Thursday - 11 January 2024 - 6:19 AM

फतेहपुर नरसंहार जैसी घटनाओं का असल जिम्मेदार कौन

यशोदा श्रीवास्तव

यूपी के देवरिया जिले के रूद्रपुर तहसील क्षेत्र के ग्राम फतेहपुर की घटना एक बड़ी और दुस्साहसी अपराध है जिसे होने देने में पुलिस और तहसील प्रशासन का बड़ा आपराधिक योगदान है। जैसा कि खबर आई है कि नौ बीघे जमीन के मालिकाना हक को लेकर कई बार यादव परिवार और दूबे परिवार के बीच विवाद हुआ, मामला निश्चित ही थाने तक गया होगा और तहसील में भी इसकी शिकायत लंबित बताई जा रही है, दोनों ओर से लगातार अनदेखी का नतीजा है फतेहपुर का नरसंहार!

प्रथमदृष्टया घटना के पीछे फतेहपुर गांव वासी सत्य प्रकाश दूबे के भाई ज्ञान प्रकाश दूबे के हिस्से की वह नौ बीघा खेत है जिसे उसने गांव के प्रधान रहे प्रेम यादव के नाम कर दिया था। खेत खरीदने के बदले ज्ञान प्रकाश को 21 लाख रुपए दिया जाना बताया जा रहा है और यह भी कि यह रकम ज्ञान प्रकाश दूबे के बैंक अकाउंट में नहीं पंहुचा।

यह 21 लाख रुपए जो ज्ञान प्रकाश दूबे को मिलना था,उसकी जांच की जा रही है कि यह रकम ज्ञान प्रकाश दूबे को मिली या नहीं। हैरत है यह जांच तब की जा रही है जब ज्ञान प्रकाश दूबे द्वारा ऐसी कोई शिकायत की ही नहीं गई है। जाहिर है इसके पीछे प्रेम यादव को दबंग व मनबढ़ साबित करना है जबकि यह दो भाइयों के झगड़े के बीच एक भाई का जमीन लिखवा लेने से ही साबित है कि खरीददार प्रेम यादव दबंग था।

दूबे परिवार के घर के निकट ही प्रेम की हत्या हुई लेकिन यह हत्या क्या दूबे परिवार ने की? इसे लेकर सवाल जवाब और चर्चाओं का बाजार भी गर्म है। प्रेम यादव की हत्या की खबर से उसका परिवार,हित मित्र,सगे संबंधी सहित करीब सौ लोगों ने दूबे परिवार पर धावा बोलकर पांच लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस तरह नौ बीघे जमीन को लेकर प्रेम यादव सहित कुल छः जाने देखते देखते चली गई।

जमीनी विवाद को लेकर पूर्वांचल का यह बड़ा नरसंहार था। फतेहपुर नरसंहार के बाद यादवों और ब्राह्मणों की राजनीति भी शुरू हो गई। ब्राह्मण नेताओं की ओर से घटना में मारे गए सत्य प्रकाश दूबे के बचे खुचे परिवार की रक्षा का दावा किया जा रहा है तो प्रेम यादव परिवार के पक्ष में समाजवादी पार्टी कूद पड़ी है। समाजवादी पार्टी का यह कदम राजनीतिक दृष्टि से उसके लिए घातक सिद्ध हो सकता है।

प्रेम यादव परिवार से हमदर्दी तो ठीक है लेकिन दूबे परिवार का नरसंहार कहां ठीक है। समाजवादी पार्टी यदि घटना के कारणों की जांच की मांग कर दोषियों को सजा देने की मांग करती तो अच्छा था। यह मांग सपा मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को करनी चाहिए थी।
खैर! सवाल यह उठता है कि प्रेम यादव और दूबे परिवार के इतर देवरिया जिले के फतेहपुर नरसंहार जैसी घटना के असल दोषी कौन है?

जाहिर जमीनी विवाद में ऐसी घटनाएं तभी होती है जब पक्षकारों को उचित पटल से त्वरित लाभ नहीं मिलता। वसीयत और विवादित जमीनों के क्रय विक्रय संबंधी अंग्रेजों के जमाने के कानून ऐसी घटनाओं की बड़ी वजह है। वसीयत के मामलों की यदि गहनता से जांच हो तो 90 प्रतिशत मामले ऐसे मिलेंगे जिसमें शराब पिलाकर,बहला फुसलाकर या बीमारी में जबरिया दस्तखत कराकर वसीयत कराने के मामले सामने आ सकते हैं।

किसी के जमीन जायदाद को हड़पने का वसीयत एक ऐसा ब्रह्मास्त्र है कि ऐसे मामले दीवानी न्यायालयों से भी खारिज हो जाते हैं। ऐसे में वैसी जमीनों का जो असल हकदार होगा वह क्या कुछ नहीं करने को मजबूर होगा,सहज ही इसकी कल्पना की जा सकती है। फतेहपुर गांव में संतानहीन भाई ज्ञान प्रकाश दूबे के चल अचल संपत्ति का वास्तविक हकदार स्व.सत्यप्रकाश दूबे का परिवार था।

हालांकि यह कानून नहीं है। कानूनन तो यह है कि अपने नाम की संपत्ति कोई भी जिसे चाहे बेच सकता है,वसीयत कर सकता है या जो चाहे कर सकता है। ऐसे मामले हर गांव में मिलेंगे। संपत्ति को लेकर भाई से भाई के झगड़े हैं,बाप का बेटा से है,पति का पत्नी से है। ऐसे झगड़े की तमाम श्रेणियां है। और ये झगड़े थाने से लेकर तहसील तक भरे पड़े हैं जहां इसे नजर अंदाज कर दिया जाता है या सौदेबाजी कर किसी अपात्र के पक्ष में निर्णय सुना दिया जाता है बिना यह सोचे कि इसका अंजाम क्या होगा?

सरकारों ने अपनी ही बनाई व्यवस्था, जिसे हम “तहसील दिवस और समाधान दिवस” के नाम से जानते हैं,की कभी समीक्षा नहीं की कि लाखों खर्च कर ऐसे आयोजनों से कोई लाभ है भी या नहीं? ऐसे आयोजनों पर अखबारों की बड़ी दिलचस्प हेडलाइन होती है कि”तहसील दिवस”में 75 मामले आए “तीन”निस्तारित! अरे भाई! बाकी 72 में ऐसा क्या था जो नहीं निस्तारित हो पाया? ऐसे मामले पटल दर पटल लटके ही रह जाते हैं। यही मामले आगे चलकर या कभी भी बड़ी घटना की वजह बन जाते हैं।

वसीयत के मामले में एक दिलचस्प वाकया यह है कि बलरामपुर जिले के एक गांव में विवाहित लड़की और उसके पति ने अपने बाप को ऐसा सम्मोहित किया कि बाप ने बेटे,बहू और पोते पोती का मुंह ताके बिना सारी संपत्ति अपने विवाहित बेटी के नाम कर दिया। उस नालायक बाप का बेटा अब तहसील और पुलिस थाने का चक्कर लगा रहा है।

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तहसीलदार वसीयत लिखा चुकी विवाहित लड़की के पक्ष में डटकर खड़ा है। यह है वसीयत की हकीकत और ताकत। कहना न होगा कि जमीन जायदाद को लेकर फतेहपुर जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कानूनों में कुछ बदलाव के साथ तहसील प्रशासन और पुलिस महकमे के पेंच कसने होंगे वरना इन दो महकमों की अदूरदर्शिता के चलते फतेहपुर जैसी घटनाओं को रोकना मुश्किल होगा।

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