मल्लिका दूबे
गोरखपुर। अपना संसदीय गढ़ बचाने के लिए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ इस चुनाव में जबरदस्त कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं। अपने चुनावों में जितनी मेहनत करते थे, उसके अधिक पसीना उन्हें अपनी परंपरागत सीट पर भाजपा प्रत्याशी के लिए बहाना पड़ रहा है। भाजपा प्रत्याशी, भोजपुरी फिल्म स्टार रवि किशन शुक्ला के लिए अपनी पुरानी चुनावी टीम को लगा देने के बाद भी उनके सामने दिख रही समीकरणों की चुनौती परेशान कर रही है।
समीकरणों की जंग में ‘मास’ को रिझाने के लिए योगी ने ‘क्लास’ पर अधिक फोकस किया है। गोरखपुर में छात्र सम्मेलन-शिक्षक सम्मेलन, खिलाड़ी सम्मेलन, पार्षद, पूर्व पार्षद और पार्षद प्रत्याशियों का सम्मेलन कर चुके योगी अब बुद्धिजीवियों का अलग सम्मेलन करने जा रहे हैं। अलग-अलग वर्गों के साथ सम्मेलन-बैठक कर योगी जातीय समीकरणों में वर्गवार अपनी पैठ बढ़ाने में दिनरात एक कर रहे हैं।
अलग-अलग वर्गों के सम्मेलन की रणनीति
गोरखपुर लोकसभा के उप चुनाव का परिणाम योगी और भाजपा को लगातार टीस रहा है। उप चुनाव में जातीय समीकरणों की जुटान में शिकस्त खा चुकी भाजपा के लिए योगी के गढ़ का चुनाव बेहद प्रतिष्ठापरक है। योगी आदित्यनाथ की परंपरागत सीट होने के चलते इस सीट पर पूरे देश की नजर है।
योगी खुद यहां भाजपा के टिकट पर लगातार पांच बार सांसद चुने गये थे इसलिए भाजपा से अधिक इस सीट पर योगी की प्रतिष्ठा दांव पर है। उप चुनाव में मिले सबक से योगी एक-एक कदम फूंक-फूंक कर आगे बढ़ा रहे हैं।
इस चुनाव मे उनकी रणनीति अलग-अलग वर्गों के लोगों के सम्मेलन के बहाने उन्हें भाजपा के पक्ष में लामबंद करने की है। इस कड़ी में वह छात्र सम्मेलन, शिक्षक सम्मेलन, खिलाड़ी सम्मेलन के साथ पार्षदों, पूर्व पार्षदों और पार्षद प्रत्याशियों के साथ भी तैयारी बैठक कर चुके हैं। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि वह इन वर्गों जिसमें सभी जातियों के प्रतिनिधि हैं, को साधकर भाजपा को मजबूत स्थिति में लाने के लिए बेचैन हैं।
क्यों आयी ऐसी नौबत
योगी जब खुद सांसद प्रत्याशी होते थे तो गोरक्षपीठ से जुड़ी जन सामान्य की आस्था चुनाव में सबसे मजबूत फैक्टर होती थी। उप चुनाव में योगी प्रत्याशी नहीं थे तो योगी के साथ रहा ‘मास’ बिखरा और यहां का परिणाम पूरी दुनिया ने देखा। उप चुनाव जैसी स्थिति न हो, इसलिए योगी की नई रणनीति सामने आयी है।
टीवी जर्नलिस्ट राजन चौधरी मानते हैं कि अलग-अलग वर्गों के सम्मेलन से यह बात साफ हो जाती है कि योगी अपने गढ़ में अब परेशान नजरू आ रहे हैं। बकौल चौधरी, इतनी मेहनत तो योगी आदित्यनाथ ने कभी खुद अपने चुनाव के लिए नहीं की थी।
मास को सहेजने के लिए क्लास में उनकी दस्तक उनकी घबराहट का ही परिणाम है। भोजपुरी के ख्यातिलब्ध साहित्यकार मुकेश श्रीवास्तव मानते हैं कि उप चुनाव ने योगी को एक-एक वोट के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया है। एक तो प्रत्याशी को जनता के बीच कबूल करवाना चुनौतीपूर्ण है।
इसके पहले क्लास के सम्मेलनों की इतनी आवश्यकता नहीं हुई थी। प्रत्याशी को जनता अभी तक अभिनेता ही मान रही है। उसे नेता और सशक्त प्रत्याशी के रूप में स्वीकार्यता दिलाने के लिए योगी को इतनी मेहनत करनी पड़ रही है।
जातीय समीकरणों को तोड़ पाना बेहद चुनौतीपूर्ण
उप चुनाव के परिणाम को आधार मानते हुए वर्तमान चुनाव का जमीनी आकलन करें तो निषाद बाहुल्य इस संसदीय क्षेत्र में गठबंधन के निषाद प्रत्याशी ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। सपा-बसपा के जातीय वोट बैंक में सेंधमारी की चुनौती भी सामने है। निषाद, यादव, मुस्लिम वोटों में सेंध लगाना आसान नहीं है। इसके साथ ही कांग्रेस ने यहां ब्राह्मण प्रत्याशी उतारकर भाजपा की राह में कांटे बिखेर दिए हैं।
परंपरागत तौर पर बीजेपी ब्राह्मणों को अपना वोट बैंक मानती है लेकिन इस चुनाव में ब्राह्मणों के सामने उनकी ही बिरादरी का प्रत्याशी देकर कांग्रेस ने एक विकल्प भी दे दिया है। कांग्रेस प्रत्याशी की बढ़त जितनी होगी, बीजेपी के लिए मुश्किलें और बढ़ती जाएंगी।
‘क्लास’ के सम्मेलनों से कितना सधेगा ‘मास’
दीगर सवाल यह है कि ‘क्लास’ के सम्मेलनों से योगी भाजपा प्रत्याशी के लिए ‘मास’ को कितना साध पाएंगे। यह सवाल इसलिए भी गंभीर है कि अब तक जो भी सम्मेलन या तैयारी बैठकें हुई हैं, उसमें वहीं छात्र, शिक्षक, खिलाड़ी या पार्षद-पार्षद प्रत्याशी नजर आये हैं जो पहले से बीजेपी के लिए काम करते रहे हैं या बीजेपी के समर्थक हैं।
इन सम्मेलनों में उस क्लास के जनरल लोग कम ही नजर आये हैं। अब ऐसे क्लास के लोग अपने वर्ग में बीजेपी को कितनी बढ़त दिला पाएंगे, इसका आकलन चुनाव परिणाम ही तय करेगा।