Wednesday - 10 January 2024 - 6:58 AM

कोरोना काल : पर्यावरण संरक्षण के लिए हो रहा वैश्विक ऑनलाइन विरोध-प्रदर्शन

न्यूज डेस्क

कोरोना वायरस ने सब कुछ बदल दिया है। किसी ने कल्पना नहीं की थी कि एक दिन ऐसा भी आयेगा। यह कोरोना काल है, तभी तो सड़कों पर हजारों की संख्या में जुटकर होने वाले प्रदर्शन अब ऑनलाइन हो रहे हैं। इंटरनेट का सहारा लेकर अपनी बात पहुंचायी जा रही है। पर्यावरण संरक्षण को लेकर जर्मनी में सोशल मीडिया पर ऑनलाइन आंदोलन हो रहा है।

कोरोना वायरस के कारण दुनिया के ज्यादातर देशों में तालाबंदी है। बहुत सारा काम घरों से हो रहा है। इस दौरान इंटरनेट की ताकत बहुत मजबूत रूप से सामने आई है। इसके माध्यम से लोग जिदंगी को बेपटरी होने से बचा रहे हैं। अपने मकसद को पूरा करने के लिए इसका सहारा ले रहे हैं। जर्मनी में ऐसा ही कुछ हुआ है। पर्यावरण संरक्षण के लिए यहां ऑनलाइन विरोध प्रदर्शन हो रहा है।

वो सड़कों पर नहीं जा सकते थे तो उन्होंने ऑनलाइन अपना विरोध-प्रदर्शन दर्ज कराने का सोचा। जर्मनी में लॉकडाउन के बाद फ्राइडे फॉर फ्यूचर के एक्टिविस्टों ने अपना विरोध ऑनलाइन पर ले जाने की बात कही थी। शुक्रवार को जर्मनी सहित दुनिया के कई देशों में ऐसा पहला विरोध प्रदर्शन हुआ। इसे पहला वैश्विक ऑनलाइन विरोध प्रदर्शन कहा जा रहा है।

ऑनलाइन विरोध प्रदर्शन के लिए उन्होंने बहुत कुछ नयापन दिखाया है। कोरोना के संक्रमण को देखते हुए उनका प्रदर्शन सड़कों पर नहीं हो सकता था, इसलिए उन लोगों ने इंटरनेट का सहारा लिया। वे पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को कोरोना महामारी की वजह से पैदा समस्याओं के नीचे दबने नहीं देना चाहते।

पिछले दिनों बहुत से किशोरों ने अपनी तख्तियों पर लिखा है, “हर संकट से लड़ो।” जर्मन एक्टिविस्ट लुइजा नॉएबावर ने शुक्रवार की हड़ताल का आह्वान करते हुए ट्वीट किया, “हम दिखाएंगे कि न्यायोचित पर्यावरण सुरक्षा को कितना बड़ा सामाजिक समर्थन है।”

सोशल मीडिया पर पहली ऑनलाइन हड़ताल हो रही है। यूट्यूब पर 24 घंटे का लाइवस्ट्रीम चल रहा है, जिसमें पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट और रिसर्चर अपनी बात कह रहे हैं। ये लोग पिछले हफ्तों की ही तरह स्वीडिश एक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग और उनके साथ अपनी तस्वीरें और विरोध की तख्तियां सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। वे दुनिया भर की सरकारों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

जब पिछले महीने नौजवान एक्टिविस्टों ने पर्यावरण को लेकर अपनी चिंता दर्ज करायी थी तो उनकी गतिविधियों की सराहना तो हुई लेकिन सरकारों ने उतनी गंभीरता से कदम नहीं उठाए। अब ये नौजवान आशंकित हैं कि कहीं कोरोना महामारी के दबाव में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चिंता में पर्यावरण की चिंता को दरकिनार ना कर दिया जाए।

