Sunday - 7 January 2024 - 9:12 AM

रिया चक्रवर्ती के नाम एक पत्र..

सुपरिचित स्टार सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद शुरू हुई जांच के दौरान बदलते दृश्यों ने हर किसी को आश्चर्यचकित किया. हर खुलासे के बाद लोग अपनी उँगलियाँ दाँतों से दबा लेते. हर बात पर ताज्जुब था लेकिन अगर कोई बात बहुत सामान्य लगी तो वह रिया की गिरफ्तारी थी. रिया का जेल जाना बहुत सामान्य था. रिया के छूट जाने पर भी किसी को कोई मतलब नहीं था जैसे कि फिल्म खत्म हो गई. जैसे कि शो मस्ट गो ऑन.

लखनऊ के युवा व्यंग्यकार पंकज प्रसून ने रिया की गिरफ्तारी और ज़मानत को जिस चश्मे से देखा, वास्तव में वैसा चश्मा बाज़ार में मिलता नहीं है. उसके लिए संस्कारित होना पड़ता है. जिन संस्कारों की कसमें खिलाई जाती हैं उन्हें खुद में ढालना पड़ता है. रिया चक्रवर्ती की रिहाई के बाद पंकज प्रसून ने रिया को जो पत्र लिखा है उसे हम आप तक ज्यों का त्यों पहुंचा रहे हैं.

रिया,

तुम्हारा कसूर क्या था, मालूम है-तुमने प्यार किया था। वह भी एक स्टार से। क्या तुमको मालूम नहीं था कि प्यार इंसानों से किया जाता है। स्टार हमेशा अपने स्टारडम की फिक्र करता है। तुम खुद को क्या स्टार समझती थीं? नादान थी, लड़कियां भी कहीं स्टार होती हैं। वह तो एक जुगनू की तरह होती हैं, टिमटिमाती तो हैं, लेकिन आकाश नहीं मिल पाता।

तुम्हारा कसूर यह भी था कि सुशांत की तमाम गर्ल फ्रेंड की तरह तुम्हारे पास कई ब्वायफ्रेंड्स नहीं थे। तुमने सिर्फ एक से प्यार किया था। जो सबका होकर रहता है वह वास्तव में किसी का नहीं हो पाता, लेकिन लेकिन जो किसी एक का होकर रहता है, वह खुद का भी नहीं हो पाता। तुम खुद की भी नहीं हो पाई।

खामियाजा भुगता न .. देखते- देखते देश की सबसे कुख्यात स्त्री किरदार बन गई। बेटी बचाओ का नारा लगाने वाले बेटी फंसाओ तक पहुंच गए। तुमको मालूम नहीं था कि आरोपों में प्रदेशवाद चलता है। तुम्हारा गुनाह यह भी था कि तुम बंगाली थी, अगर तुम किसी और प्रदेश से होती तो काला जादू की मास्टरनी न कहलाती।

एक स्त्री का हत्यारन और डायन में रूपांतरित होने में देरी नही लगती। तुमको तो मालूम ही नहीं रहा होगा कि तुम्हारा प्रेमी, एक प्रेमी होने से पहले बिहारी था। बिहार की अस्मिता और शौर्य का प्रतीक। तुमने फिल्मी पोस्टरों में देखा था उसको, लेकिन वह चुनावी पोस्टरों में भी आ सकता था, इसका तुम्हे जरा भी इल्म नहीं रहा होगा। अब तुम्हारा प्रेमी ‘ मुद्दा’ बन चुका है। तुम जमानत मांगती रह गई, उसके नाम पर वोट मांगने की तैयारी है।

