Thursday - 11 January 2024 - 4:57 PM

100 करोड़ से हटेगी काम पर पड़ी धूल

शबाहत हुसैन विजेता

आम आदमी : सुन रहे हैं सरकार आपके मेहमानखाने में दुनिया के सबसे बड़े चौधरी साहब आ रहे हैं, वह भी बीवी-बच्चो और दामाद के साथ।

सरकार : हां, तुमने सही सुना है। बड़े लोगों के घर बड़े लोगों का आना-जाना लगा ही रहता है।

आम आदमी : मगर इस बार वह आपका कामकाज भी देखेंगे।

सरकार : तो देखें ना, कौन माना करता है। हम भी तैयार हैं उन्हें दिखाने के लिए। अपने काम पर पड़ी धूल हटाने के लिए हम 100 करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं।

आम आदमी : 100 करोड़…। बाप रे बाप। सिर्फ काम पर पड़ी धूल हटाने के लिए। कौन से काम हैं बताइये। चौधरी साहब चले जाएंगे तो हम भी देखेंगे, दूसरों को भी दिखाएंगे।

सरकार : हां देखना, ज़रूर देखना। चौधरी साहब ज़िद पकड़ लिये कि तुम्हारा घर देखेंगे। हमने कहा भी कि पूरा मुल्क देखिये। हमने खूब काम किया है। घर-वर में क्या रखा है। वह माने ही नहीं तो क्या करता। तुम तो जानते ही हो कि हम गरीबी से उठे हैं। गरीबों का दर्द बचपन से जवानी तक हर सांस में महसूस किया है। हमारे घर और घर के आसपास अभी भी वही गरीबी इधर-उधर मटकती फिरती है। हम गरीबी से उबरकर सरकार बन गए लेकिन हमने गरीबी से छेड़छाड़ नहीं की। जो जहां है, जैसा है, उसका वहीं पर सम्मान है। उनके हालात बदलकर उनके आत्मसम्मान को हम ठेस नहीं लगाना चाहते। चौधरी साहब आ रहे हैं तो हमने अपने घर के पास एक ऊंची दीवार उठवा दी है, ताकि घर की बात घर ही में रहे और बाहर के लोग दीवार की ऊंचाई, मज़बूती और रंग-रोगन की खूबसूरती पर मोहित होकर अपने घर लौट जाएं।

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आम आदमी : … मगर चौधरी साहब तो ताजमहल भी देखने जाएंगे, वह मुग़लिया सल्तनत का काम है।

सरकार : मुग़लिया सल्तनत ने उसे सिर्फ बनाया था। संजोकर तो हमने रखा। हम दिन-रात उसकी देखरेख न करते होते तो वह भी यमुना नदी की तरह मर रहा होता। अन्दर गन्दगी का अम्बार होता तो बाहर पत्थर टूट-टूटकर गिर रहे होते। चौधरी साहब की खुशी की खातिर हमने मुर्दा यमुना को गंगा जल से फिर ज़िन्दा कर दिया है। ताजमहल के पीछे गन्दगी से पटी यमुना अब गंगा के झिलमिल पानी में इठलाएगी तो ताजमहल की खूबसूरती इसी सरकार के गुण गाती नज़र आएगी।

आम आदमी : यह बात तो है सरकार मगर सुना है कि चौधरी साहब की बेटी बड़ी चकड़ है। वह अपने मुल्क के स्कूलों में घूमना चाहती है।

सरकार : ( मन्द मुस्कान के साथ) तो हम उससे भी ज़्यादा चकड़ हैं। चौधरी साहब की बेटी की जितनी उमर है ना उतने दिन तो हमने सरकार बनाने की जंग लड़ी है। हम उसे दिल्ली का एक स्कूल दिखाने की बात कहकर निकलेंगे और शाम तक छह सरकारी स्कूलों का दौरा कराकर बताएंगे कि हमारे यहां सारे के सारे स्कूल ऐसे ही हैं। बाकी के कल दिखाएंगे। चौधरी साहब की बेटी की आंखें चौंधिया जाएंगी। जलन के मारे वह सातवां स्कूल देखने ही नहीं जाएगी।

