Friday - 12 January 2024 - 6:44 PM

बिगड़ैल नेताओं से किनारा क्यों नहीं कर रही बीजेपी


प्रीति सिंह

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चुने जाने पर स्वतंत्रदेव सिंह ने कहा था कि भाजपा में बूथ कार्यकर्ता भी अध्यक्ष बन सकता है। ऐसा बयान अक्सर बीजेपी नेता देते रहे हैं। उनका कहना भी सही है, क्योंकि बीजेपी किसी खास परिवार की पार्टी नहीं है। अन्य पार्टियों और बीजेपी में यही अंतर है कि यहां बूथ कार्यकर्ता भी अपनी मेहनत और पार्टी निष्ठा के बदौलत अध्यक्ष बन जाता है और बाकी अन्य पार्टियों में वंशवाद चलता है।

बीजेपी अपने अनुशासन और निष्ठा की वजह से पूरे देश में भगवा फहराने में कामयाब हुई है। यह निष्ठा और अनुशासन, बूथ कार्यकर्ता से लेकर अध्यक्ष पद पर बैठे व्यक्ति में होती है। कहा जाता है कि जिनके अंदर ये खूबी नहीं होती भारतीय जनता पार्टी उससे किनारा कर लेती है। यदि ऐसा है तो सवाल उठता है कि बीजेपी अपने उन बिगड़ैल नेताओं से किनारा क्यों नहीं कर रही, जिनकी वजह से पार्टी की फजीहत होती है।

भारतीय जनता पार्टी में कई ऐसे नेता है जिन्होंने अपने विवादित बयान से पार्टी की फजीहत कराई। कई तो आज भी करा रहे हैं। पिछले दिनों भोपाल से बीजेपी सांसद प्रज्ञा ने मोदी के सबसे महत्वपूर्ण अभियान स्वच्छ भारत अभियान का माखौल उड़ाया। उन्होंने सीधे तौर पर मोदी पर तंज कसा, लेकिन अब तक उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं हुई। बस हाईकमान ने उन्हें मौन  व्रत रखने का फरमान सुना दिया है।

22 जुलाई को बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जब प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी आफिस बुलाकर डांटा-फटकारा लेकिन इसके आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रज्ञा को पहली बार चेतावनी नहीं मिली है। अब तो शायद उनके आचरण में आ चुका है।

मालेगांव ब्लास्ट में आरोपी और भोपाल की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर अपने विवादित बयान से बीजेपी ही नहीं पूरे देश को शर्मिन्दा कर चुकी हैं। फिर भी बीजेपी उनके खिलाफ कार्रवाई करने से बचती रही है। महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताकर प्रज्ञा ने विवाद खड़ा कर दिया था। मुंबई बम ब्लास्ट में शहीद हुए एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के खिलाफ उन्होंने विवादित बयान दिया था, लेकिन इस मामले में क्या हुआ किसी को नहीं मालूम।

प्रज्ञा की जगहंसाई के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दस दिनों के अंदर बीजेपी अनुशासन समिति को कार्रवाई करने को कहा था । पीएम मोदी ने प्रचार के दौरान कहा था वे कभी दिल से प्रज्ञा को माफ नहीं कर पाएंगें। अनुशासन समिति की रिपोर्ट पर अब तक कोई कारवाई नहीं हुई है।

प्रज्ञा सिंह ठाकुर, आकाश विजय वर्गीय, अनंत हेगड़े, नलिन कुमार कटील, साक्षी महाराज, साध्वी निरंजन ज्योति सहित कई नाम हैं जिनका विवादों से पुराना नाता रहा है। इन लोगों के बयान की वजह से पार्टी बैकफुट पर आई लेकिन पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की।

दो माह में तीन मामले भेजे गए अनुशासनात्मक समिति के पास

पिछले दो महीने में बीजेपी अनुशासनात्मक समिति के पास तीन मामले कारवाई के लिए भेजे गए। तीनों मामलों की रिपोर्ट अनुशासन समिति ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को सौंप दी है पर कारवाई का अब भी इंतज़ार है।

इन तीनों मामलों में पहला मामला बीजेपी सांसद प्रज्ञा, दूसरा उत्तरी कन्नड़ से सांसद अनंत हेगड़े और तीसरा दक्षिण कन्नड़ से भाजपा सांसद नलिन कुमार कटील का लोकसभा चुनाव के दौरान नाथूराम गोडसे की तारीफ करने से जुड़ा है।

अगर पिछले पांच साल की बात करें तो अनुशासनहीनता के 11 बड़े मामलों में केवल एक कीर्ति झा आजाद के मामले में ही बीजेपी ने कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित किया है। बाकी मामलों में नेताओं को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। आइये जानते हैं पिछले पांच साल में कितने नेताओं का मामला बीजेपी अनुशासन समिति के पास गये और उनका क्या हुआ।

