Sunday - 7 January 2024 - 1:04 AM

हिंदुत्व की राजनीति से बंग्लादेश को फायदा, खत्म हो गया कानपुर का चमड़ा उद्योग

रश्मि शर्मा

शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन के कानपुर पहुंचने पर होने वाली उद्घोषणा बताती है कि आप पूरब के मैनचेस्टर में हैं। लेकिन शायद जल्दी ही य़ह कुछ इस तरह की होगी कि गुटखे के शहर कानपुर में आपका स्वागत है।

पहले कपड़ा और होजरी के बाद अब चमड़े का कारोबार कानपुर से सिमट चुका है। लोकसभा चुनावों के ठीक पहले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कानपुर के मशहूर चमड़ा उद्योग को अंतिम श्रद्धांजलि दे दी है। कभी हजारों करोड़ का कानपुर का चमड़ा कारोबार अब बंगलादेश के हाथों में पहुंच गया है।

योगी सरकार ने कानपुर की टैनरियों को पूरी तरह से बंद करते हुए उनकी बिजली तक कटवाने के आदेश जारी कर दिए हैं। चमड़ा उद्योग पर आए इस संकट से लाखों लोगों के घरों का चूल्हा जलना मुश्किल हो गया है।

प्रदेश सरकार के ताजा आदेश के मुताबिक कुंभ के दौरान गंगा को स्वच्छ निर्मल बनाए रखने के लिए बंद की गयीं कानपुर की टैनरियों की बिजली भी काट दी जाएगी। उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इस आदेश के मुताबिक गंगा किनारे जाजमऊ में कोई टैनरी न चले इसे सुनिश्चित करना है। जिलाधिकारी कानपुर सहित केस्को को इस बाबत आदेश दिए जा चुके हैं।

कुंभ के लिए बंद की थी टैनरी, अब हमेशा के लिए ताला

कुंभ को लेकर बीते साल 18 नवंबर को कानपुर में गंगा किनारे जाजमऊ की सभी टैनरियों को बंद करने का आदेश जारी हुआ था। मेले के 4 मार्च को खत्म हो जाने के बाद भी सरकार ने इनको खोलने की अनुमति नहीं दी है। टैनरियों का बंदी से जहां करोड़ों रुपये का कारोबार प्रभावित हुआ है वहीं इनमें काम करने वाले करीब तीन लाख लोग बेकार हो गए हैं। बीते करीब पांच हीने से कानपुर में गंगा किनारे जाजमऊ की 256 टैनरियां बंद हैं। कानपुर में कुल 402 टैनरियां पंजीकृत हैं जिनमें से 260 में चमड़ा शोधन का काम होता है।

अकेले कानपुर से है 20000 करोड़ का कारोबार, अब बंगलादेश की चांदी

कानपुर के टैनरी मालिक नैय्यर जमाल के मुताबिक पांच महीने की बंदी के चलते कानपुर के चमड़ा कारोबारियों का हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। कानपुर और आसपास से एक अनुमान के मुताबिक 20000 करोड़ रुपये का चमड़े का सामान तैयार होता है। कानपुर में कुल 402 टैनरियां पंजीकृत हैं जिनमें से 260 में चमड़ा शोधन का काम होता है। त्याहोरी सीजन में आने वाले आर्डर इस बार बंदी के चलते बंगाल और बंगलादेश चले गए।

कानपुर के टैनरी मालिकों का कहना है कि बंगलादेश में न केवल मजदूरी सस्ती है बल्कि वहां प्रशासनिक दिक्कतें न के बराबर है साथ ही वहां की सरकार से प्रोत्साहन भी काफी है। कई चमड़ा कारोबारी तो अब यूरोप, अमेरिका से मिलने वाले आर्डर का माल वहीं तैयार करवाते हैं। उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल की सरकार ने हाल फिलहाल में टैनरियों को काफी सुविधा देकर उन्हें बसने और काम करने में मदद की है।

प्रदूषण न रोकने के लिए टैनरी मालिकों ने जलनिगम को दोषी बताया

टैनरी मालिकों का कहना है कि सरकार को लगता है कि गंगा में प्रदूषण के वही जिम्मेदार हैं जबकि नदी में कानपुर शहर के कई खुले नालों का सीवर सीधे गिराया जा रहा है। मुख्यमंत्री से धंधा फिर से खोलने की मांग करते हुए टैनरी मालिकों ने कहा है कि उनके कारखाने का गंदा पानी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में जाता है जिसको चलाने का जिम्मा जल निगम का है। एसटीपी चलाने के लिए सभी टैनरी मालिक निर्धारित शुल्क जमा करते हैं। उनका कहना है कि गंगा प्रदूषण के मामले में मुख्यमंत्री को अफसरों ने गुमराह किया है। कानपुर शहर का सीवर का पानी व अन्य उद्योगों से निकलने वाला पानी जिम्मेदार है न कि चमड़ा उद्योग जहां से सीधा पानी नदी में जाता ही नही है।

नयी जगह बसने, जमने और काम शुरु करने में दिक्कत

उत्तर प्रदेश सरकार जाजमऊ की टैनरियों को नयी जगह ले जाना चाहती है जबकि कारोबारी इसके लिए तैयार नही हैं। उनका कहना है कि नयी जगह खरीदने, मशीन बैठाने और काम शुरु करने के लिए उनके पास पूंजी भी नही है। टैनरी मालिकों का कहना है कि अब नए सिरे से काम शुरु करने में खासा खर्च आएगा।

टैनरी मालिकों का कहना है कि अब नए सिरे से काम शुरु करने में भी खासा खर्च आएगा। टैनरियों में इस्तेमाल होने वाले वुडेन ड्रम चार महीनों की बंदी में खराब हो गए हैं। घरेलू वुडेन ड्रम 6-7 लाख में जबकि विदेशों से मंगाने में 25 लाख रुपये तक का खर्च आता है। इसके अलावा कई टैनरियों की मोटर वगैरा भी बदलनी पड़ेंगी।

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