Sunday - 7 January 2024 - 1:53 PM

अनुप्रिया और निषाद के बाद राजभर पर भाजपा की निगाह

जुबिली न्यूज डेस्क

पिछले कुछ दिनों से यूपी का सियासी तापमान बढ़ा हुआ है। चर्चा में सिर्फ और सिर्फ भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ है। एक ओर पार्टी संगठन और सत्ता में सरकार में बदलाव के कयास लगाए जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी अपने सियासी समीकरण को मजबूत करने में जुट गई है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा चुनावी मोड में आ गई है। दोबारा सत्ता में आने के लिए भाजपा सारे समीकरणों को मजबूत करने में जुट गई है। दरअसल भाजपा सिर्फ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर ही केंद्रित नहीं है। वह 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर ही सारी गोटियां फिट कर रही है।

इस कड़ी में भाजपा मौजूदा सहयोगी को समझाने और साथ-साथ गठबंधन छोड़कर चले गए पुराने सहयोगी को भी दोबारा से लाने की कवायद जुट गई है।

गुरुवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद से मुलाकात किए। इसके साथ ही भाजपा ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओपी राजभर के लिए गठबंधन में वापसी के दरवाजे खोल दिए गए हैं।

जी हां, भाजपा ने ओम प्रकाश राजभर के साथ एक बार फिर गठबंधन में वापसी की कवायद शुरू कर दी है। पूर्वांचल के एक बड़े भाजपा नेता के जरिए ओमप्रकाश राजभर से संपर्क किया जा रहा है।

राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक पूर्वांचल के जिन नेता को यह जिम्मेदारी दी गई है उनका ओम प्रकाश राजभर के साथ अच्छा रिश्ता तो है ही साथ ही वह दिल्ली दरबार से बेहद करीब भी हैं।

सूत्रों की मानें तो राजभर के साथ भाजपा नेता की दो दौर की बातचीत भी हो गई है। इस दौरान रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने के साथ-साथ उन्हें योगी कैबिनेट में दोबारा से एंट्री का भरोसा दिलाया गया है तो वहीं राजभर ने साफ कह दिया है कि यदि भाजपा आज सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू कर दे तो पार्टी उनके साथ खड़ी हो जाएगी।

हालांकि आज एक बार फिर ओम प्रकाश राजभर भाजपा के खिलाफ आक्रामक दिखे। उन्होंने ट्वीट कर भाजपा पर हमला बोला है। उन्होंने भाजपा से हाथ मिलाने की संभावनाओं को खारिज कर दिया है।

राजभर में अपने ट्वीट में लिखा है, भाजपा डूबती हुई नैया है,जिसको इनके रथ पर सवार होना है हो जाये पर हम सवार नहीं होंगे, जब चुनाव नजदीक आता है तब इनको पिछड़ो की याद आती है और जब मुख्यमंत्री बनाना होता है तो बाहर से लाकर बना देते है,हम जिन मुद्दों को लेकर समझौता किये थे साठे चार साल बीत गया एक भी काम पूरा नहीं हुआ।

राजभर आज भाजपा के खिलाफ जमकर हमला किए है। लेकिन कहते हैं न राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। चुनाव के ऐन वक्त समीकरण बनते और बिगड़ते हैं।

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2019 में भाजपा से अलग हो गए थे राजभर

मालूम हो कि 2019 के लोकसभा चुनाव के मतदान खत्म होने के अगले ही दिन सीएम योगी ने ओमप्रकाश राजभर को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

दरअसल सत्ता में आने के एक साल बाद से ही ओम प्रकाश राजभर ओबीसी समुदाय के मुद्दों को लेकर सीएम योगी के खिलाफ तल्ख बयान दिए थे और लगातार भाजपा के खिलाफ बोल रहे थे। इसी के चलते उनकी कैबिनेट से छुट्टी कर दी गई थी।

हालांकि, अब भाजपा हाईकमान यूपी में नए सिरे से गठबंधन को साधने और बुनने में जुट गया है। पूर्वांचल में पंचायत चुनाव में राजभर की पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है।

मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में राजभर की पार्टी को जीत मिली है। ऐसे में भाजपा शीर्ष नेतृत्व राजभर की गठबंधन में वापसी के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। इतना ही नहीं राजभर जिस रोहणी कमीशन की रिपोर्ट को लागू कराने को लेकर मोर्चा खोले हुए थे, उसको लेकर भी भाजपा संजीदा है।

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वापसी का राह बनेगी रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट

ऐसा माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की दिशा में कदम उठा सकती है।

रोहिणी कमीशन को 31 जुलाई 2021 तक रिपोर्ट तैयार करने का टाइम बढ़ाया गया है। संसद में भी इस रिपोर्ट को लागू करने की मांग उठ चुकी है।

यह रिपोर्ट के लागू होती ही ओबीसी आरक्षण का फॉर्मूला चार हिस्सों में बंट सकता है, जिसका बड़ा फायदा तमाम उन ओबीसी जातियों को मिलेगा, जिन्हें आरक्षण का फायदा अभी तक नहीं मिल सका है।

पूर्वांचल में राजभर हैं अहम फैक्टर

दरअसल पूर्वांचल के कई जिलों में राजभर समुदाय का वोट राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाडऩे की ताकत रखता है। उत्तर प्रदेश में राजभर समुदाय की आबादी करीब 3 फीसदी है, लेकिन पूर्वांचल के जिलों में राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 फीसदी है।

राजभर समुदाय घाघरा नदी के दोनों ओर की सियासत को प्रभावित करता है। गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही में इनकी अच्छी खासी आबादी है, जो सूबे की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर असर रखते हैं।

ओम प्रकाश राजभर का नहीं है कोई विकल्प

ऐसा नहीं है कि भाजपा ने राजभर वोटों को साधने की कोशिश नहीं की। ओम प्रकाश राजभर से दूरी के बाद भाजपा ने अनिल राजभर को राजभर वोटों को साधने के लिए मोर्चे पर लगाया।

अनिल को भाजपा राजभर के नेता के तौर पर लगातार प्रोजेक्ट कर रही है। इसके लिए उन्हें ओपी राजभर के गृह जिला बलिया का प्रभारी भी पार्टी ने बना रखा है। बावजूद इसके पंचायत चुनाव में जिस तरह से पूर्वांचल में राजभर समुदाय ने ओम प्रकाश के पक्ष में लामबंद रहे। इतना ही नहीं गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, बलिया और आजमगढ़ में कई सीटें मिली हैं, जिसके चलते दोबारा से बीजेपी में लाने की प्रक्रिया तेज हो गई है।

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