Friday - 18 April 2025 - 10:30 PM

जुबिली डिबेट

कांग्रेस बनाम ज्ञानी

अभिषेक श्रीवास्तव एक बहुत पुरानी ग्रीक कथा है। शायद ईसप की। एक बाप और बेटे अपने गधे के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में किसी ने टोक दिया कि मूर्ख हो क्या, गधा साथ में है तो इस पर बैठ जाओ। बात सही लगी। बाप बैठ गया। लड़का पैदल …

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EDITORs TALK : कांग्रेस के मंथन से क्या निकलेगा ?

डॉ. उत्कर्ष सिन्हा देश की सबसे पुरानी पॉलिटिकल पार्टी कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। पार्टी की केन्द्रीय कार्यसमिति के बैठक के एक दिन पहले मीडिया में छपे एक पत्र ने पार्टी के अंदरखाने की हलचल को सतह पर ला दिया है। हालांकि ये बात छुपी नहीं रह गई थी …

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डंके की चोट पर : अज़ादारी पर बंदिश भक्त की नहीं हनुमान की बेइज्ज़ती है

शबाहत हुसैन विजेता नवाबी हुकूमत का दौर था. गंगा-जमुनी तहज़ीब की तारीख तैयार हो रही थी. वाजिद अली शाह में म्युज़िक को लेकर गज़ब की दीवानगी थी. कथक जैसा खूबसूरत डांस उभरकर दुनिया को लुभाने लगा था. वाजिद अली शाह की महफ़िलों में एक तरफ नये-नये राग तैयार किये जा …

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EDITORs TALK : अपराधी मस्त, पुलिस बेकाबू

डॉ उत्कर्ष सिन्हा जरा याद कीजिए 2017 का वो चुनावी माहौल जब यूपी में बहदाल कानून व्यवस्था का मुद्दा जोरों पर था। तब विपक्ष में रही भारतीय जनता पार्टी ने एक नारा दिया “अपराध मुक्त उत्तर प्रदेश” सूबे के यमन पसंद लोगों को स्वाभाविक रूप से ये नारा खूब पसंद …

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नई शिक्षा नीति में नहीं है छात्र संघ का उल्लेख ! क्या बच पाएगा छात्र संघ ?

अशोक कुमार समकालीन शिक्षा में विश्वविद्यालय शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। विश्व विद्यालय शिक्षा संपूर्ण शिक्षा पद्धति की शीर्ष बिंदु है। यह पूरी शिक्षा पद्धति की शीर्ष बिंदु होने के साथ ही साथ उसे संपूर्णता प्रदान करती है। इससे राष्ट्र के नायक प्रशिक्षित होते हैं, राजनैतिक नेता, औद्योगिक नेता, नीति …

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EDITORs TALK : बिहार में दंगल शुरू

डॉ. उत्कर्ष सिन्हा जैसे ही इस बात के संकेत मिलने लगे कि बिहार विधान सभा के चुनाव निर्धारित वक्त पर ही होंगे वैसे ही बिहार के सियासी मैदान में हलचल तेज हो गई। बिहार वैसे भी अपने दल बदलू नेताओं और नए नए राजनीतिक समीकरणों के लिए जाना जाता रहा …

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हम खुद क्यों मूर्ति नहीं बन जाते

सुरेन्द्र दुबे कहते हैं कि 12 साल में घूरे के दिन भी बदल जाते हैं। इस कहावत का सीधा सा मतलब यह है कि किसी को जीवन में निराश नहीं होना चाहिए। जीवन एक उतार-चढ़ाव भरी खूबसूरत यात्रा है जिसमें कभी भी किसी के अच्छे दिन आ सकते हैं। मैं …

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आजादी मिलने के 73 वर्ष के भीतर ही स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों की बात करना कैसे राष्ट्रद्रोह हो गया ?

डॉ सुनीलम आजादी मिलने के 73 वर्ष बाद लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, बन्धुता के मूल्यों की दुर्गति हम सब देख ही रहे हैं। देश भर में कोरोना के चलते स्वतंत्रता दिवस वैसा रंगीन और विविधतापूर्ण नहीं होगा जैसा कि अब तक होता आया है। हर 15 अगस्त पर मैं सोचता हूं …

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ब्राह्मणों को लेकर अपने-अपने दांव

केपी सिंह उत्तर प्रदेश में राजनीति अचानक खुल्लम खुल्ला जाति केन्द्रित हो गई है। पौराणिक मिथकों को आधार बनाकर होने वाले राजनैतिक खेल के बीच इस मोड़ के मद्देनजर कहीं-कहीं परशुराम भगवान श्रीराम से बड़े होने लगे हैं। सपा और बसपा में परशुराम की विशालकाय भव्य प्रतिमा लगाने को लेकर …

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लाल किले से मोदी का संबोधन और उम्मीदों का सातवां आसमान

कृष्णमोहन झा इस बार हम अपनी आजादी का पर्व एक ऐसे प्रकोप से भयावह विपदा के साए में मना रहे हैं जिसके कारण सारी दुनिया मे हाहाकार मचा हुआ है। सारी दुनिया उस दिन का बेताबी से इंतजार कर रही है जब कोरोना वायरस के प्रकोप से मुक्त होकर खुली …

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