Wednesday - 7 August 2024 - 7:33 PM

नागरिकता बिल से पूर्वाेत्तर राज्यों को क्या है परेशानी?

न्यूज डेस्क

नागरिकता संसोधन बिल को लेकर घमासान मचा हुआ है। जहां संसद में संग्राम छिड़ा हुआ है वहीं सड़कों पर कोहराम मचा हुआ है, खासकर असम की सड़कों पर।

भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों खासकर असम में नागरिकता संसोधन बिल के खिलाफ लोगों का गुस्सा अब सड़क पर दिखने लगा है।

प्रदर्शन कर रहे लोग “आरएसएस गो-बैक” के नारे लगा रहे हैं, साथ ही अपने नारों में सत्ताधारी भाजपा को सतर्क कर रहे हैं। सड़कों पर उतरे ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के कार्यकर्ताओं ने इससे पहले इस बिल के खिलाफ मशाल जुलूस निकालकर अपना विरोध जताया। वहीं, स्थानीय कलाकार, लेखक, बुद्धिजीवी समाज और विपक्षी दलों के लोग अलग-अलग तरीकों से अपना विरोध जता रहे हैं।

इस नागरिकता बिल को लेकर सोशल मीडिया पर भी सैकड़ों की तादाद में लोग मुख्यमंत्री सोनोवाल के खिलाफ अपना ग़ुस्सा दिखा रहे हैं।

नागरिकता संशोधन विधेयक(Citizenship Amendment Bill) बिल शुरु से ही विवादों में रहा है। इसे संक्षेप में CAB भी कहा जाता है।

गृहमंत्री अमित शाह द्वारा 9 दिसंबर को सदन में नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 सदन में पेश करने के बाद ही ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के सदस्यों ने गुवाहाटी में पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल समेत भाजपा सरकार के कई नेता-मंत्रियों के पुतले फूंक कर अपना विरोध दर्ज किया।
असम के डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, धेमाजी, शिवसागर और जोरहाट जिले की कई जगहों पर लोगों का सोमवार से विरोध प्रदर्शन जारी है। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग को बाधित कर यातायात व्यवस्था ठप कर दी। इसके अलावा ट्रेनों की आवाजाही ठप करने और पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों के टकराव की भी खबरें हैं।

पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों के छात्र निकाय नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंटस ऑर्गनाइजेशन ने आज सुबह 5 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक पूर्वोत्तर राज्यों में बंद का आह्वान किया है।
राज्य के करीब 30 नागरिक संगठनों ने स्टूडेंटस ऑर्गनाइजेशन के इस बंद को अपना समर्थन दिया है। इस बीच, ऑल असम सूटीया स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन और ऑल असम मोरान स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ने 9 दिसंबर की सुबह से असम में 48 घंटे का बंद बुलाया है जिसका ऊपरी असम के करीब आठ जिलों में व्यापक असर देखने को मिल रहा है।

किस बात का है लोगों को डर?

पूर्वोत्तर राज्यों के स्वदेशी लोगों का एक बड़ा वर्ग इस बात से डरा हुआ है कि इस बिल के पारित हो जाने से जिन शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी उनसे उनकी पहचान, भाषा और संस्कृति खतरें में पड़ जाएगी। इसके अलावा इन लोगों का मानना है कि बीजेपी नागरिकता संशोधन बिल की आड़ में हिंदू वोट बैंक की राजनीति कर रही है।

नागरिक संसोधन बिल पर ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के मुख्य सलाहकार समुज्जवल भट्टाचार्य का कहना है कि पहले कांग्रेस ने बांग्लादेशी नागरिकों को सुरक्षा देने के लिए हम पर आईएमडीटी कानून थोपा था और अब भाजपा अवैध बांग्लादेशी लोगों को सुरक्षा देने के लिए हम लोगों पर नागरिकता संशोधन बिल थोप रही है। इन सबको बांग्लादेशियों का वोट चाहिए, लेकिन असम के लोग किसी भी कीमत पर इस बिल को स्वीकार नहीं करेंगे।

वहीं असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल, जो ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन से छात्र राजनीति की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचे, इस बिल पर हो रहे देशव्यापी आंदोलन पर कहते हैं-“हमारी सरकार ने कभी भी जाति को नुकसान नहीं पहुंचाया है और न ही कभी पहुंचाएगी।”

सोनोवाल ने कहा कि “हम असमिया जाति की सुरक्षा के लिए शुरू से काम कर रहे हैं। आप लोग हमारे काम को देख रहे हैं। मेरा कहना है कि ये लोग आंदोलन के जरिए असम का भविष्य नहीं बदल सकते।”

इस बिल को लेकर यहां के लोगों की चिंता जायज है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर नागरिकता संसोधन बिल लागू हो जाता है तो असमिया लोग अपने ही प्रदेश में भाषाई अल्पसंख्यक हो जाएंगे। सालों पहले असम में आकर बसे बंगाली बोलने वाले मुसलमान जो पहले अपनी भाषा बंगाली ही लिखते थे, असम में बसने के बाद असमिया भाषा को अपनी भाषा के तौर पर स्वीकार कर लिया।

असम राज्य में 48 प्रतिशत लोग असमिया भाषा बोलते हैं। अगर बंगाली बोलने वाले मुसलमान असमिया भाषा छोड़ देते हैं तो यह 35 फीसदी ही बचेंगे। जबकि असम में बंगाली भाषा 28 प्रतिशत है और कैब लागू होने से ये 40 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी।

विशेषज्ञों के मुताबिक यहां असमिया एकमात्र बहुसंख्यक भाषा है लेकिन कैब लागू होने के बाद यह दर्जा बंगाली लोगों के पास चला जायेगा।

इसके अलावा एक और चिंता का विषय है। कैब के लागू होने से यहां धार्मिक आधार पर राजनीतिक ध्रुवीकरण ज़्यादा होगा। स्थानीय और क्षेत्रीय मुद्दों की अहमियत घटेगी। बीजेपी और संघ के लोग हिंदू के नाम पर सभी लोगों को एक टोकरी में लाने के लिए शुरू से काम कर रहे हैं और काफी हद तक यहां सफल भी हुए हैं।

गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है। विधेयक पर चर्चा के बाद इसके पक्ष में सोमवार को 311 और विरोध में 80 मत पड़े। अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाना है। इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर मुस्लिमों को आसानी से नागरिकता मिल सकेगी। पूर्वोत्तर राज्यों के मूल निवासियों को डर है कि इन लोगों के प्रवेश से उनकी पहचान और आजीविका खतरे में पड़ सकती है।

हालांकि सरकार ने उन्हें आश्वस्त करने की कोशिश की है कि ऐसा नहीं होगा. गृह मंत्री अमित शाह के मणिपुर को इनर लाइन परमिट (आईएलपी) के दायरे में लाने की बात कहने के बाद राज्य में आंदोलन का नेतृत्व कर रहे द मणिपुर पीपल अगेंस्ट कैब (मैनपैक) ने अपना बंद रोकने की बात कही है।

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