Wednesday - 10 January 2024 - 8:26 AM

अर्जुन सिंह को मंहगा पड़ गया था फूलन का समर्पण, आ गई थी बर्खास्तगी की नौबत

केपी सिंह

कानपुर देहात के बेहमई सामूहिक हत्याकांड का फैसला शनिवार को फिर नही हो सका, इसके पीछे सनसनीखेज वजह रही। अब अदालत से इस कांड की चार्जशीट की आरिजनल कापी गायब हो गई है। अदालत ने शनिवार को निर्धारित फैसला टालते हुए चार्जशीट गायब होने की जांच शुरू करा दी है।

14 फरवरी 1981 को हुए इस कांड में 22 लोगों की हत्या हुई थी। उस दौर में इससे भी बड़े सामूहिक हत्याकांड हुए। मैनपुरी में संतोषा गिरोह द्वारा 24 लोगों की सामूहिक हत्या कर बेहमई के रिकार्ड को तोड़ दिया गया था लेकिन बेहमई कांड ने कई कारणों से इतिहास में तमाम अध्याय जोड़े। जबकि अन्य सामूहिक हत्याकांड की यादें गायब हो चुकी हैं।

इस कांड की शुरू में इस कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक बहुत ज्यादा चर्चा इसलिए हुई क्योंकि इसमें महिला डकैत की सबसे अहम भूमिका बताई गई थी। जबकि हत्याकांड के कुछ दिनों बाद यह सवाल उठाया गया था कि क्या सचमुच फूलनदेवी ने इतनी लाशों का ढेर लगाया था या उनका नाम इसलिए जोड़ा गया तांकि खबर को और ज्यादा सनसनीखेज बनाया जा सके। फूलनदेवी का समर्पण चंबल के इतिहास में पहला ऐसा समर्पण था जब वहां की पब्लिक ने खूंखार डकैतों के महिमा मंडन को लेकर विद्रोह कर दिया था। इसके पहले पुलिस और व्यवस्था से ज्यादा लोगों की सहानुभूति डकैतों के साथ रहती थी। जो उसकी निगाह में डकैत नही बागी होते थे।

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फूलन देवी के मामले में विपर्यास यह था कि उनका गिरोह चंबल का न होकर यमुना बीहड़ पटटी का था। चंबल के किनारे के गांव में उनके नाम एक भी अपराध दर्ज नही था। लोगों की मुख्य आपत्ति यह थी कि जब फूलनदेवी के खिलाफ भिण्ड तो क्या पूरे मध्य प्रदेश में एक क्राइम नही था तो उनके समर्पण का तामझाम यहां क्यों किया जा रहा है। भीड़ के डकैतों पर मुख्यमंत्री की उपस्थिति में जबर्दस्त पथराव के कारण पांसा पलट गया था। एक साल पहले मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को मलखान सिंह का समर्पण कराने की वजह से जो वाहवाही मिली थी वह काफूर हो चुकी थी। फूलनदेवी के समर्पण की बजाय अखबारों की हैडिंग और बीबीसी के बुलेटिन में लोगों के गुस्से को प्रमुखता मिली थी। जिससे अर्जुन सिंह की सरकार खलनायक बन गई थी और कांग्रेस के तत्कालीन महासचिव राजीव गांधी इस कदर उनसे नाराज हो गये थे कि उनसे इस्तीफा मांगने की नौबत आ गई थी।

हुआ दरअसल यह था कि समर्पण समारोह में राजीव गांधी का एक संदेश भी पढ़कर सुनाया गया था जिसमें उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार के इस कदम की सराहना करते हुए इससे चंबल में शांति के नये सूर्योदय की कामना की थी। अर्जुन सिंह के विरोधियों ने राजीव गांधी के इस तरह कान भरे कि उनको फूलन देवी के साथ अपना नाम जोड़ा जाना बेहद नागवार गुजरा और उन्होंने अर्जुन सिंह को बर्खास्त करने का फैसला ले लिया। इसके चलते मैडम यानी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपने बेटे को मनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी।

