Friday - 12 January 2024 - 10:53 PM

जुबिली ज़िन्दगी

व्यंग्य / बड़े अदब से : आखिर क्या करे चौथा बंदर !

उसको एक पेड़ की डाल पर सिर पर हाथ रखे, बेहाल देखकर दिल पसीज गया। वह बूढ़े से भी ज्यादा बूढ़ा लग रहा था। हताश और निराश भी। उसकी आंखों में एक विश्वास था कि मीडिया के किसी आदमी की नजर एक दिन उस पर जरूर पड़ेगी। मैंने उसे हैलो …

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बाजपेयी कचौड़ी : जहां लगती है लाइन

स्वादिष्ट गर्मागर्म कचौड़ी का कारोबार करने वाले बाल किशन बाजपेयी सत्तर के दशक में रहीमनगर से लखनऊ आये। उन्होंने यहां आटा मिल में नौकरी की। उसी दौरान उन्हें पूड़ी सब्जी की दुकान का आइडिया क्लिक किया। उन्होंने अपने मालिक से कुछ जमीन उधार देने को कहा। 1976 में बाजपेयी कचौड़ी …

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व्यंग्य / बड़े अदब से : एक श्राद्ध सम्मेलन मेरे आगे

एक सौ बानबे देशों के कुछ काले, कुछ सफेद और कुछ चितकबरे कौए प्रगति मैदान में सुबह से रिपोर्टिंग कर रहे हैं। एक वट वृक्ष की डालों पर उनके स्टेटस और सोशल डिस्टेंसिंग के हिसाब से बैठने का इंतजाम किया गया है। वृक्ष की फुनगी पर चाइना की तख्ती झूल …

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अटल जी भी थे तिवारी की चाट के रसिक

उनका नाम राम नारायण तिवारी था। सुल्तानपुर के सुकुलबाजार से रोजी रोटी की तलाश में लखनऊ आये थे 1929 में। सरवाइवल के लिए शुरुआती दौर में सिर पर टोकरी लेकर गली गली चाट की फेरी लगानी शुरू की। तब पच्चीस पैसे में भर पेट चाट मिलती थी। आलू कचालू, पापड़ी …

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व्यंग्य /बड़े अदब से : माटी की सिफत

आज किस्सागोई का मूड है। तो शुरू करते हैं एक अनाम लखनवी नवाब साहब की कहानी। एक नाजुक दिल नवाब साहब थे। उनकी चार बेगमें थीं। पर सबसे छोटी बेगम उन्हें बहुत ही प्यारी थीं। एक पल भी उन्हें अपनी नजरों से दूर नहीं होने देते। वे उनका पूरा ख्याल …

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150 साल पुरानी है सेवक राम मिष्ठान की परम्परा

क्या आपने कभी जौजी सोहन हलवा, किशमिश समोसा, मैसूर पाक, काली गाजर का हलवा, मलाई पूड़ी व कच्चे आम की खीर का नाम सुना या खायी है। अगर नहीं तो इस पुरानी परम्परा को जीवित रखे हुए हैं 150 साल पुरानी मिठाई की दुकान सेवक राम मिष्ठान भंडार। पांचवीं पीढ़ी …

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व्यंग्य / बड़े अदब से : चिन्दी चिन्दी हिन्दी

उनका हिन्दी प्रेम बेमिसाल है। जब देखो, जहां देखो, हिन्दी के हिमायती बने विशुद्धता के साथ हिन्दियाते रहते हैं। हिन्दी के ऐसे-ऐसे शब्द, कोश से बीनकर, छाड़-फूंक कर लाते कि सुनने वाला चकरा जाए कि क्या यह हिन्दी ही है। उसे अपने हिन्दुस्तानी होने पर शर्मिन्दगी महसूस होने लगती। जब …

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जैन चाट भण्डार : शुद्ध और स्वादिष्ट की बनायी पहचान

आज से कोई पचास बावन साल पहले नावेल्टी सिनेमा के ठीक सामने बरामदे में एक छोटी सी मेज पर एक दुबले पतले सज्जन अपनी धुन में मगन ठीक चार बजे चाट की दुकान सजाने लग जाते थे। वो शुक्ला चाट वाले से तीन से चार सौ बताशे खरीदकर लाते और …

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बड़े अदब से : वी लव पुलिस

पिछले दिनों लाॅक डाउन में हमारी पुलिस का नया परोपकारी, जन सेवक रूप सामने आया है। वो हर तरह की सेवा में निःस्वार्थ तत्पर रहे। यह बात मैं गीता पर हाथ रखकर स्वीकार कर सकता हूँ कि मैं और मेरा परिवार तब से पुलिस का दीवाना है। वी लव पुलिस। …

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शुक्ला चाट : नाम ही काफी है

प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव ये उन दिनों की बात है जब शाम होते ही लखनऊ एक बड़ा तबका (जिसमें जवान से लेकर बुजुर्ग तक शामिल थे) गंजिंग करने निकलता था। फिजां में इत्र महकता था। हलवासिया से काफी हाउस तक के दो चक्कर लगाने के बाद जुबान पानी छोड़ने लगती थी। तब …

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