Saturday - 6 January 2024 - 8:09 AM

तुम्हारा पोस्टर हमारा पोस्टर

शबाहत हुसैन विजेता

नयी उम्र के लोगों ने मुनादी नहीं सुनी होगी। पुराने दौर में मुनादी बड़ा कारगर तरीका हुआ करती थी। ढोल नगाड़ों से भीड़ जमा कर लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का जरिया हुआ करती थी मुनादी। सरकार को किसी फरार मुजरिम को पकड़ना होता था या फिर अदालत किसी की कुर्की का ऑर्डर करती थी तो उस इलाके में ढोल नगाड़ों से मुस्तैद लोग पहुंचते थे।

सुनो-सुनो-सुनो, अदालत का यह हुक्म है कि इस इलाके में रहने वाले फलां शख्स को इस जुर्म का जिम्मेदार ठहराया गया है। जो भी कोई इस शख्स से मतलब रखेगा या उसकी मदद करेगा उसे भी शरीक-ए-जुर्म माना जायेगा। आप सभी को आगाह किया जाता है कि इस शख्स को जैसे ही देखा जाए इलाके की पुलिस को बता दिया जाए। ऐसा न करने वाले को भी कानूनन सज़ा दी जाएगी।

मुनादी लोगों के ज़ेहनों में सिहरन दौड़ा देती थी। दौर बदला तो मुनादी की जगह पोस्टर ने ले ली। पोस्टर के ज़रिए लोगों तक सूचनाएं पहुंचाई जाने लगीं। फरार बदमाशों की तस्वीरें रेलवे स्टेशन से लेकर चौराहों और घरों की दीवारों पर लगाई जाने लगीं। इलेक्शन के दौर में पोस्टर वार का दौर आया। एक पोस्टर पर दूसरा पोस्टर चस्पा किया जाने लगा। इलेक्शन खर्च घटाने के मकसद से इलेक्शन कमीशन ने प्राइवेट दीवारों पर पोस्टर लगाने को जुर्म बताते हुए पोस्टर पर रोक लगा दी।

बदले दौर में पोस्टर यज्ञ, जागरण और मजलिस तक सीमित हो गए। पॉलिटिकल पोस्टर की जगह होर्डिंग ने ले ली। होर्डिंग बदले दौर में बिजनेस का जरिया बन गई। नगर निगम में होर्डिंग लगाने का टैक्स जमा करने का दौर आ गया। जिन घरों की छतों पर होर्डिंग लगती है उन घरों पर नगर निगम का अमला नज़र रखता है और उनसे बाकायदा टैक्स वसूली करता है। सरकारी योजनाएं भी होर्डिंग की शक्ल में चौराहों पर नज़र आती हैं। बड़े नेताओं को बधाई संदेश वाली होर्डिंग अब बहुत आम हो चुकी हैं। सरकार होर्डिंग के ज़रिए ही बताती है कि उसने जनहित में कौन-कौन से काम अंजाम दिए हैं।

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मुल्क की एक बड़ी आबादी सड़कों पर उतर आई। आधी आबादी ने जगह-जगह धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया। इस कानून के वापस होने तक अपने घरों को न लौटने का एलान कर दिया। दिल्ली के शाहीनबाग से लेकर लखनऊ के घण्टाघर तक आधी आबादी ने अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी। इसी बीच कई शहरों में उपद्रव शुरू हो गए। आगज़नी हुई, पथराव हुआ, लोगों की जानें गईं, थाने फूंके गए, गाड़ियां तोड़ी गईं।

उपद्रव से नाराज़ यूपी सरकार ने नुकसान की भरपाई उपद्रव करने वालों से ही करने का फ़ैसला किया। सरकार ने पुलिस के ज़रिए लोगों की पहचान कराई और सड़कों पर होर्डिंग लगाकर नुकसान की भरपाई का एलान कर दिया। होर्डिंग से नाराज़ हाईकोर्ट ने इसे सरकार का गलत फैसला बताते हुए होर्डिंग उतारने का हुक्म सुना दिया। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट को सही ठहरा दिया तो सरकार ने आनन-फानन में कैबिनेट की बैठक बुलाकर एक अध्यादेश पारित कर दिया और होर्डिंग न उतारने की बात पर अड़ गई।

सरकार और अदालत के बीच होर्डिंग और पोस्टर को लेकर टकराव शुरू होने के बाद समाजवादी पार्टी ने बीजेपी के बलात्कारी नेताओं की तस्वीरों वाले होर्डिंग उन्हीं सरकारी होर्डिंग के पास लगा दीं। पुलिस ने बीजेपी नेताओं के होर्डिंग उतार दिए तो कांग्रेस ने मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पर दर्ज मुकदमों वाले होर्डिंग लगाकर माहौल को गर्म कर दिया। पुलिस ने यह होर्डिंग भी फौरन उतार दिए लेकिन सोशल मीडिया पर यह होर्डिंग वायरल होते देर नहीं लगी।

