलायम को अपना सियासी गुरू मानते हैं। आलम तो यह है कि नेताजी की हर बात पर शिवपाल की हां होती है लेकिन उनके भतीजे के साथ रिश्ते ठीक इसके उलट रहे हैं। शिवपाल ने जब से सपा से किनारा किया है तब से वह सपा को किसी न किसी रूप में नुकसान पहुंचाते रहे हैं।

पहले तो उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाकर अखिलेश से नाराज लोगों को शामिल कर सपा पर दबाव बनाया और उसके बाद लोकसभा चुनाव में सपा का वोट काटने का काम किया है। दूसरी ओर लगातार हार से परेशान अखिलेश यादव ने अगले चुनाव में किसी के साथ समझौता करने से मना कर दिया है। ऐसे में चाचा और भतीजे में अब शायद ही कोई सुलह हो।

शिवपाल यादव ने नई पार्टी बनाकर अपनी राजनीति कद को बढ़ाने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। शिवपाल की कोशिश है कि उनकी पार्टी प्रसपा सपा का विकल्प बनकर यूपी में नजर आये। इतना ही नहीं उनकी कोशिश है कि उनकी पहचान अब मुलायम या फिर अखिलेश की वजह से नहीं हो बल्कि वह खुद से पहचाने जाये।

शिवपाल चाहते हैं कि उनका परिचय अखिलेश के चाचा और मुलायम सिंह के भाई से न हो बल्कि शिवपाल यादव खुद अपने नाम से जाना जाये। इस वजह से मुलायम कई बार कहने पर सपा में दोबारा इंट्री करने से मना कर दिया है।

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