Sunday - 7 January 2024 - 1:38 PM

क्या गठबंधन और कांग्रेस तोड़ पाएगी बीजेपी की सुरक्षित सीट का तिलिस्म

न्यूज़ डेस्क 

देश में 17वीं लोकसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है। देश की नामी लोकसभा सीटों में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का नाम भी आता है। कहा जाता है की गोमती नदी के किनारे बसे शहर लखनऊ को भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने बसाया था। इसीलिए इसे लक्ष्मणपुरी भी कहा जाता था तो कई लोग इसे लखन पासी के शहर के तौर पर भी जानते है।

इस बार लोकसभा चुनाव में राजधानी लखनऊ से बीजेपी ने एक बार फिर गृहमंत्री राजनाथ सिंह को लखनऊ से मैदान में उतारा है, तो वहीं सपा बसपा गठबंधन ने अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को मैदान में उतारा है। अक्सर अपने बयानों को लेकर चर्चा मे रहने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम को कांग्रेस ने लखनऊ लोकसभा सीट पर अपना उम्मीदवार घोषित किया है। दिलचस्प बात ये है कि क्या सपा बसपा मिलकर और कांग्रेस इस सीट पर चली आ रही बीजेपी की प्रथा को खत्म कर पाएंगें।

बता दें कि लखनऊ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भी राजनीतिक कर्मभूमि रही है। जहां एक और वाजपेयी लगातार पांच बार यहां से चुनाव जीतकर लोकसभा में गये, वहीं सपा और बसपा इस सीट पर आज तक अपना खाता भी नहीं खोल पायी हैं।  1991 से लगातार बीजेपी का कब्जा है। मौजूदा समय में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह लखनऊ से सासंद है।

राजनीतिक पृष्ठभूमि

स्वतंत्रता के बाद से 16 बार लखनऊ संसदीय सीट लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा सात बार बीजेपी और छह बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। इसके अलावा जनता दल, भारतीय लोकदल और निर्दलीय ने एक-एक बार जीत दर्ज की है।

1952 में पहली बार हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की शिवराजवती नेहरु को जीतकर सांसद बनने का गौरव प्राप्त हुआ उसके बाद से लगातार तीन बार कांग्रेस ने इस सीट से जीत हांसिल की। लेकिन 1967 में 1967 में हुए आम चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार आनंद नारायण ने जीत का परचम लहराया। इसके बाद 1971 में फिर एक बार हुए आम चुनाव में कांग्रेस की शीला कौल सांसद बनी।

इस अलावा इंद्रा के आपातकाल लगाने के बाद कांग्रेस को फिर झटका लगा और 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय लोकदल से हेमवती नंदन बहुगुणा जीतकर संसद पहुंचे। हालांकि, 1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर शीला कौल को यहां से चुनावी मैदान में उतारकर वापसी की। वह 1984 में चुनाव जीतकर तीसरी बार सांसद बनने में कामयाब रहीं। इसके बाद 1989 में कांग्रेस की हाथों से जनता दल के मानधाता सिंह ने यह सीट ऐसा छीना कि फिर दोबारा कांग्रेस कभी यहां से वापसी नहीं कर सकी।

बीजेपी के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने 90 के दशक में लखनऊ संसदीय सीट से मैदान में उतरकर जीत का जो सिलसिला शुरू किया था फिर वो आज तक थमा नहीं. पिछले सात लोकसभा चुनाव से बीजेपी लगातार जीत दर्ज कर रही है। अटल बिहारी वाजपेयी लगातार पांच बार सांसद चुने गए। इसके बाद उनकी राजनीतिक विरासत संभालने के लिए 2009 में लालजी टंडन को बीजेपी ने मैदान में उतारा तो उन्होंने जीत दर्ज की। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने किस्मत आजमाई और उन्होंने कांग्रेस की रीता बहुगुणा को करारी मात देकर लोकसभा पहुंचे।

23 लाख से अधिक आबादी

2011 के जनगणना के मुताबिक इस सीट पर कुल जनसंख्या 23,95,147 है। इसमें 100 फीसदी शहरी आबादी है। लोकसभा सीट पर 2017 के मुताबिक 19,49,226 मतदाता और 1,748 मतदान केंद्र हैं। अनुसूचित जाति की आबादी 9.61 फीसदी हैं और अनुसूचित जनजाति की आबादी 0.02 फीसदी है। इसके अलावा ब्राह्मण और वैश्य मतदाता निर्णयक भूमिका में है। जबकि 21 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है।
वहीं इसमें पांच विधानसभा सीटें आती हैं। जिसमे लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य और लखनऊ कैंट विधानसभा सीट शामिल है। पांचों विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है।

दो लाख से अधिक वोटों से जीते थे राजनाथ

2014 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ संसदीय सीट पर 53.02 फीसदी मतदान हुए थे। इस सीट पर बीजेपी के राजनाथ सिंह ने कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को 2 लाख 72 हजार 749 वोटों से मात देकर जीत हासिल की थी। कुल पड़े वोटों में से बीजेपी के राजनाथ सिंह को 5,61,106 वोट मिले जबकि कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को 2,88,357 वोट मिले।

70 फीसदी सांसद निधि खर्च

गृह मंत्री राजनाथ सिंह 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही केंद्रीय मंत्री बने हुए हैं, ऐसे में बतौर मंत्री उनकी उपस्थिति दर्ज नहीं है। सांसद निधि से खर्च का सवाल है तो राजनाथ सिंह ने पांच साल में मिले 25 करोड़ सांसद निधि में से 17.42 करोड़ रुपये विकास कार्यों पर खर्च किया है। इस तरह से वह करीब 70 फीसदी सांसद निधि खर्च कर सके हैं।

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