आम आदमी : मगर सरकार … वह तो आम आदमी का काम है। आपने उसमें क्या किया।

सरकार: … अबे चुप। आम आदमी सरकार की मदद के बगैर न कुछ कर सकता है न सोच सकता है। हम सरकार हैं। आम आदमी ने जो भी अच्छे काम किये वह हमारी सोच और सलाह का नतीजा है। आम आदमी जो गलतियां करता है वह उसकी अपनी जिहालत होती है।

आम आदमी : सरकार, हमने तो यह भी सुना है कि चौधरी साहब हमारे नये कानून पर भी नुक्ताचीनी करने वाले हैं।

सरकार : चौधरी साहब अगर सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं तो हम भी कोई गुल्ली-डंडा खेलने वाले नहीं हैं। जब हम उन्हें बताएंगे कि नये कानून के जरिये हम किस तरह से कई देशों के निकाले हुए लोगों को गले लगाकर अपने मुल्क में बसाने की तैयारी कर रहे हैं तो चौधरी साहब पानी-पानी हो जाएंगे। हमें पता है कि चौधरी साहब कौन-कौन से सवाल लेकर आ रहे हैं। हमारे पास उनके हर सवाल का जवाब तैयार है। हम ऐसे प्रजेंटेशन देंगे कि चौधरी साहब फ्लैट हो जाएंगे।

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आम आदमी : मगर सरकार नये कानून के खिलाफ औरतें जो शोर मचा रही हैं। उससे मिलने वाली बदनामी को कैसे रोकेंगे।

सरकार : ( ठहाका लगाते हुए ) बदनामी…। तुम उसे बदनामी कहते हो। तुम इसीलिए तो आम आदमी हो। जाओ चौधरी साहब आएं तो मेरे घर के सामने खड़े होकर तुम भी खूब चिल्लाना। मैं चौधरी साहब को बताऊंगा कि यह हमारे मुल्क की डेमोक्रेसी की खूबसूरती है। यहां का आम आदमी सरकार का असली मालिक है। वह जब चाहे जहां चाहे सरकार के खिलाफ गुस्से में चिल्ला सकता है। गाड़ियां और इमारतें तोड़ सकता है, काले झंडे दिखा सकता है लेकिन सरकार अपने मालिक की इज़्ज़त में कमी नहीं करती। आम आदमी कितना भी नुकसान कर दे मगर सरकार कभी उस गुस्से की वजह नहीं पूछती।

आम आदमी : अच्छा अगर चौधरी साहब ने देश विरोधी नारों के बारे में सवाल पूछ लिया तो…।

सरकार : तुम बुड़बक हो, तुम कुछ नहीं समझते हो। देश विरोधी नारे वास्तव में अभिव्यक्ति की आज़ादी है। डेमोक्रेसी ने सबको बोलने का हक़ दिया है हम सबकी इज़्ज़त करते हैं। किसी-किसी के खिलाफ हमें गुस्सा करना पड़ता है ताकि लोगों को अहसास हो सके कि सरकार जाग रही है, सरकार सब देख रही है, सरकार एक्शन भी ले सकती है। बाकी नारों-वारों से कुछ बनता बिगड़ता नहीं है।

आम आदमी : सरकार सुना है कि वह पड़ोसी मुल्क के बारे में भी आपसे बात करने वाले हैं।

सरकार : चौधरी साहब घर वालों के साथ छुट्टी मनाने आ रहे हैं। वह यहां घूमेंगे , यहां के खाने चखेंगे, यहां की खूबसूरत इमारतें देखेंगे। तोहफे जमा करेंगे। यहां आराम करेंगे। कामकाज से दूर रहने के लिए ही वह यहां आ रहे हैं, तो फिर कामकाज की बात थोड़े ही करेंगे। जाओ तुम भी आराम करो। ज़्यादा दिमाग मत लगाओ। चौधरी साहब को घूमना है और हमें उन्हें घुमाना है। इससे ज़्यादा कोई एजेंडा नहीं है समझे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

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