Wednesday - 10 January 2024 - 3:31 PM

छद्म नायकों के इस दौर में असली हीरो हैं श्रीधर

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

भारत में हर साल हजारों युवा पढ़ाई पूरी करने के बाद गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और टेस्ला जैसी कंपनियों में काम करने के सपने के साथ अमेरिका जाना चाहते हैं और जाते भी हैं। लेकिन ऐसे कम युवा हैं जो विदेश में काम करने और नाम कमाने के बाद वापस अपने देश लौटकर आते हैं। लेकिन सिलिकॉन वैली में अपने दम पर कंपनी खड़ी कर नाम कमा चुके देश के एक बेटे श्रीधर वेंबु ने एक मिशाल पेश की है।

अमेरिकी कंपनी जोहो कॉरपोरेशन के संस्थापक श्रीधर वेंबु पूरी दुनिया में टेक एक्सपर्ट के तौर पर जाने जाते हैं। फोर्ब्स की लिस्ट में करीब $ 2.5 बिलियन डॉलर की वेल्यू रखने वाले सिलिकॉन वैली स्टार पिछले साल तमिलनाडु के तेनकासी गांव लौट आए, इन दिनों वह बच्चों को शिक्षित करने पर अपना पूरा समय लगा रहे हैं। वह ऐसी शिक्षा पर अपना फोकस रखना चाहते हैं जो नंबरों पर आधारित न होकर सिर्फ नॉलेज पर आधारित हो।

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Sridhar Vembu

53 साल के श्रीधर लॉकडाउन के अपने एक्सपीरिएंस को आगे ले जाने के लिए तैयार हैं। उनकी योजना एक ग्रामीण स्कूल स्टार्ट-अप की है, जो बच्चों को मुफ्त शिक्षा और भोजन देगा। उन्होंने कहा कि वह एक ऐसा मॉडल बनाना चाहते हैं, जिसमें डिग्री और नंबरों को महत्व नहीं दिया जाएगा।

श्रीधर के इस कदम की हर कोई सराहना कर रहा है। सोशल मीडिया पर यूजर्स उनकी तारीफ कर रहे हैं और उन्‍हें नायक की संज्ञा दे रहे हैं।

वरिष्‍ठ पत्रकार दीपक शर्मा ने अपने ट्वीटर एकाउंट पर श्रीधर की फोटो पोस्‍ट कर लिखा है कि झूठ, फरेब और मायूसी भरे माहौल में ये सज्जन मूड को बेहतर करने वाली खबर देते हैं। इनका नाम श्रीधर वेम्बू है। अमेरिका में $2.5 बिलियन की Zoho Corp स्थापित करने के बाद, श्रीधर आज तमिलनाडू के गॉंवो में बच्चों को बेहतर शिक्षा दे रहे हैं। छद्म नायकों के दौर में इसअसली हीरो को प्रणाम।

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उन्‍होंने अपने दूसरे ट्वीट में लिखा है कि अमेरिका के SFO से अपनी कम्पनी का मुख्यालय, श्रीधर तमिलनाडू के मथालम्पराई 👇ले आये। यहीं पर उन्होने सैकड़ों साफ्टवेयर इंजीनियरों को नोकरी दी और कम्पनी के मुनाफे का बड़ा हिस्सा बच्चों की शिक्षा पर खर्च किया। महंगी गाडी छोड़कर वे साईकिल पर चलने लगे। श्रीधर सचमुच में नायक हैं।

Sridhar Vembu

श्रीधर ने कहा कि बच्चों को शिक्षित करना उनके लिए अब एक अहम प्रोजेक्ट बन गया है, वह पार्ट टाइम टीचिंग कर रहे हैं, अब वह इसे एक मॉडल के रूप में विकसित करने की योजना बना रहे हैं, इसके लिए उन्होंने पेपर वर्क शुरू कर दिया है। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि उनका स्टार्टअप सीबीएसई और किसी भी पारंपरिक बोर्ड से संबंधित नहीं होगा।

 

यह प्रोजेक्ट वेम्बु के लिए कुछ नया नहीं है, पिछले दशक में उनकी जोहो कॉरपोरेशन का हिस्सा रही जोहो यूनिवर्सिटी ने उन्हीं की कंपनी में आईटी पेशेवरों और टीम लीडर्स के लिए कक्षा दस, ग्यारह और बारह को ड्रॉप आउट करके सफलता हासिल करने की दिशा में काम किया था।

गांव के आम लोगों का कहना है कि श्रीधर इन दिनों एक साधारण आदमी की तरफ पारंपरिक कपड़े पहने मथालमपराई में साइकिल पर घूमते हैं, और बच्चों को पढ़ाते हैं, वहीं श्रीधर ने कहा कि छह महीने पहले खाली समय में उन्होंने तीन बच्चों को दो-तीन घंटे घर पर ही ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया था, लेकिन अब उनके पास चार शिक्षक और 52 छात्र हैं, जिनमें ज्यादातर गांव के खेतिहर मजदूरों के बच्चे हैं, जिन्हें वह शिक्षित कर रहे हैं।

Sridhar Vembu in front of his office in Malamparai, Tami Nadu

उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बाद गांव में अलग चुनौतियां थीं। व्यावहारिक रूप से, उनके लिए लॉकडाउन के बाद ऑनलाइन कक्षाएं चलाना संभव नहीं था, क्यों कि कुछ बच्चों के परिवारों के पास पढ़ाई के लिए पर्याप्त स्मार्टफोन नहीं थे।

उनका मानाना है कि शिक्षा प्राणाली में ज्यादातर समस्याओं की मख्य जड़ नंबर सर्टिफिकेट है, होशियार छात्र सिर्फ नंबरों पर ही फोकस करते हैं, वो पूरी तरह से नॉलिज नहीं लेते हैं, जबकि वह ऐसे कई छात्रों को जानते हैं तो बहुत होशियार हैं, लेकिन परीक्षा में अच्छे नंबर हासिल नहीं कर पाते, लेकिन फिर भी नौकरियों में बहुत अच्छा प्रदर्शन करते हैं।

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