फूलन देवी के समर्पण के पीछे पश्चिम की उन प्रचार शक्तियों की बड़ी भूमिका थी जो उपनिवेशवादी मानसिकता से ग्रसित होने के कारण किसी कीमत पर आजाद भारत को एक सभ्य देश के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थीं। फ्रांस की एक टेलीविजन कंपनी ने फूलन का लाइव शूट करने के लिए बहुत पैसा खर्च किया था। फूलन देवी को भी मालूम हो गया था कि उनकी तस्वीर बहुत मंहगे में बिक रही है। समर्पण के एक दिन पहले इसके कारण भिण्ड जिले के लहार के पास के उस ईंगुई डाक बंगले में रात में जबर्दस्त हंगामा हो गया। जिसमें फूलनदेवी का साक्षात्कार दिल्ली की प्रेस से कराने की व्यवस्था की गई थी।

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फूलनदेवी ने इसमें फोटो सेशन के दौरान दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार के फोटोग्राफर को झापड़ रसीद कर दिया। वे इस बात पर गुस्सा थीं कि फोटोग्राफर बिना पेमेंट दिये उनकी तस्वीर क्यों खींच रहा है। जाहिर है कि फूलनदेवी और उनका मिथक गढ़ने के लिए व्यापार हुआ था। यह वृतांत इसकी बानगी है।

सबसे खराब बात यह रही कि विदेशी प्रचारतंत्र ने यह साबित करने की कोशिश की कि भारत में जातियों के बीच गृह युद्ध की स्थिति थी। सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाली इस शरारत के बरक्स बड़ी सच्चाई यह थी कि बेहमई में कुछ भी हुआ हो लेकिन फूलनदेवी ने इस घटना के बाद भी ठाकुरों पर अपना सबसे ज्यादा विश्वास जताया। इसीलिए वह अर्जुन सिंह के सामने समर्पण के लिए तैयार हुईं।

समर्पण के पहले उन्होंने यह शर्त रखी थी कि पहले उनके परिवार को जालौन जिले से सुरक्षित लाकर भिण्ड शिफ्ट किया जाये तांकि उत्तर प्रदेश पुलिस की दंरिदी साजिश से उसका बचाव हो सके। परिवार लाने के लिए उन्होंने जिस पर विश्वास जताया वे भी एक ठाकुर भिण्ड के तत्कालीन कोतवाल मंगल सिंह चौहान थे। उनकी आमद आउट हो जाने की वजह से जालौन में उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें मय हमराह फोर्स के गिरफ्तार कर हवालात में डाल दिया था।

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बादशाह सिंह भदौरिया जो उरई में प्रख्यात सर्जन डा. रमेश चंद्रा के पास रहते थे, उनकी मध्यस्थता मध्य प्रदेश पुलिस का विश्वास फूलनदेवी को दिलाने में सबसे कारगर रही थी। फूलनदेवी को कारतूस मुहैया कराने के मामले में कालपी के ठाकुर जयकरन सिंह को पीएसी से बर्खास्त किया गया था। डकैत फिरौती के लिए अपहरण करते थे लेकिन फूलन देवी ने भिण्ड की कुशवाह ट्रांसपोर्ट सर्विस के मालिक के अपहृत बेटे को उलटे पांच हजार रुपये का तिलक करके सकुशल वापस कर दिया था। यह अपहरण जालौन जिले के गोपालपुरा पहूंज सेतु से उस दिन किया गया था जब ग्वालियर की महारानी विजया राजे सिंधिया रायबरेली में इंदिरा गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में पर्चा भरने के लिए काफिला लेकर वहां से गुजर रहीं थीं। इतना ही नहीं समर्पण के समय भीड़ का रौद्र रूप देखकर सहमी फूलनदेवी ने पप्पू यानी कुशवाह ट्रांसपोर्ट सर्विस के लड़के को देखकर उन्हें जेल की वैन के अंदर अपने पास बुलाया और सहारे के लिए वे उन्हीं से काफी देर तक बात करती रहीं थीं। बिडंबना यह है कि इस मामले में विदेशी शक्तियों द्वारा किये गये दुष्प्रचार के कारण ही उस इलाके के ठाकुर युवक नें फूलन देवी की हत्या कर डाली जहां के लोगों का दूर-दूर तक बेहमई कांड से कोई लेना-देना नही था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

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