Friday - 5 January 2024 - 5:56 PM

शिल्प एवं कला के संरक्षण से आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ता मध्यप्रदेश

जुबिली न्यूज़ डेस्क

आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश’ की आत्मा ‘वोकल फार लोकल’ में निहित है। आत्मा की इस आवाज पर ही स्थानीय शिल्प कला, संस्कृति में प्रदेश की पुरा-सम्पदा और हुनर को शामिल कर प्रदेश के आर्थिक विकास की नींव को मजबूत बनाने का काम किया जा रहा है। स्थानीय संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल हुनरमंद हाथों से कराकर उन्हें बाजार मुहैया कराना ही ‘वोकल फॉर लोकल’ है।

प्रदेश की परम्परागत शिल्प कला को उसी अंचल की पहचान बनाने और स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा ‘एक जिला – एक उत्पाद’ जैसी अभिनव पहल की गई है। इस पहल के अंतर्गत प्रदेश में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड और हस्तशिल्प विकास निगम स्थानीय शिल्प एवं कला का संरक्षण-संवर्धन का काम कर रहे हैं।

कुटीर और ग्रामोद्योग ग्रामीण अंचल में रोजगार के अवसरों के सृजन का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। प्रदेश सरकार परम्परागत ग्रामोद्योग के संरक्षण, संवर्धन एवं समग्र विकास के माध्यम से रोजगार के अवसर बढ़ाने हेतु निरंतर प्रयासरत है।

राज्य सरकार उत्पादों की गुणवत्ता का विकास, उत्पादों को बाजारोन्मुखी बनाना, कारीगरों को कौशल विकास, उन्नत तकनीकी का प्रशिक्षण, आधुनिकता उपकरणों का प्रदाय तथा उत्पादों की विणपन सहायता उपलब्ध करा रही है।

मेलों-प्रदर्शनियों के माध्यम से भी शिल्पियों को मार्केटिंग प्लेटफार्म उपलब्ध कराया जा रहा है। पत्थर शिल्प, जरी, बेलमेटल, पेंटिंग और वस्त्र छपाई के शिल्पियों को उत्पादों/गुणवत्ता एवं मानकीकरण के लिये क्राफ्ट मार्क प्राप्त करने में सहायता की गई है। बुदनी में शिल्पियों को सुगमता से कच्चा माल सुलभ कराने के लिए खराद शिल्प का रॉ मटेरियल डिपो स्थापित किया जा रहा है।

मध्यप्रदेश में हाथकरघा वस्त्र बुनाई की एक समृद्ध परम्परा है। प्रदेश की चंदेरी एवं महेश्वरी साड़ियाँ एवं वारासिवनी (बालाघाट), सौंसर (छिन्दवाड़ा), पढ़ाना-सारंगपुर (राजगढ़) के हाथकरघा वस्त्र अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। वस्त्रों की छपाई में बाग की ब्लाक-प्रिंट तथा भैरोगढ़ की बटिक-प्रिंट तारापुर के नांदना प्रिंट आदि प्रमुख है।

पिछले वर्षों में व्यवसायिक वस्त्र उत्पादन प्रमुख रूप से चंदेरी, महेश्वर, इन्दौर, उज्जैन, सीहोर, वारासिवनी, सौंसर में किया जाता था तथा सीहोर, इन्दौर, ग्वालियर, मंदसौर, सारंगपुर, सौंसर आदि में शासकीय उत्पादन किया जाता था। अब रीवा, सागर, निवाड़ी, मण्डला, शहडोल में भी हस्तशिल्प निगम की हाथकरघा गतिविधियॉ आरंभ कराई गई हैं।

हाथकरघा वस्त्र उत्पादन के अंतर्गत शासकीय वस्त्र उत्पादन एवं कॉमर्शियल हाथकरघा में 8 करोड़ 14 लाख रूपये का वस्त्र उत्पादन किया गया। रूपये 8 करोड़ 65 लाख का शासकीय वस्त्र, शासकीय विभागों को प्रदाय किया गया।

इस कार्य में 1165 करघे संचालित रहे। योजना में 2 लाख 83 हजार मानव दिवस का रोजगार सृजन किया गया। राज्य सरकार का प्रयास है कि इस वर्ष 200 लाख रूपये के वस्त्रों का उत्पादन कर शासकीय विभागों को विक्रय किया जाए।

बाजार मुहैया कराने की पहल

राज्य सरकार द्वारा इस वित्त वर्ष में दिसम्बर 2020 तक 09 प्रदर्शनी लगाई गई। हस्तशिल्प विकास निगम द्वारा नागपुर (महाराष्ट्र) में मृगनयनी एम्पोरियम जनवरी में आरंभ किया गया। प्रदेश के 04 जिलों – बैतूल, होशंगाबाद, मण्डला, महेश्वर, सागर में स्थानीय शिल्पियों को मार्केटिंग प्लेटफार्म उपलब्ध कराने के लिए मृगनयनी के सेल्स काउंटर खोले गये हैं।

इससे इन स्थानों के निवासियों को प्रदेश के हस्तशिल्प – हाथकरघा एक ही जगह पर उपलब्ध हो रहे हैं। प्रदेश के बाहर हस्तशिल्प विकास निगम का एकता मॉल, केवड़िया (गुजरात), रायपुर (छत्तीसगढ़) मुम्बई वाशी (महाराष्ट्र) तथा लेपाक्षी हैदराबाद (तेलंगाना) में एम्पोरियम और विक्रय काउंटर आरंभ हो चुके हैं।

अमेजन और फ्लिपकार्ट पर शिल्पों का ऑनलाइन विक्रय

अमेजन एवं फ्लिपकार्ट के माध्यम से प्रदेश के शिल्पियों के उत्पादों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विक्रय की प्रक्रिया आरंभ की गई है।

मध्यप्रदेश के झूलों की चीन में माँग

प्रदेश के शिल्पियों के लिए यह सुखद खबर है कि प्रदेश के जूट के झूले चीन में बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं। पिछले साल करीब 12 लाख रूपये के जूट झूले चीन निर्यात किये गये थे। इस साल पुन: लगभग सवा 12 लाख रूपये कीमत के जूट झूले निर्यात किये जाना है। एक अनुमान के अनुसार इस वर्ष हस्तशिल्प विकास निगम कम से कम 50 लाख के जूट उत्पादों का निर्यात करेगा।

माँग अनुसार तैयार किये जा रहे हैं डिजाइन

मध्यप्रदेश हस्तशिल्प विकास निगम द्वारा नवीन इन्वेन्टरी साफ्टवेयर विकसित कर ग्राहकों की रूचि एवं शिल्पियों के डिजाइनों के मध्य समन्वय की पहल भी की गई है। उज्जैन तथा महेश्वर में डिजाईन स्टूडियो की स्थापना भी हुई है।

इन केन्द्रों में अत्याधुनिक उपकरण और उन्नत सॉफ्टवेयर के कम्प्यूटर स्थापित किये जायेंगे, जिससे शिल्पी और बुनकर अपने उत्पादनों को ई-मार्केटिंग प्लेटफार्म पर अपलोड कर उनका ई-विक्रय कर सकें।

भारत सरकार के सहयोग से निगम के अन्य 4 कलस्टर्स में भी डिजाईन स्टूडियो की स्थापना की जा रही है। आशा है कि इन समन्वित प्रयासों से स्थानीय शिल्प और शिल्पकार को राष्ट्रीय और अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सकेगी।

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