Thursday - 11 January 2024 - 5:31 PM

डंके की चोट पर : जिन्दा हूँ हक़ ले सकता हूँ

शबाहत हुसैन विजेता

सरकार लोकार्पण और शिलान्यास में लगी है. नारों और भाषणों में विकास बहुत तेज़ी से दौड़ रहा है. हर नागरिक की आमदनी दुगनी हो गई है. सरकार तो पेट्रोल-डीज़ल के दाम भी घटाना चाहती है मगर यूपीए सरकार की गलत नीतियों की वजह से दाम घट नहीं पा रहे हैं.

व्हाट्सएप यूनीवर्सिटी के ज़रिये इंसानों के बीच मज़हब की ऐसी दीवार उठा दी गई है जो नफरत-नफरत और सिर्फ नफरत बाकी बची है. नौकरियां खत्म हो रही हैं मगर स्कूल की फीस टाइम से जमा करनी है. आमदनी बाकी नहीं बची मगर पेट्रोल-डीज़ल और गैस के दाम आसमान छूने लगे हैं.

सियासत में झूठ का ऐसा कारोबार शुरू हुआ है जिसमें सत्ता के सिवाय कुछ भी सोचने की न किसी के पास फुर्सत है और न ज़रूरत. आम आदमी इलाज के अभाव में मर जाए या फिर भूख से तड़पकर मर जाए किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. हद तो यह है कि जानकारों ने जो वक्त कोरोना की तीसरी लहर के लिए बताया है उसमें स्कूल खोलने का आदेश दिया गया है.

पहले बच्चो को स्कूल भेजना ज़रूरी नहीं था लेकिन अब ज़रूरी कर दिया गया है. ज़रूरी इसलिए किया गया है क्योंकि बच्चो को कोरोना नहीं होगा तो उन अस्पतालों की टेस्टिंग कैसे होगी जो सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च करके बच्चो के अस्पताल तैयार करवाए हैं.

खुदा न करे किसी को अपने बच्चे खोना पड़ें लेकिन तैयारी तो यही है कि बच्चो की सिम्पैथी को वोटों में बदल दिया जाए. अपने कलेजे के टुकड़े खोने वालों के साथ कुछ लाख रुपयों का सौदा कर लिया जाए.

यह सरकार की नाकामी है कि इंसान-इंसान के बीच नफरत की दीवार खड़ी हो गई. सियासत को लगता है कि इसी दीवार पर चढ़कर वह कुर्सी पर बैठ जायेंगे लेकिन हकीकत अभी नज़र ही नहीं आ रही. आम आदमी जब अपने लिए आशा की किरण तलाशने में लगा था उस दौर में उसे प्रियंका गांधी में हालात को बदल देने का जूनून नज़र आया है.

यह सरकार की नाकामी है की बत्तीस साल में तिल-तिल कर मरी कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ी हो गई है. यह सरकार की नाकामी है कि उसे खुद प्रियंका का प्रचार अपने खरीदे हुए चैनलों और अखबारों के ज़रिये कराना पड़ रहा है.

यह सरकार की नाकामी है कि समाजवादी पार्टी को कमज़ोर बनाने के लिए उन्हें कांग्रेस को मुख्य लड़ाई में लाना पड़ा लेकिन नाकाम सरकार यह नहीं जानती थी कि मृतप्राय कांग्रेस थोड़ा सा स्पेस पाकर फिर से जिन्दा हो गई है. लखीमपुर और आगरा जाने के लिए प्रियंका गांधी ने जो जुझारूपन दिखाया उसने कांग्रेस को पहले नम्बर पर ला खड़ा किया और जब प्रियंका गांधी ने लड़कियों के पक्ष में स्कूटी और मोबाइल की घोषणा कर डाली तो सरकार उस पल को कोसने में लग गई जब उसने खुद प्रियंका और कांग्रेस के लिए स्पेस तैयार करवाया था.

व्हाट्सएप यूनीवर्सिटी में आज एक नया सिलेबस जारी किया गया है. प्रियंका गांधी ने लड़कियों के लिए जो वादे किये हैं उसके लिए सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेने को कहा जा रहा है. कहा जा रहा है कि राजनीति के लिए यह बहुत खतरनाक संकेत है. यह वोटों के लिए मतदाताओं को रिश्वत दिए जाने का सीधा-सीधा मामला है.

व्हाट्सएप यूनीवर्सिटी यह नहीं जानती की तीर तो अब कमान से निकल चुका है. नई पीढ़ी की लड़कियों के लिए तो आशा की किरण जगमगा ही गई है. हो सकता है कि प्रियंका गांधी ने वाकई सत्ता के लिए रिश्वत देने का मन बना लिया हो मगर सुप्रीम कोर्ट आखिर संज्ञान ले तो कैसे ले जब उसके सामने पहले से ही 15 लाख रुपये हर खाते में आने के वादे के साथ-साथ पेट्रोल 30 रुपये में बेचने की बात थी. 15 लाख आते तो तो जज साहब के खाते में भी आते. मगर जज साहब को तो एक राज्यसभा सीट से चुप करवा दिया गया.

कांग्रेस ने सियासत में अचानक से जो स्पेस हासिल किया है उसकी वजह सरकार को लेकर लोगों की नाराजगी. लोगों के बीच बढ़ती बेरोजगारी, लोगों के बीच फैलती नफरत और बाक़ी सियासी दलों का हालात को लेकर शुतुरमुर्ग की तरह से अपना सर रेत में छुपाकर सही वक्त का इंतज़ार करते रहना है.

राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि जिन्दा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करती हैं. लोग जब खुद के जिन्दा होने का सबूत देते हैं तो गृहराज्य मंत्री के बिगडैल बेटे को जेल जाना पड़ता है. महंगाई के मामले में खींसे निकालकर तस्वीर खिंचाने वाले नेताओं की नहीं जुझारू नागरिकों की ज़रूरत है. जिस दिन जिन्दा होने का अहसास करवाया उसी दिन दाम कम होने लगेंगे.

प्रियंका का नारा लड़की हूँ लड़ सकती हूँ ने कांग्रेस को आक्सीजन दे दी है. तो फिर आम आदमी क्यों नहीं कह सकता कि जिन्दा हूँ हक़ ले सकता हूँ.

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