यह भी पढ़ें : सिंधिया समर्थक विधायकों ने वीडियो जारी कर जताई खतरे की आशंका

सरकार के आदेश पर कांग्रेस नेता सुधांशु वाजपेयी को पोस्टर लगाने के जुर्म में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। सुधांशु के जेल जाने पर माहौल गर्म है कि पोस्टर लगाना जुर्म है तो क्या सरकार ने भी जुर्म किया था। सरकार ने जुर्म किया था तो फिर जुर्म के समर्थन में अध्यादेश क्यों लाई सरकार? और इस अध्यादेश पर अदालत का रुख क्या होगा?

उत्तर प्रदेश में छिड़े पोस्टर वार में तू डाल-डाल तो मैं पात-पात वाली स्थिति बन गई है। सुधांशु को जेल भेजे जाने से सियासत गर्म है। सरकारी और गैर सरकारी होर्डिंग को लेकर बयान बाज़ी तेज़ है।

सवाल यह है कि अगर पोस्टर लगाना जुर्म है तो फिर सरकार जुर्म में भागीदार क्यों बन रही है। पोस्टर तो पोस्टर है वह सरकार लगाए या विपक्ष क्या फ़र्क़ पड़ता है। डेमोक्रेसी की तो यही खूबसूरती है कि जनता भी सरकार की आंखों में आंखें डालकर उससे सवाल कर सकती है। पोस्टर पर सिर्फ यह बहस हो सकती है कि किसका पोस्टर सही है और किसका गलत। अदालत तो जुर्म देखकर फैसला करती है। मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के खिलाफ पोस्टर में जी इल्ज़ाम हैं उनकी समीक्षा की जानी चाहिए। अगर यह इल्ज़ाम झूठे हैं तो पोस्टर लगाने वालों को अदालत के सामने पेश किया जाना चाहिए। सरकार की छवि धूमिल करने को लेकर जो सज़ा कानून में होगी अदालत उसके हिसाब से सजा तय करेगी लेकिन पुलिस को यह हक किसने दिया कि जुर्म साबित होने से पहले किसी की बेरहमी से पिटाई करे फिर उसे जेल भेज दे। डॉ. निर्मल दर्शन ने अपने एक शेर में कई साल पहले व्यवस्था को आइना दिखाया था:- मुझको पहले सज़ा दी गई, फिर अदालत में लाया गया।

पोस्टर वार को लेकर सड़कों पर छिड़ी जंग के दौर में यह ज़रूरी हो गया है कि अदालत यह स्पष्ट करे कि डेमोक्रेसी में जनता के क्या-क्या अधिकार हैं? डेमोक्रेसी में सरकार का विरोध करने पर किसी नागरिक को पीटते हुए जेल ले जाना क्या पुलिस का अधिकार है? पोस्टर सरकार ने भी लगाए और विपक्ष ने भी यही काम किया। जब दोनों का काम एक जैसा है तो दोनों के साथ रवैया भी एक सा अपनाया जाना चाहिए। अदालत के आदेश के बाद भी सरकार जब पोस्टर लगाना गलत नहीं मानती तो विपक्ष के पोस्टर को किस हक से उतारती है? किस हक से सरकार पोस्टर लगाने वाले को जेल भेजती है।

लोकतंत्र जब जनता के द्वारा जनता के शासन की नींव रखता है तो उस नींव पर राजतंत्र की इमारत नहीं खड़ी की जा सकती। नियम एक जैसे हों। सरकार के नियम अलग और जनता के नियम अलग यह नहीं चलेगा। हमारा पोस्टर सही तुम्हारा गलत यह भी नहीं चलेगा। हम अदालत की नहीं मानेंगे और जो हमारी नहीं मानेगा उसे जेल भेजेंगे। यह कैसे चलेगा?

सरकार को सोचना होगा कि खुद के खिलाफ लगे पोस्टर के इल्जाम में जिसे जेल भेजा गया है उसे भी तो उसी अदालत के सामने ही पेश करना होगा जिस अदालत ने उससे पोस्टर हटाने को कहा था। अदालत से सरकार किस नियम के तहत सज़ा का अनुरोध करेगी। क्या सरकार पोस्टर लगाने के जुर्म में जेल भेजे गए शख्स के मामले की सुनवाई भी खुद ही कर लेगी? डेमोक्रेसी में कानून का राज बचा रह पाएगा या नहीं इस सवाल का जवाब इस पोस्टर वार के अंजाम से ही निकलेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

यह भी पढ़ें : योगी के फोन के बाद अखिलेश ने लिया बड़ा फैसला

यह भी पढ़ें : सैनिटाइजर नहीं साबुन से भी हो जाएगा कोरोना का खात्मा

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com