Sunday - 7 January 2024 - 2:07 AM

राक्षसों को कभी नहीं सुहाई अज़ान और आरती

नवेद शिकोह

राक्षस और भूत कुछ ज्यादा ही आजादी पसंद होते हैं इसलिए इनको अनुशासन बिल्कुल बर्दाश्त नहीं. रावण के भाई कुंभकरण की तरह इनको निद्रा बहुत पसंद है. कहा जाता है कि अज़ान, आरती, कीर्तन और हनुमान चालीसा से भूत चिढ़ते हैं. ये आवाज़ें इन्हें खटकती हैं. इन पवित्र आवाज़ों से दूर भागते हैं या इन्हें बंद करने की साज़िश रचते हैं.

पौराणिक काल गवाह है, राक्षसों का छल उनकी राजनीति थी. शायद आज के भूत भी अब राजनीतिक हो गए हैं. कमजोर लोगों पर सवार होकर अज़ान और कीर्तन को आपस में टकराकर ऐसी आवाज़ें सदा के लिए बंद करने की सियासी साजिशें कर रहे हैं!

हमें भूतिया सियासत को समझने के लिए साम्प्रदायिकता की ग़फलत से बाहर आना होगा. राक्षसी प्रवृत्ति की ग़फलत कई प्रकार की होती है. अक्सर सुबह न उठ पाने से पूरा दिन ख़राब हो जाता है. ये नुकसान उन खुशनसीबों का नहीं होता है जिसको भोर में कभी अज़ान जगा देती है तो कभी आरती. शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग और आर्गन दो होते हैं. एक हाथ में मोच आ जाए तो दूसरे से काम कर लीजिए. हिन्दुस्तानियों को जगाने के लिए मंदिर भी हैं मस्जिद भी, गुरुद्वारा और गिरिजाघर भी है.

भारत का वो हिस्सा भारत नहीं लगता जहां से अज़ान,आरती, शबद, कीर्तन या गुरुवाणी की आवाज नहीं आती. ये धार्मिक, आध्यामिक आवाजें ज़िन्दगी के अनुशासन का अलार्म होती हैं. इन सारी मधुर आवाज़ों का महत्व है. साइंस कहती है कि ये आवाज़े दिल-ओ-दिमाग को सुकून देती हैं. याद दिलाती हैं, सुबह हो गई उठो. दोपहर की जिम्मेदारी निभाओ. अब शाम हो चली है रात की तैयारी कर लो. अनुशासित होने और टाइमिंग शैडयूल के मैनेजमेंट के लिए पहले जमाने में घंटाघर हुआ करते थे जो वक्त और वक्त के हर पहर से वाकिफ कराते रहते थे. जितना बजता था उतने घंटे बजते थे. आज भी स्कूलों में घंटा बजता है. पहले युद्ध भी सूर्योदय और सूर्यास्त की टाइमिंग मानकों पर आधारित था.

भूतों और राक्षसों का अस्तित्व हर धर्म स्वीकार करता है. कभी नहीं सुना होगा कि भूतों या राक्षसों को संगीत पसंद है. रावण का भाई कुंभकरण विशाल राक्षस था, वो ख़ूब सोता था. हमारे देश की संस्कृति में संगीत का जन्म भक्ति से हुआ है. म्युजिक को आध्यात्मिक ताकत कहा गया है. विज्ञान मानता है कि संगीत मन और मस्तिष्क का विकार मिटाता है. भारत का कोई ऐसा धर्म नहीं जिसकी धार्मिक संस्कृति में संगीत और धुन का मिश्रण नहीं हो. बाइबल, कुरआन, शबद, कीर्तन सब में संगीत है.

कुरआन-ए-पाक और अज़ान का सुर और लय बाकायदा मदरसों में सिखाया जाता है. मोहर्रम तो नौहे, मातम, मरसिए की धुन और लय पर केंद्रित है. कव्वाली,नात-मिलाद सबकी एक धुन होती है. अज़ान के सुर,लय और आरोह-अवरोह के कमाल का तो क्या कहना. ऐसे ही आरती, शंख, शबद-कीर्तन, गुरुवाणी और बाइबिल पाठ भी पवित्र संगीत के सुर लय की मिठास लिए होता है. मन-मस्तिष्क को ऊर्जावान बनाने वाली अज़ान को आध्यात्मिक संगीत मानकर धर्म के दायरे से बाहर लाकर देखिए तो तो आपको अज़ान भी कभी नहीं खटकेगी. ये भजन आरती और गुरुवाणी की तरह सबकी है, सबके लिए है. धूप, रोशनी, हवाओं, चांद-सितारों, चांदनी, बारिश, फुहावरों की तरह.

यह भी पढ़ें : मुसलमानों के डर के आगे जीत है !

यह भी पढ़ें : ख़ुश्बू की तरह फ़ैल रहा प्रियंका गांधी का नारीवाद

यह भी पढ़ें : यूपी चुनाव : मोहब्बत में इंकार इज़हार है

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : पुलकित मिश्रा न संत है न प्रधानमन्त्री का गुरू यह फ्राड है सिर्फ फ्राड

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com