तुम पर आरोप लगे कि तुम अपने प्रेमी को गांजा देती थी। वह भी न कितना भोला था, चुपचाप ले लेता था। चिलम सुड़कता जाता था, बिना किसी को बताए निर्वात में, किसी शिव मंदिर के किनारे बैठे मौनी बाबा की तरह। तुम उसको बहला फुसलाकर विदेश टूर के लिए कहती थी और वह मासूम, नादान बालक चल पड़ता था एक हाथ मे पासपोर्ट लेकर और क्रेडिट कार्ड तुम्हे देकर। तुमने उसे अपने घर से दूर करने के लिए क्या क्या नहीं किया। इतना दबाव डाल दिया कि बेचारा तुम्हारे साथ लिव इन रिलेशनशिप में ही रहने लगा। जब इतना सब है तो यह भी तो हो सकता है तुमने उकसाया हो और हर बात मानने वाला वह मासूम उकसावे में आ गया हो।

मैं तुमसे कभी मिला नहीं, ज़्यादा मालूम भी नहीं था। तुम्हे पहली बार सफेद सूट में सुबकते हुए सुशांत के अंतिम संस्कार वाले दिन देखा था। बाद में मीडिया द्वारा मालूम चला कि वह आंसू घड़ियाली थे। दिखावटी थे। नाटक था आदि आदि। शायद तुम प्यार में कई बार रोयी होगी। हर प्यार करने वाला रोता ही है। लेकिन वहां क्यों रोई। क्या तुम कुछ देर के लिए अपने आंसू रोक नहीं पाई थी। उधर कैमरे चमक रहे थे, क्या लोकतंत्र के इतने बड़े खम्भे को देख नहीं पाई थी। क्या हुआ? दो चीख रहे प्रवक्ताओं के बीच तुम्हारी अर्धनग्न तस्वीरें, मुस्कुराते फुटेज, कोल्ड ड्रिंक को शराब बताते फर्जी चित्र, यही मिला।

खैर, यह तो देख ही रही होगी कि हाथरस की बिटिया के साथ क्या हुआ। तुम्हारी गाड़ी के पीछे भागते हुए,शीशे को ठोंकते और घेर कर खड़े तमाम पत्रकारों को देखकर लगता था कि माइक भी रेप करते होंगे। इमोशनल रेप। ऐसा रेप जिसे पूरी दुनिया लाइव देखती है। यह भूल जाना कि इनमें से कोई तुमसे माफी माँगेगा। है तो आखिर लोकतंत्र खम्भा ही, और खम्भों में संवेदनाएँ थोड़े होती हैं।

रिया, तुमको जमानत मिली है। सीबीआई ने भी मान लिया है कि सुशांत ने आत्महत्या ही की थी। ड्रग सिंडीकेट से तुम्हारा वास्ता नहीं था, यह कोर्ट ने कहा है। लेकिन कुछ लोग नहीं मानेंगे। उनको इतना प्रबल विश्वास है कि जैसे उन्होंने सुशांत को मारते हुए तुमको देखा, लेकिन रंगे हाथों पकड़ नहीं पाए। तुम जेल गई, अच्छा हुआ। तुमने खूब चिंतन किया होगा कि स्त्री के प्यार करना वाकई आसान नहीं होता। कितने हैशटैग उसका पीछा करने लगते हैं।

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कहा गया कि तुम्हारी कोई औकात ही नहीं थी। तुम जो कुछ थी सुशांत की वजह से थी। समाज स्त्री को कभी उसके स्वतंत्र अस्तित्व से पहचानता ही कहाँ है। तुम ज़रूर सोचती होगी कि अब भविष्य का क्या होगा। यह भी सोचना की इस लड़ाई में जीत मिली तो किसको श्रेय मिलेगा? तुमको ही मिलेगा और संपूर्णता के साथ।

बहुत कुछ दे दिया है- गुप्तेश्वर पांडे को नेतानगरी मिल गई। अर्नब गोस्वामी को नम्बर वन बना दिया और कंगना को वाई प्लस सुरक्षा दिला दी।

ईश्वर से प्रार्थना है कि तुम्हारी सहनशक्ति और मजबूत हो।

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