Wednesday - 10 January 2024 - 3:05 PM

CAA के विरोध में चंद्रशेखर “रावण” की एंट्री से कौन डर रहा है ?

उत्कर्ष सिन्हा

20 दिसंबर को दिल्ली की जामा मस्जिद में प्रदर्शनकारियों के बीच बाबा साहेब की तस्वीर लहराकर विरोध जताते दलित यूथ आईकान चंद्र शेखर आजाद की तस्वीर ने सत्ता पक्ष के रणनीतिकारों के माथे पर चिंता की लकीरों को गहरा कर दिया है ।

नागरिकता कानून में संशोधन के बाद देश भर में उभरे असंतोष को एक पक्ष लगातार हिन्दू मुस्लिम रंग देने में लगा हुआ है , और दुर्भाग्यवश झारखंड की एक चुनावी सभा में भी खुद प्रधानमंत्री मोदी भी प्रदर्शनकारियों के कपड़ों के जरिए इसी तरह का संदेश देते नजर आए ।

इन विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में शामिल हो रहे गैर मुस्लिमों को दक्षिणपंथियों का एक समूह हमेशा की तरह सेक्युलर (हालाँकि  उनका इशारा कुछ नकारात्मकता लिए हुए होता है) कह कर अफसोस जताने में जुटा हुआ है , लेकिन इस बीच दलितों का एक बड़ा समूह जबसे विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ है तब से केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों के माथे पर चिंता की लकीरें गहराने लगी हैं ।

इस आंदोलन में दलितों का पक्ष ले कर के दौरान महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर प्रमुखता से शामिल रहे लेकिन बीते कुछ सालों में दलित यूथ आईकान के रूप में तेजी से उभरे चंद्रशेखर “रावण” की सक्रियता ने पूरे मामले को एक नया रंग दे दिया है ।

20 दिसंबर को चंदशेखर दिल्ली में रैली करने वाले थे मगर उन्हे परमीशन नहीं दी गई, इसके बाद 21 दिसंबर को उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया । चंद्रशेखर की इस गिरफ़्तारी ने उनके गढ़ पश्चिमी यूपी से ले कर बिहार तक असर दिखाया और बड़ी संख्या में दलित युवक नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरने लगे ।

यही से सत्ता पक्ष की चिंताएं शुरू हो गई ।

दरअसल चंद्रशेखर के नेतृत्व में लामबंद हो रहे दलितों की नाराजगी के असर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की चिंताएं बढ़ी हैं । संघ बीते करीब 6 सालों से दलितों के भीतर अपनी पैठ बनने की कोशिश में लगा हुआ है। संघ और भाजपा के नेता दलित बस्तियों में संपर्क बढ़ाने में लगे हैं और उनके साथ सहभोज कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं

यह भी सच है की हालिया दिनों में मायावती के रुख से दलितों के एक वर्ग में निराशा का माहौल है और वे मायावती से दूर हटते हुए भी नजर आते हैं। ऐसे में अगर यह समूह चंद्रशेखर के साथ आया तो दलित वोटों पर नजर गड़ाने वाली भाजपा के लिए मुश्किल होने वाली है ।

आइए संघ और भाजपा की चिंता के आधार को समझते है –

  • अपने नेताओं के बयानों के जरिए पूरे विरोध प्रदर्शन को हिन्दी बनाम मुस्लिम बनाने के नरेटिव को बड़ा धक्का लगेगा , विरोध प्रदर्शन में अगर दलितों का एक समूह शामिल होता है तो इसका रंग बदल जाएगा ।
  • इस विरोध प्रदर्शन के बहाने अगर दलित – मुस्लिम एकजुटता हो गई तो एक नया वोट बैंक आकार लेने लगेगा जिसका सीधा नुकसान भाजपा को होगा । इसका इशारा दिल्ली की जामा मस्जिद में प्रदर्शनकारियों के बीच बाबा साहेब की तस्वीर लहराकर विरोध जताते चंद्र शेखर आजाद की तस्वीर कर रही है।
  • यूपी में योगी सरकार बनने के बाद चंद्रशेखर लंबे समय तक जेल में रहे, जिसका गुस्सा दलित युवाओं में है। अब चंद्रशेखर ने अपनी पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है । इसका असर भी पड़ेगा।
  • दलितों का एक बड़ा वर्ग यूपी की योगी सरकार के दौरान हुए दलित उत्पीड़न की घटनाओं से भी नाराज है, भाजपा के कई बड़बोले नेता भी यदा कदा दलित विरोधी बयान देते रहे हैं। इन्ही वजहों से सावित्री बाई फूले ने भी अपनी संसद की सदस्यता और पार्टी छोड़ दी थी ।
  • चंद्रशेखर जिस तरह से बाबा साहब के बनाए संविधान से छेड़ छाड़ का आरोप लगा रहे हैं वह भी दलितों के बीच सरकार विरोधी माहौल बना रहा है।

कुल मिल कर बसपा के दलित वोटों में सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रही भाजपा को चंद्रशेखर के रुख से धक्का जरूर लगा है ।

दूसरी तरफ मायावती भी परेशान है । लंबे समय तक दलित वोट बैंक पर एक छत्र राज्य करने वाली मायावती पर भी चंद्रशेखर हमलावर हैं ।

नागरिकता संशोधन बिल राज्यसभा में पास होने के बाद चंद्रशेखर आजाद ने बसपा अध्यक्ष पर हमलावर होते हुए ट्वीट किया था- “बसपा के दो सांसद संविधान को बचाने की लड़ाई छोड़कर भाग गए और भाजपा की (नागरिकता (संशोधन) विधेयक में) मदद की। उन्होंने बीआर आंबेडकर, बसपा संस्थापक कांशीराम और बहुजन समाज (दलित समुदाय) के साथ छल किया है।”

चंद्रशेखर की चिंता से आगे भी चुनौतियाँ है । देश के आदिवासी चिंतकों का एक बाद समूह भी अब नागरिकता कानून के खिलाफ मुखर हो गया है । अगर यह समूह भी सक्रियता से जुड़ गया तो केंद्र सरकार के लिए मुश्किलें और बढ़ने वाली है ।

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