Wednesday - 10 January 2024 - 12:22 PM

एनडीए का भविष्‍य तय करेगा बिहार चुनाव

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

देश भर के सभी राजनीतिक दलों की नजरें बिहार विधानसभा चुनाव पर टिकी हैं क्‍योंकि इसके परिणाम केवल एक राज्य में सरकार बनने तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि उसके राष्ट्रव्यापी प्रभाव सामने आएंगे। साथ ही एनडीए का रानजीतिक भविष्‍य भी ये चुनाव बताएगा।

एनडीए के मुकाबले अगर बिहार में कांग्रेस, कम्युनिस्ट और राजद का महागठबंधन आगे निकलता है तो पूरे देश में बीजेपी विरोधी दलों को एक मंच पर आने का रास्ता साफ होगा। दरअसल बीजेपी नहीं चाहती है कि उसके खिलाफ देशभर में कोई ऐसा गठबंधन बने जो विभिन्न राज्यों के चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में उसके लिए खतरा बने।

बीजेपी नेतृत्व ने बिहार के चुनाव को केवल जीत तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि वह इसमें विपक्षी गठबंधन की ताकत का भी आकलन कर रहा है। बिहार में कांग्रेस, कम्युनिस्ट और समाजवादी (राजद) ताकतें एक साथ चुनाव लड़ रही हैं। इनका एक साथ आना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश के विभिन्न राज्यों में कांग्रेस तो प्रभावी है ही, कई राज्यों में कम्युनिस्ट दलों की भी प्रभावी भूमिका है। समाजवादी कुनबा बिखरा हुआ है लेकिन उनके कई घटक भाजपा के साथ भी हैं। अगर कहीं भाजपा कमजोर होती दिखती है तो इन घटकों को दूसरी तरफ जाने में देर नहीं लगेगी।

बीजेपी की एक चिंता यह भी है कि उसका अपना एनडीए अब घट रहा है। शिवसेना और अकाली दल जैसे मजबूत सहयोगियों के बाहर जाने के बाद बिहार चुनाव के नतीजे जदयू और लोजपा को लेकर भी निर्णायक होंगे। चुनाव नतीजों के बाद इन दोनों दलों की राजद को लेकर क्या भूमिका होगी यह अभी तय नहीं है, लेकिन दोनों का साथ रहना मुश्किल होगा।

बिहार के बाद भाजपा के लिए बंगाल बड़ी चुनौती है। यहां वह अपने लिए व्यापक संभावनाएं भी देख रही है। लेकिन अगर बिहार के नतीजे गड़बड़ाते हैं तो बंगाल का समीकरण भी प्रभावी हो सकता है। भाजपा को रोकने के लिए वहां भी भाजपा विरोधी दलों की एकता हो सकती है। तब समीकरण बदल भी सकते हैं।

भाजपा अपने साथ कुछ नए क्षेत्रीय दलों को जोड़ने की कोशिश कर रही है। इनमें आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी प्रमुख है। बीजद और टीआरएस के साथ उसके संबंध बहुत ज्यादा टकराव के नहीं हैं। अन्नाद्रमुक उसके साथ है। लेकिन उसे गठबंधन राजनीति के लिए अपने पुराने साथियों की वापसी की जरूरत भी पड़ेगी।

हालांकि इससे उसका अपना विस्तार प्रभावित होता है। देखा जाय तो पार्टी ने पिछले पांच सालों में अपने विस्तार के लिए गठबंधन को सीमित रख कर प्रयास किए हैं। यही वजह है कि भाजपा का प्रभाव और सत्ता में हिस्सेदारी देश के अधिकांश राज्यों तक पहुंची है।

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