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डंके की चोट पर : केशव बाबू धर्म का मंतर तभी काम करता है जब पेट भरा हो

शबाहत हुसैन विजेता

पूरे साल किताबों से मुंह चुराकर भागने वाला बच्चा जब इग्जाम सर पर आ जाने के बाद एक ही रात में पूरा कोर्स घोलकर पी लेने की कोशिश करता है तो उसके हाथ कुछ नहीं लगता है. जो बच्चा वक्त की पाबंदी के साथ लगातार पढ़ाई करता है वही मेरिट में आता है. वही अपना मुकाम हासिल करता है.

सियासत बड़े ओहदों पर बिठाती है. नाम और शोहरत मुहैया कराती है. सियासत करने वाले के पास इग्जाम पास करने की हैसियत हो न हो लेकिन बड़े-बड़े अफसरों को उसके दरबार में झुककर खड़ा करवाती है लेकिन सियासत भी हर पांचवें साल इग्जाम लेती है. सियासत का जो भी स्टूडेंट पांच साल लगातार तैयारी नहीं करता है और इग्जाम सर पर आ जाने पर ऊल-जलूल बकने लगता है उसे मेरिट छोड़िये इग्जामिनर क्लास रूम से ही उठाकर फेंक देता है.

आपको भी पांच साल मिले थे केशव बाबू. क्या किया पांच साल में. कुछ काम किया होता तो अपने काम की कापी लेकर आते इग्जाम देने. पांच साल तक हिसाब बराबर करने में लगे रहे. बुल्डोज़र कहाँ गया कहाँ नहीं गया इसका हिसाब रखते रहे. पिछली बार बड़ी मेहनत की थी लेकिन कुर्सी हाथ आते-आते कोई और ले उड़ा. उस मलाल को इस बार मिटा लेने की जुगत में लगे रहे. अब जब इग्जाम बिलकुल सर पर आ गया तो बेसिर पैर के जवाब देने लगे. आउट ऑफ़ कोर्स बोलने लगे. मथुरा की तैयारी है जैसे बयान देने लगे.

केशव बाबू सत्ता की पतवार मिल जाए तो क़ानून आपकी जागीर नहीं बन जाते. केन्द्र और राज्य की सरकारों ने उस क़ानून पर दस्तखत किये हुए हैं जिसमें यह लिखा है कि 1947 में पूरे देश के धर्मस्थलों की जो शक्ल थी उसे बदला नहीं जायेगा. सिर्फ अयोध्या के मामले को उससे अलग रखा गया था क्योंकि मामला कोर्ट में था. कोर्ट से किस तरह से अयोध्या को हासिल किया है यह पूरी दुनिया जानती है.

अब जब अयोध्या में मन्दिर बन रहा है तो दूसरी मस्जिदों की तरफ इसलिए उछलकूद शुरू हुई है क्योंकि पांच साल हिन्दू-मुसलमान के अलावा कुछ किया ही नहीं है. आम आदमी विकल्प की तलाश करने लगा है. प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव के पीछे सर ही सर नज़र आने लगे हैं. सत्ता पाँव के नीचे से खिसकती नज़र आने लगी है क्योंकि धर्म का मंतर तभी काम करता है जब पेट भरा होता है.

साल भर से किसान सड़कों पर बैठा है. बार-बार परीक्षाओं के पेपर लीक हो रहे हैं. नौकरियां मिल तो रहीं नहीं उलटे जिनके पास हैं वह जाती चली जा रही हैं. एक महीने में गड्ढा मुक्त प्रदेश बनाने का दावा करने वाली सरकार के हाइवे भी गड्ढा मुक्त नहीं रह गए हैं. अपराधियों पर कार्रवाई भी धर्म और पार्टी देखकर हो रही है. बुल्डोज़र भी उधर जाता है जो किसी दूसरी पार्टी का होता है. अपराधी भी वही माना जाता है जो दूसरी पार्टी का होता है.

पांच साल में किये गए सिर्फ पांच काम भी पब्लिक सोचती है तो उसे सिर्फ महंगा पेट्रोल-डीज़ल, मंत्रियों और नेताओं की बदजुबानी, महंगा सरसों का तेल, महंगी सब्जियां ही नज़र आती हैं. कुछ लोगों को कोटे की दुकानों से मुफ्त राशन बांटकर इलेक्शन में जीत खरीद लेने की सोच बहुत अच्छी सोच नहीं होती है.

केशव बाबू अपने आकाओं के बयान तो पढ़ लेते. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के बयान ही पढ़ लेते. मुख्यमंत्री हर महीने तीन लाख नौकरियां बाँट रहे हैं. अब तक तीन सौ करोड़ लोगों को रोज़गार दे चुके हैं. प्रधानमंत्री 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में खाना खिला रहे हैं. 100 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन लगवा चुके हैं. यह बयान लोग कैसे हज़म कर पा रहे हैं इसका असर इलेक्शन में दिखेगा आपको. झूठ के पंख नहीं होते हैं जो बादलों के ऊपर उड़ा ले जाओ.

100 करोड़ को वैक्सीन लग गई. जबकि 18 साल के नीचे वालों को लगना बाकी है. 18 साल से नीचे वालों की तादाद है करीब 45 करोड़. मतलब देश की जनसँख्या 145 करोड़ है. मतलब 18 से कम वाले शत-प्रतिशत लोगों को लग गई वैक्सीन. झूठ बोलने की कौन सी मशीन इस्तेमाल करती है सरकार.

अस्पतालों में बेड नहीं हैं. आपदा के समय इलाज कर पाने की सुविधाएँ नहीं हैं. स्कूलों में पर्याप्त टीचर नहीं हैं. स्कूलों की इमारतें जर्जर हैं. सड़कें चलने के लायक नहीं हैं. सरकारी गाड़ियाँ प्रदूषण छोड़ रही हैओं लेकिन कोई ध्यान नहीं है. चालान के नाम पर पुलिस लूट में मस्त है. जनप्रतिनिधियों की इलेक्शन के बाद शक्ल ही नहीं दिखती है. पर्यटन का केन्द्र हुसैनाबाद घंटाघर पर डेढ़ साल से पीएसी का धरना चल रहा है कोई पूछने वाला नहीं है.

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काम करने का हौंसला हो तो काम की कमी नहीं है. जिस काम के लिए वोट माँगा था उसे पूरा कर दिया होता तो हिन्दू-मुसलमान करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. पांच साल लगातार तैयारी की होती तो मथुरा का राग अलापने की ज़रूरत नहीं पड़ती. केशव बाबू हर बार अयोध्या जैसा फैसला ही आएगा यह सोचना समझदारी नहीं है. हर जज राज्यसभा सीट के लिए लालायित नहीं होता है.

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