Saturday - 6 January 2024 - 4:51 PM

टूलकिट मामले में कुछ और लोगों पर गिर सकती है गाज

जुबिली न्यूज डेस्क

पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी की सोशल मीडिया पर खूब आलोचना हो रही है। आलोचना करने वालों में राजनीतिक दल से लेकर आम लोग शामिल हैं।

दिशा रवि की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली पुलिस के कामकाज पर सवाल उठ रहा है बावजूद इसके पुलिस दो और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करना चाह रही है।

ऐक्टिविस्ट-अधिवक्ता निकिता जैकब और ऐक्टिविस्ट शांतनु मुलुक के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी हो चुके हैं और गिरफ्तारी से बचने के लिए इन दोनों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में अर्जी दी है। इन दोनों अर्जियों पर मंगलवार को सुनवाई होनी है।

अदालत को निकिता के वकील ने बताया कि दिल्ली पुलिस की एक टीम 11 फरवरी को मुंबई में उनके घर पर भी गई थी और जहां पुलिस ने उनके कुछ निजी कागजात और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त कर लिया था।

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वकील ने बताया कि उन्होंने उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर की एक प्रति भी मांगी है क्योंकि उनका दावा है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि आखिर उनके खिलाफ क्या आरोप है।

वहीं बीड जिले के रहने वाले ऐक्टिविस्ट शांतनु ने हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ में अर्जी दिया है। अपनी अर्जी में उन्होंने कहा है कि पिछले तीन दिनों से दिल्ली पुलिस के कमी जिले में हैं और इस बीच उन्होंने बिना तय प्रक्रिया का पालन किए शांतनु से संबंधित काफी सामग्री भी जब्त कर ली है।

उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया है कि पुलिस उनके बूढ़े माता-पिता पर भी दबाव डाल रही है। उन्होंने कुछ दिनों की अग्रिम जमानत का अनुरोध किया है ताकि वो दिल्ली आकर अदालत के सामने अपना पक्ष रख सकें।

अधिवक्ता निकिता के मुताबिक जिस शिकायत पर पुलिस कार्रवाई कर रही है उसे लीगल राइट्स ऑब्जर्वेटरी नामक एक संस्था ने दिल्ली में दर्ज करवाया है।

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दरअसल पुलिस का आरोप है कि इन्हीं तीनों ने मिल कर वो “टूलकिट” नाम के उस गूगल डॉक्यूमेंट को बनाया था जिसे पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग ने भारत के चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में अभियान शुरू करने के लिए ट्वीट किया था।

पुलिस का यह भी आरोप है कि दिशा ने संदेश भेजने वाले ऐप्प टेलीग्राम के जरिए वो डॉक्यूमेंट ग्रेटा को भेजा था। शांतनु एक इंजीनियर हैं और पर्यावरण कार्यकर्ता भी हैं, जबकि निकिता एक अधिवक्ता हैं।

निकिता महाराष्ट्र और गोवा के बार कॉउंसिल से जुड़ी हुई हैं। वह एक मानवाधिकार और पर्यावरण कार्यकर्ता भी हैं। ये दोनों किसान आंदोलन का भी समर्थन कर रहे थे, लेकिन दिल्ली पुलिस का दावा है कि दोनों का संबंध पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन नामक एक संगठन से है।

पुलिस का दावा है कि इस संगठन के खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों से संबंध हैं।

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