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दरअसल फ्राइडे फॉर फ्यूचर आंदोलन का इरादा पिछले साल की ही तरह एक अंतरराष्ट्रीय विरोध प्रदर्शन आयोजित करना था। ऐसे प्रदर्शनों में पिछले साल लाखों लोगों ने हिस्सा लिया था और उसे युवा लोगों के अलावा समाज के अन्य वर्गों का भी समर्थन मिला था।

पिछले साल जर्मनी में हुए विरोध प्रदर्शनों में हर बार दसियों हजार लोग शामिल हुए थे, लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण सार्वजनिक रूप से बड़ा प्रदर्शन करना संभव नहीं था। इसलिए विरोध-प्रदर्शन इंटरनेट पर हो रहा है, लेकिन वह विरोध की अकेली जगह नहीं होगी।

पर्यावरण संरक्षण को लेकर आंदोलन कर रहे एक्टिविस्ट कोरोना संकट के बीच अपने आंदोलन को दबने नहीं देना चाहते। इसीलिए वह हर तरीके से इस आंदोलन को धार देने में लगे हुए हैं। ऑनलाइन के साथ-साथ बर्लिन में जर्मन संसद के सामने एक आर्ट एक्शन चल रहा है जहां पर्यावरण आंदोलन की स्थानीय ईकाईयों के बैनरों और पोस्टरों का प्रदर्शन किया जा रहा है।

तालाबंदी की वजह से इस प्रदर्शन में सिर्फ 20 लोग हिस्सा ले सकते हैं। यह प्रदर्शन भले ही सांकेतिक लगे लेकिन राजधानी के अलावा दूसरे शहरों में भी ऐसे प्रदर्शन हो रहे हैं। जर्मनी में फ्राइडे फॉर फ्यूचर ईआंदोलन के संस्थापकों में शामिल कार्ला रीम्त्समा कहती हैं, “शुरुआती दिनों जैसा लग रहा है। अब हमें विरोध के नए तरीके सोचने की जरूरत है।”

पर्यावरण को लेकर इन किशोरों की चिंता जायज है। प्रदूषण की वजह से दुनिया मौत के मुहाने पर पहुंच गई है लेकिन सरकारें इस बात को समझ नहीं रही हैं। पर्यावरणविद और वैज्ञानिक लगातार लोगों को पर्यावरण संरक्षण को लेकर आगाह कर रहे हैं।

हालांकि कोरोना वायरस की वजह से दुनिया भर में हुए लॉकडाउन ने पर्यावरण को भारी राहत दी है। कोरोना ने वह कर दिखाया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। तालाबंदी की वजह से पर्यावरण स्वच्छ हो गया है। नदियां स्वच्छ और निर्मल हो गई है। वायु की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। ध्वनि प्रदूषण भी कम हो गया है। ऐसी जगहों से दो सौ ढाई सौ किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ दिख रहे हैं, जिन्हें पहले आज की पीढी ने कभी देखा ही नहीं था।

जर्मनी में भी लॉकडाउन का असर दिख रहा है। यहां की सड़कों पर गाडिय़ा नहीं हैं, कारखानों की चिमनियां बंद हैं और एक महीने से ज्यादा से दिन में नीला आसमान और रात में चमकते तारे दिख रहे हैं। लेकिन ये भी सच है कि नौकरी, कारोबार और तालांबदी के कारण दुनिया भर के किसी न किसी इलाके में फंसे होने की चिंता के पीछे पर्यावरण की चिंता दब सी गई है।

कामगारों के अलावा उद्यमों को आर्थिक मदद देने पर बहस चल रही है। पर्यावरण संगठन और बहुत से उद्यमी जर्मनी में मांग कर रहे हैं कि उद्यमों को दी जाने वाली सरकारी मदद को पर्यावरण सुरक्षा के कदमों के साथ जोड़ा जाए, ताकि कोयले, गैस और तेल पर से निर्भरता को कम किया जा सके।

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