Wednesday - 10 January 2024 - 5:05 PM

विलायत जाफ़री के न होने का मतलब

शबाहत हुसैन विजेता

लखनऊ. लखनऊ दूरदर्शन में निदेशक रहे विलायत जाफ़री को कोरोना ने छीन लिया. आकाशवाणी और दूरदर्शन के वह निदेशक रहे. दूरदर्शन से उप महानिदेशक के पद से रिटायर हुए. लखनऊ के रंगकर्मियों में वह इस तरह से लोकप्रिय थे जैसे कि हर रंगकर्मी के परिवार के सदस्य हों. पत्रकारों के बीच भी वह सबसे ज्यादा पसंद किये जाने वाले लोगों में से थे.

दूरदर्शन और आकाशवाणी को बहुत से निदेशक मिले हैं, आगे भी मिलते रहेंगे. बहुत से निदेशकों ने बहुत शानदार काम किया है आगे भी शानदार काम होते रहेंगे लेकिन प्रसार भारती को अब कोई विलायत जाफरी नहीं मिलेगा.

वह कहानीकार थे, नाट्य लेखक थे, नाट्य निर्देशक थे. स्क्रिप्ट राइटर थे. दूरदर्शन के लिए धारावाहिक लिखते थे. उनके धारावाहिक उस दौर में आये हैं जब उन्हें मील का पत्थर समझा जाता था. वह किस लेबिल के लेखक थे इसे समझना हो तो धारावाहिक नीम का पेड़ याद करना होगा.

नीम का पेड़ की 24 कड़ियां राही मासूम रज़ा ने लिखी थीं और 34 कड़ियां विलायत जाफरी ने लिखीं. इस धारावाहिक को देखने वाला यह तय नहीं कर सकता कि कौन सी कड़ी राही मासूम रज़ा ने लिखी और कौन सी विलायत जाफरी ने.

दूरदर्शन के लिए उन्होंने नीम का पेड़ के अलावा, आधा गाँव, शेरशाह सूरी और रुस्तम सोहराब जैसे धारावाहिक लिखे. नाट्य लेखन में उनका किसी से मुकाबला नहीं था. न इसके लिये उन्हें संगीत नाटक अकादमी सम्मान भी मिला.

 

विलायत जाफरी के कई रूप थे और हर रूप बहुत शानदार था. दूरदर्शन और आकाशवाणी में वह निदेशक थे तो ऐसे अधिकारी थे जिसके कार्यकाल में दूरदर्शन और आकाशवाणी से कलाकारों का सबसे ज्यादा जुड़ाव हुआ. कोई भी कलाकार उनसे कभी भी मिल सकता था. आकाशवाणी और दूरदर्शन की तरक्की के लिए उन्होंने हर संभव उपाय किये.

विलायत जाफरी सिर्फ एक अधिकारी नहीं थे. क्रियेशन उनके जिस्म में खून बनकर दौड़ता था. उन्होंने लाइट एंड साउंड शो की शुरुआत की. यह अनूठा प्रयोग था. लखनऊ की रेजीडेंसी में बढ़ते कदम नाम से हुए इस लाइट एंड साउंड शो की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज़ादी की लड़ाई को दर्शाने वाले इस शो के लिए उन्होंने लखनऊ की रेजीडेंसी को चुना. यह रेजीडेंसी अंग्रेजों के साथ हुई जंग की सबसे बड़ी गवाह है.

किसी ने सोचा नहीं होगा कि इस लाइट एंड साउंड शो को देखने के लिए पूरा लखनऊ उमड़ पड़ेगा. इसके दो शो रोजाना रखे जाते थे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग देख सकें. यह कार्यक्रम रोजाना होता था और रोजाना रेजीडेंसी का पूरा मैदान भर जाता था. यह शो रेजीडेंसी में पांच महीने चला था.

विलायत जाफरी ने लाइट एंड साउंड शो की शुरुआत काफी पहले की थी. उन्होंने अलग-अलग कहानियों पर देश के विभिन्न हिस्सों में लाइट एंड साउंड शो के 22 कार्यक्रम किये. लाइट एंड साउंड शो पर ग़ालिब नाम से उनकी किताब भी प्रकाशित हुई. 30 जून 2019 को लखनऊ के कैफ़ी आज़मी एकेडमी में उसका विमोचन किया गया. इस समारोह में बड़ी संख्या में रंगकर्मी और विभिन्न विधाओं के कलाकार शामिल हुए.

सशक्त रंगकर्मी कृष्णा जाफरी से उन्होंने शादी की थी. रायबरेली रोड स्थित एल्डिको कालोनी में उन्होंने अपना घर बनाया था. इस घर में मंदिर भी है और नमाज़ की जगह भी. वह रायबरेली के रहने वाले थे. कुछ साल पहले रायबरेली के जिला प्रशासन ने उनके जन्मदिन पर एक ख़ास कार्यक्रम आयोजित किया था. उस कार्यक्रम में उनके साथ जाना हुआ था.

विलायत जाफरी के साथ बहुत सी यादें जुड़ी हैं. उनका व्यवहार बिलकुल अभिभावक सरीखा था. वह अकेले ऐसे बुज़ुर्ग थे जिनसे किसी भी मसले पर राय ली जा सकती थी. फोन पर भी वह आसानी से उपलब्ध हो जाते थे. कोई राय लेना हो तो उनके घर का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता था.

वह शुगर के पेशेंट थे. बहुत ज्यादा देर तक भूखे नहीं रह सकते थे. शुगर की हालत यह थी कि उन्हें इन्सुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ता था. रंगकर्म से जुड़े थे, लिखने-पढ़ने वाले थे, इस वजह से बीमारी को खुद पर हावी नहीं होने देते थे. कोरोना ने उनके दरवाज़े पर दस्तक दी तो उन्हें मुम्बई के हीरानंदानी अस्पताल तक पहुंचा दिया. डाक्टरों की बात मानें तो उन्होंने कोरोना को तो हरा दिया था लेकिन इसी बीच फंगल इन्फेक्शन हो गया जिसने आज एक शानदार इंसान को छीन लिया.

अक्सर याद आती है वह रात जब रायबरेली से लौटकर लखनऊ पहुंचे तो 12 बजे से ज्यादा का वक्त हो चुका था. वह बोले कि इतनी रात में अकेले हुसैनाबाद तक जाओगे? ऐसा करो बाइक यहीं छोड़ दो और मेरी गाड़ी से चले जाओ ड्राइवर छोड़ देगा. बाइक दिन में ले जाना. जब मैंने उन्हें बताया कि दफ्तर से रोजाना ढाई-तीन बजे रात को लौटता हूँ तो फ़िक्र की लकीरें उनके माथे पर नज़र आयीं. बोले रुको, अपनी दो किताबें लेकर आये, उस पर मेरा नाम लिखकर अपने हस्ताक्षर किये. घर पहुंचकर फोन करने की ताकीद की.

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वह आज नहीं हैं. रायबरेली रोड से अब गुज़रना होगा तो बहुत सी यादें दूर तक साथ चली जायेंगी. उन्होंने लाइट एंड साउंड शो के ज़रिये जो माहौल कला की दुनिया को दिया है वह नायाब तोहफा है. जब भी कोई नया कलाकार इस विधा के ज़रिये किसी कहानी को जिंदा करेगा तो विलायत जाफरी बहुत याद आयेंगे.

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