Saturday - 6 January 2024 - 11:09 PM

डंके की चोट पर : ज़िन्दगी के रंगमंच से विदा नहीं होंगी लता मंगेशकर

शबाहत हुसैन विजेता

27 जनवरी 1963 को नयी दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में भारत-चीन युद्ध में वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिकों की याद में स्मृति सभा का आयोजन किया गया था. भारत के राष्ट्रपति डॉ. राधकृष्ण और प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी इस सभा में मौजूद थे. यह सैनिकों की शोकसभा थी, लेकिन यहाँ पर संगीत पैदा करने वाले तमाम साज़ भी मौजूद थे. स्टेज पर तमाम माइक लगे हुए थे. राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री की मौजूदगी में एक नवयुवती सधे हुए क़दमों से स्टेज की तरफ बढ़ी. विभिन्न वाद्ययंत्रों पर कलाकार पहले से सेटिंग में लगे थे. युवती को इशारा हुआ और उनके होठों ने गाना शुरू किया,

“ ए मेरे वतन के लोगों तुम खूब लगा लो नारा,
ये शुभ दिन है हम सब का लहरा लो तिरंगा प्यारा,
पर मत भूलो सीमा पर वीरों ने हैं प्राण गँवाए,
कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आये.

ए मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पाने,
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी.”

शानदार आवाज़ और शानदार देशभक्ति गीत से माहौल शोकाकुल हो गया. प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू फूट-फूटकर रोने लगे. भारत-चीन युद्ध में जान गंवाने वाले भारतीय वीरों की याद में हो रही इस शोक सभा में अपने वीर सैनिकों की याद में मजलिस जैसा माहौल बन गया. तमाम लोगों की हिचकियाँ बंध गईं.

“जब घायल हुआ हिमालय खतरे में पड़ी आज़ादी, जब तक थी सांस लड़े वो फिर अपनी लाश बिछा दी, संगीन पे धर कर माथा, सो गए अमर बलिदानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी.” कवि प्रदीप ने अपने इस गीत में जिस शिद्दत से हमारे वीर सेनानियों की तस्वीर उकेरी थी उसे जिस 33 साल की नवयुवती ने अपनी आवाज़ से इस अंदाज़ में सजाया कि सुनने वालों को युद्ध के मैदान में भेज दिया वह लता मंगेशकर थीं.

सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने 92 साल के सफ़र में हज़ारों गानों को अपने होठों से छुआ और लोगों के दिलों में उतार दिया लेकिन “ए मेरे वतन के लोगों…” को इस सलीके से छुआ कि 59 साल गुज़र गए मगर यह जब-जब सुना गया लोगों की आँखें भीग गईं. अभी दो दशक पहले जब करगिल की जंग के दौरान शहीदों के ताबूत तमाम शहरों में में पहुँच रहे थे और शहीदों की याद में शोक सभाएं हो रही थीं तब लता जी का यही गीत पूरे देश में बज रहा था. इस गीत को सुनने वाले ठीक उसी तरह से रो रहे थे जैसे तब जवाहर लाल नेहरू रो रहे थे.

लता मंगेशकर गायिका थीं. गायन उनका पेशा था. उनके सभी भाई-बहन इसी पेशे से जुड़े थे. फ़िल्मी दुनिया उनके बगैर अधूरी थी. उनकी आवाज़ के बगैर किसी भी फिल्म के कोई मायने नहीं थे. वक्त बदला तो फ़िल्मी दुनिया को अनगिनत गाने वाले मिल गए. नये-नये नाम, नये-नये चेहरे और नयी-नयी आवाजें मगर लता मंगेशकर एक ऐसा माइल स्टोन बन गईं जो सदियों अपनी जगह पर कायम रहने वाला है.

