Sunday - 7 January 2024 - 11:10 AM

Climate Change : दुबई में होने जा रहे महासम्मेलन का रास्ता है दिल्ली डिक्‍लेरेशन

डा. सीमा जावेद 

जलवायु परिवर्तन पर नवंबर के अंत में दुबई में आयोजित होने जा रहे महासम्मेलन(COP-28) का भावी रास्ता तय करने के लिए जी20 बैठक में जारी “दिल्ली डिक्‍लेरेशन’ एक जीवंत और महत्‍वाकांक्षी दस्‍तावेज है। इस दस्‍तावेज में अक्षय ऊर्जा को तीन गुना करने, ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने और क्लाइमेट फाइनेंस  को अरबों से खरबों तक ले जाने की वे सब बातें हैं जिन पर इस महासम्मेलन को फोकस करना है।

ग़ौरतलब है कि अब तक आईपीसीसी सहित जो भी रिपोर्ट आयी हैं उनसे ऐसा संकेत मिलता है कि ग्लोबल वार्मिंग  को लगभग 2.4 से 2.6 डिग्री तक कम करने की ज़रूरत  है।  अगर सिर्फ नेट जीरो के लक्ष्य पूरे होते हैं, तो यह हमें 1.7 से 1 2.1 डिग्री तक ले जाता है। साफ़ ज़ाहिर है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

क्‍लाइमेट ट्रेंड्स की आरती खोसला का मानना है कि इसमें जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जन को कम करने की समान महत्वाकांक्षा भी आंशिक रूप से अंतर्निहित है।’ वास्तव में इस पर बहुत कम कहा जाना बाकी है इसमें वह सब है जिसकी नेट जीरो और ऊर्जा रूपांतरण का लक्ष्‍य हासिल करने के लिए जरूरत है।‘

क्‍लाइमेट एनर्जी डिप्‍लोमेसी प्रैक्टिशनर मधुरा जोशी के अनुसार “2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का इरादा निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक निर्णय है। आगामी COP28 और उससे आगे के घटनाक्रमों से यह पता चलेगा कि इसे वास्तव में कैसे लागू किया जाएगा। इसमें इस बात के स्पष्ट संकेत थे कि तमाम देश वास्तव में जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से कम करने या समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध या तैयार नहीं हैं।‘

ज्ञात हो कि इससे पहले, सितंबर में जो  “ग्लोबल  स्टॉक टेक” रिपोर्ट आई थी उसमें साफतौर से कहा गया है कि दुनिया तापमान सम्‍बन्‍धी लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर नहीं है। इसमें महत्वाकांक्षा और कार्यान्वयन का अंतर दोनों ही हैं।

सीओपी28 में हम देखेंगे कि अक्षय ऊर्जा को तीन गुना करने पर कितना ध्यान केंद्रित किया जाएगा और उम्मीद है कि इस पर अधिक ध्यान दिया जाएगा कि इसका कार्यान्वयन कैसा दिखता है।

इंटरनेश्नल सोलर एलाइंस  के डायरेक्टर जनरल  अजय माथुर ने कहा कि , ‘‘वित्‍तीय क्षेत्र भले ही अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये ज्‍यादा ऋण उपलब्‍ध करा रहा हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोयले का इस्‍तेमाल पूरी तरह खत्म हो जाएगा। कोयले का प्रयोग जारी रहेगा। कोयला कम से कम वर्ष 2060 तक भारतीय उपयोग का एक बड़ा हिस्सा बना रहेगा। हालांकि उस वक्‍त तक कोयला आधारित बिजली परियोजनाएं इस हद तक खत्‍म हो चुकी होंगी कि आप साफ अक्षय ऊर्जा प्रणाली की तरफ बढ़ेंगे। हमारा वैश्विक लक्ष्‍य वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा को तीन गुना करने का है।  इस वर्ष उम्मीद है कि सौर ऊर्जा में 380 अरब डॉलर का निवेश किया जाएगा। यह वैश्विक स्तर पर बिजली उत्पादन व्यवसाय में पहले से कहीं अधिक निवेश होगा।“

ज्ञात हो कि इस धन का 74% हिस्‍सा ओईसीडी देशों को जाता है। पूरे अफ़्रीका को 3% या उससे कम मिलता है। ऐसे में यह बड़ा सवाल यह है कि हम यह कैसे सुनिश्चित करें कि अफ़्रीका को पर्याप्‍त धन मिले? निवेशकों को इस बात पर कम भरोसा है कि अगर वे अफ्रीका में निवेश करती हैं तो उन्हें अपने निवेश पर कोई मुनाफा मिलेगा।

टेरी के फेलो अजय शंकर का कहनाहै कि -, ‘‘भारत के लिए कोई नया थर्मल पॉवर प्‍लांट बनाने का कोई औचित्‍य नहीं है। बिजली की अतिरिक्त मांग को पूरा करने के लिए अक्षय ऊर्जा प्लस भंडारण अतिरिक्त बिजली उपलब्ध कराने का सबसे सस्ता तरीका है, इसलिए भारत को सस्ते विकल्प के रूप में कोयला या गैस आधारित कोई नया बिजली संयंत्र बनाने की जरूरत नहीं है। अगर हम इस तथ्य पर कायम रहें कि हम एक वैश्वीकृत दुनिया में हैं तो यह तथ्य सभी विकासशील देशों के लिए समान रूप से सच है। लिहाजा संपूर्ण विकासशील दुनिया में अतिरिक्त मांग को अक्षय ऊर्जा और भंडारण के जरिये पूरा किया जा सकता है”

इस बात में कोई शक नहीं की अगर सभी विकासशील देश  कोई नया थर्मल पावर प्‍लांट विकसित न करेतो हम उन  जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के बहुत करीब होंगे जिनकी इंसान को इस वक़्त  में जिंदा रहने के लिए जरूरत है।साथ ही अगर हमें जिंदा रहना है तो हमें औद्योगिक उत्पादों का उपयोग करना छोड़ना होगा जो जीवाश्म ईंधन के उपयोग से  बनाए जा रहे हैं। हम उने  बनाने के लिए हाइड्रोजन का इस्तेमाल  करने के तरीके खोजना होगा ।

कुल मिलाकर बात यह है कि  हम 100 साल पहले पेट्रोलियम आधारित उत्पादों के बिना रहते थे और हम अच्छी तरह से रहते थे, तो ऐसा नहीं है कि मानव जाति इसके बिना नहीं रह सकती। हम पेपर बैग, जूट बैग, कपड़े के बैग का उपयोग करते थे। वे सभी अब फिर से इस्‍तेमाल में वापस आ गये हैं।

Radio_Prabhat
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