आकाश विजयवर्गीय

बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजयवर्गीय का किस्सा तो हर जबान पर था। आकाश का नाम ही बल्लामार विधायक पड़ गया है। आकाश की करतूत पर पीएम ने नाराजगी तो जताई लेकिन कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई। पीएम मोदी की नाराजगी के बाद भी मध्य प्रदेश ईकाई ने आकाश विजयवर्गीय पर अब तक कोई कारवाई नहीं की है। इस मामले में तो राज्य अनुशासन समिति ने आकाश को नोटिस तक जारी नहीं किया।

नलिन कुमार कटील

कर्नाटक से सांसद रहे कटील ने कहा था कि गोडसे ने एक आदमी को मारा था, कसाब ने 72 आदमी को मारा था और राजीव गांधी ने 17,000 को मारा तो बताएं कौन सबसे ज़्यादा निर्दयी था? उनका मामला भी अनुशासन समिति के पास भेजा गया था।

भाजपा अनुशासन समिति इनकी फाइल अमित शाह को सौंप चुकी है। अब इस पर फैसला पार्टी हाईकमान को करना है।

अनंत हेगड़े

पिछली मोदी सरकार में मंत्री रहे उत्तरी कर्नाटक के अनंत हेगड़े ने भी चुनाव प्रचार के दौरान ट्वीट किया था कि सात दशक के बाद नाथूराम गोडसे की आत्मा ख़ुश हो रही होगी कि देश के बदले माहौल में उनका केस लड़ा जा रहा है। उनका मामला भी अनुशासन समिति को भेजा गया था।

साक्षी महाराज

साक्षी महाराज का विवादों से पुराना नाता रहा है। वह अपने विवादित बयान की वजह से कई बार पार्टी की फजीहत करा चुके
हैं, लेकिन पार्टी उनके मोह से आज तक नहीं ऊबर पाई।


2014 में मोदी सरकार के बनते ही साक्षी महराज ने मोदी सरकार की फजीहत कराई थी। उन्होंने नाथू राम गोडसे को राष्ट्रभक्त करार देते हुए कहा था, ‘गोडसे देशभक्त थे।’  इस बयान के बाद संसद का शीतकालीन सत्र एक सप्ताह तक नहीं चल सका था। हालांकि बाद में वेंकैया नायडू के कहने पर साक्षी महराज ने माफी मांगी पर उनके खिलाफ कोई कारवाई नहीं हुई। इसके अलावा भी साक्षी कई विवादित बयान दे चुके हैं।

साध्वी निरंजन ज्योति

साध्वी निरंजन ज्योति का विवादों से चोली-दामन का साथ है। वह बिना बोले रह नहीं सकती। उन्हें पार्टी की गरिमा और अनुशासन से कोई लेना-देना नहीं होता।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री रही निरंजन ज्योति ने 2014 के दिसंबर में दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए कहा था कि ‘आपको रामजादो (राम से जन्मे )और हरामजादों के बीच में किससे चुनना है इसका फैसला करना है।’ 

इस मामले में बीजेपी की खूब फजीहत हुई। इस मामले में उन्होंने माफी मांगी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इनका मामला भी अनुशासन समिति में भी गया है लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। यहां तक कि वे पहले और दूसरे कार्यकाल में मंत्रिमंडल में बरकार रहीं।

यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा

 

बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा ने तो मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान नोटबंदी से लेकर जीएसटी, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार, अर्थव्यवस्था की खास्ता हालात से लेकर रोजगार के संकट जैसे मुद्दों पर इन दोनों नेताओं ने सरकार की लगातार किरकिरी कराई पर पार्टी उनके खिलाफ कारवाई से बचती रही।  हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले शत्रुघ्न सिन्हा ने खुद बीजेपी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर लिया।

कीर्ति आजाद

कीर्ति आजाद ने 2015 में पिछली सरकार में वित्त मंत्री रहे अरूण जेटली पर दिल्ली क्रिकेट अकादमी में 400 करोड़ के अनियमितता का आरोप लगाया था, जिस पर पार्टी ने कीर्ति पर कारवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया था। ऐसी चर्चा थी कि अरूण जेटली के दबाव में पार्टी को ऐसा फैसला लेना पड़ा था।

कीर्ति आजाद ने लोकसभा चुनाव से पहले फरवरी 2019 में कांग्रेस में शामिल हो गए। केन्द्रीय बीजेपी ने पिछले पांच साल में अनुशासनहीनता पर यही एक बड़ी कारवाई की।

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