Tuesday - 30 July 2024 - 7:23 PM

मालविका हरिओम की ये 2 लाजवाब गज़ले

फिलहाल के दौर में तेजी से अपनी पहचान बना रहीं लखनऊ की शायरा मालविका हरिओम की गज़ल में जिंदगी की जद्दोजहद के साथ साथ मन की भावनाएं भी बखूबी झलकती हैं। जुबिली पोस्ट अपने पाठकों के लिए साहित्यकारों की इस नई पीढ़ी की रचनाएं लगातार प्रस्तुत करता रहा है। इसी कड़ी में है यह प्रस्तुति     

 

हमको उसकी चाहत का रंग बनना था

बस राहों पर हाथ पकड़कर चलना था

दिल से सबने जाने क्या-क्या काम लिए

दिल का काम तो यारों सिर्फ़ धड़कना था

सोने वाले की क़िस्मत सो जाती है

क़िस्मत ना सो जाए तुमको जगना था

बुद्धि से कब कविता बनती है प्यारे

दिल के दरिया में भी डूब-उतरना था

क्यों आहत होते हो जग की बातों से

जग तो वही रहेगा तुम्हें बदलना था

उसको फूल-सी बातें भी चुभ जाती हैं

हमको आख़िर कितना और सँभलना था

अजब मंज़र है मन घबरा रहा है

जिसे देखो वो भागा जा रहा है

हमें भरमा रही है याद उनकी

उन्हें किसका तसव्वुर भा रहा है

कहाँ गुम हो गईं वो तितलियाँ सब

उन्हें ढूँढो कि बचपन जा रहा है

उदासी इस क़दर पहले कहाँ थी

कि हँसने पर भी रोना आ रहा है

है बदक़िस्मत वो आदम ज़ात जिसको

स्वयं का दोगलापन खा रहा है

सफ़े इतिहास के सब कह रहे हैं

हमें कातिब बड़ा उलझा रहा है

यह भी पढ़ें : किसानों के बहाने सत्ता की हकीकत बता रही है देवेन्द्र आर्य की गज़ल

यह भी पढ़ें : ‘यादों’ को नई पहचान देने वाले शायर डॉ. बशीर बद्र की याददाश्त गुम

 

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com