लता मंगेशकर का जो विराट स्वरूप दुनिया के सामने है वास्तव में वही विराट स्वरूप ही उनकी सच्चाई थी. वह सिर्फ 13 साल की थीं जब उनके सर से बाप का साया हट गया था. भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं, लिहाज़ा रोने का भी वक्त नहीं था. बचपन में ही परिवार को पालने की ज़िम्मेदारी मिल गई थी.

बहुत कम उम्र में गाना शौक से पेशे में बदल गया. अपने इसी पेशे के ज़रिये अपने से छोटों की परवरिश शुरू की. वक्त के साथ-साथ काम का बोझ बढ़ता गया, जिम्मेदारियों से निजात मिलने तक उम्र उस पड़ाव में पहुँच चुकी थी जब शादी के बजाय काम पर ध्यान देना ही ज्यादा ज़रूरी हो गया.

फ़िल्मी दुनिया में उनके रिश्ते प्रोफेशनल ही रहे. काम के सिवाय किसी से मतलब नहीं रहा क्योंकि इसके लिए वक्त ही नहीं था. मीना कुमारी और देवानंद से ज़रूर उनके काफी करीबी रिश्ते रहे. उनके पास ज़िन्दगी में कितना वक्त अपने लिए रहा होगा इसे समझना हो तो उनके काम पर नज़र डालनी होगी. उन्होंने करीब 30 हज़ार गाने गाये. इन गानों के एवज़ में पैसा तो आया ही लेकिन साथ में जो प्यार, जो इज्जत और जो नाम उनके खाते में आया उसकी तो कोई कीमत ही नहीं. फिल्म फेयर, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और भारत रत्न जैसे सम्मान भी उन्हें मिले. वह देश के उन चुनिन्दा लोगों में शामिल हैं जिन्हें सिर्फ उँगलियों पर ही गिना जा सकता है.

मुम्बई में हाजी अली जाते वक्त जिस फ्लाईओवर से गुज़रना होता है उसी रास्ते पर दाहिने हाथ पर वह अपार्टमेन्ट है जिसमें लता मंगेशकर रहती थीं. जब यह फ्लाईओवर बन रहा था तब लता मंगेशकर ने इसका विरोध किया था. मगर उनकी आवाज़ नहीं सुनी गई.

दीनानाथ मंगेशकर की इस बेटी ने अपनी आंख खोलने के साथ ही पिता को रंगमंच पर गाते सुना था. गायन और रंगमंच से लता मंगेशकर का पैदा होने के साथ ही साक्षात्कार हुआ. समझदारी आने की उम्र में पहुँचीं तो पिता ने आँख मूँद ली और ज़िन्दगी का रंगमंच सजा दिखाई दिया. ज़िन्दगी के रंगमंच पर बिखरते परिवार को एकजुट करने की चुनौती थी. लता जी ने इस चुनौती को इस तरह से स्वीकार कि ज़िन्दगी के कैनवस पर इज्जत और प्यार के ऐसे फूल खिलते चले गए कि हर तरफ उजाला होता चला गया.

92 साल की उम्र में जब लता जी ने आँखें मूंदी हैं तब करोड़ों लोगों को यह ग़लतफ़हमी हो गई है कि लता मंगेशकर मर गई हैं. ज़िन्दगी के रंगमंच पर यह ग़लतफ़हमी कितनी देर कायम रह पायेगी. जब-जब देश की सीमा की हिफाजत में वीरों के खून की ज़रूरत पड़ेगी तब-तब लता जी की आवाज़ इस देश का सहारा बनेगी. इस आवाज़ के सहारे ही हम अपने वीरों को याद करते रहेंगे और सलाम करते रहेंगे. हमारा तिरंगा जब तक मुल्क की आन-बान-शान बना रहेगा तब तक लता जी हमारे साथ ही रहेंगी.

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : 74 बरसों में कितना कुछ बदल गया बापू

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : पॉलिटीशियन और लीडर का फर्क जानिये तब दीजिये वोट

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : हमें याद नहीं कुछ सब भूल गए

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : … क्योंकि चाणक्य को पता था शिखा का सम्मान

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com