Wednesday - 10 January 2024 - 11:43 AM

पानी की बढ़ती कमी के बीच जलवायु और विकास के लक्ष्य हासिल करना मुश्किल

डॉ सीमा जावेद

पिछले वर्षों की अभूतपूर्व बाढ़, सूखा और बेतहाशा पानी से होने वाली घटनाएं अप्रत्याशित मामले नहीं हैं, बल्कि मानव द्वारा दशकों से चली आ रही पानी की बदइंतज़ामी से होने वाले सिस्टेमेटिक क्राइसेस का नतीजा हैं। ग्लोबल कमीशन ने आज जल के अर्थशास्त्र पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा है।

उनके मुताबिक़ पानी का एक स्थायी और न्यायपूर्ण भविष्य प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए पानी से सम्बंधित अर्थशास्त्र में बदलाव और हुक्मरानी के पुनर्गठन की ज़रूरत होगी। वैश्विक स्तर पर 2019 में भारत पानी की कमी का सामना करने में 13वें स्थान पर था, और तब से यह रेटिंग केवल बढ़ी ही है।

जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ प्रभावी ढंग से नियमों को लागू करने में सीमाएं और उद्योग में पानी की बढ़ती खपत, कृषि, थर्मल पावर जेनेरेशन और शहरी केंद्रों में उपयोग में योगदान ने भारत को सबसे अधिक जल-तनावग्रस्त देशों में से एक बना दिया है।

भारत में उपलब्ध जल आपूर्ति 1100- 1197 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) के बीच है। (जो कि बढ़ते हुए प्रदूषण की बदौलत कम हो रहा है)।

इसके विपरीत, 2010 में 550-710 बीसीएम की मांग 2050 में बढ़कर लगभग 900-1400 बीसीएम तक होने की उम्मीद है। शहरी इलाक़ों में 222 मिलियन से ज़्यादा भारतीय पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं। (पानी के दबाव का अर्थ है कि इस्तेमाल के लायक साफ पानी की मात्रा तेजी से घट रही है जबकि पानी की ज़रूरतें तेजी से बढ़ रही हैं)।

ग्लोबल कमीशन ऑन इकोनॉमिक्स ऑफ़ वाटर ने आज “टर्निंग द टाइड: ए कॉल टू कलेक्टिव एक्शन” एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जो दुनिया को खतरे के प्रति सचेत करती है।

ये रिपोर्ट विश्व को बढ़ते वैश्विक जल संकट के बारे में बताती है और उन कार्रवाइयों के निर्धारित किये जाने की बात करती है जिन्हे सामूहिक रूप से तुरंत लागू किया जाना चाहिए। जिसकी नाकामयाबी क्लाइमेट एक्शन और संयुक्त राष्ट्र के सभी सतत विकास लक्ष्यों की नाकामयाबी को उजागर करती है।

जल संकट ग्लोबल वार्मिंग और जैव विविधता के नुकसान से बंधा हुआ है, जो खतरनाक रूप से एक दूसरे को मजबूत कर कर रहे हैं। इंसानी सरगर्मियां बारिश के पैटर्न को बदल रही हैं, जो सभी स्वच्छ पानी के स्रोत हैं, जिसकी वजह से पूरी दुनिया में पानी की आपूर्ति में बदलाव हो रहा है। “पानी के बिना जलवायु परिवर्तन का हर नजरिया अधूरा है।” ये कहना है जोहान रॉकस्ट्रॉम का, जो पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के डाइरेक्टर और कमीशन के सह-अध्यक्ष हैं।

“मानव इतिहास में पहली बार वायुमण्डलीय जल के संघनित होकर किसी भी रूप में पृथ्वी की सतह पर वापस आने वाले स्वच्छ पानी के स्रोत पर भरोसा नहीं कर सकते।

हम पूरे ग्लोबल हाइड्रोलॉजिकल चक्र को बदल रहे हैं।” मिसाल के तौर पर वह जलवायु को लेते हैं। ग्लोबल वार्मिंग का प्रत्येक 1°C में जल चक्र का लगभग 7% नमी शामिल होती है। ज़्यादा से ज़्यादा चरम मौसम की घटनाओं ये सुपरचार्ज करने के साथ और तेजी से करने में बढ़ावा देता है‘’

2019 में भारत को पानी की कमी का सामना करने के मामले में विश्व स्तर पर 13वां स्थान दिया गया था, और तब से यह रेटिंग केवल बढ़ी ही है।जलवायु परिवर्तन के अलावा क़ायदे क़ानून की पाबंदीगी को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाना देश में पानी की क़िल्लत को और बढ़ा रहा है। उद्योग, कृषि, ताप विद्युत उत्पादन और शहरी केंद्रों में दिन ब दिन इस्तेमाल हो रहे पाने की बढ़ता जा रहा उपयोग भारत में पाने की क़िल्लत होने में योगदान देता है और उसे उच्चतम जल-तनावग्रस्त देशों में से एक बनाता है ।

भारत में उपलब्ध पानी की आपूर्ति 1100- 1197 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) के बीच है । इसके विपरीत, पानी की मांग 2010 में 550-710 बीसीएम से बढ़कर 2050 में लगभग 900-1400 बीसीएम होने की उम्मीद है। ऐसे में ज़्यादातर शहरी क्षेत्रों में 222 मिलियन से अधिक भारतीय पानी की गंभीर कमी का सामना करेंगे । (जल तनाव का मतलब है कि इस्तेमाल करने लायक़ या स्वच्छ पानी की मात्रा तेजी से कम हो रही है जबकि पानी की आवश्यकताएं हैं घातीय रूप से बढ़ रहा है)।

सेन्ट्रल इंडिया का एक हालिया अध्ययन जिसमे आमतौर पर गंगा और नर्मदा नदी को पानी से समृद्ध माना जाता है, पानी के स्ट्रेस के बढ़ते अनुभवों को दर्शाता है। जानकारी से पता चलता है कि प्रति वर्ष चार महीने और अधिक के लिए, लैंडस्केप का 74% पानी के स्ट्रेस का अनुभव कर रहा है और शहरी केंद्र वर्ष के अधिकांश हिस्से में इसका अनुभव कर रहे हैं।

इसके अलावा, वाटर स्ट्रेस से स्तर और जनसँख्या प्रभावित हुई है जिसने परिस्थितियों को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है, स्वच्छ गंगा मिशन इसका एक उदाहरण है।

भारत में जल संकट के बारे में ऐसी मालूमात कोई नई नहीं है। हर गर्मियों में पानी की कमी और शहरों में पानी की बढ़ती कीमतों की खबर और यहां तक कि गांवों में वाटर सप्लाई के लिए पानी की गाड़ियां भेजने की खबर आती है।

ये भी पढ़ें-कामर्शियल टैक्स रिटायर्ड ऑफिसर्स एसोसिएशन का होली मिलन समारोह

ये भी पढ़ें-एक MMS और बर्बाद हो गया पूरा करिअर, मशहूर भोजपुरी एक्ट्रेस का छलका दर्द

भारत जिस संवृद्धि और विकास को प्राप्त करना चाहता है, उसके प्रदूषण और अपशिष्ट जल नियमों के ठोस कार्यान्वयन और कृषि और उद्योग में पानी की खपत के संरक्षण के लिए अधिक मजबूत उपाय होने तक ये सीमित रहेंगे।

 

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com